बुन्देलखण्ड़ बनाम विन्ध्यांचल प्रदेश : एक चिंतन
राम
औतार सिंह खंगार “नीम मैन”
पूर्व
सहायक महा प्रबंधक,
नाबार्ड़, मुम्बई
यह एक
सर्वमान्य सत्य है कि देश के अंदर छोटे व कम क्षेत्रफल वाले प्रदेशों का विकास
तेजी से हुआ है. विभिन्न विकास की गति दर्शानेवाले आकड़े भी इस बात की पुष्टि करते
हैं. अत: देश के विकास की गति में तेजी लाने के लिए छोटे राज्यों का निर्माण
अनिवार्य हो गया है. इसी कारण पिछड़े क्षेत्रों में विकास की गति में तीव्रता लाने
के लिए स्थानीय बुध्दिजीवियों व सामाजिक तथा राजनीतिक सोच के लोगों ने अपने
क्षेत्र के विकास हेतु, नये छोटे
प्रदेशों के गठन की माँग हेतु अपने-अपने तर्क रखने की कोशिश कर रहे है.
बुन्देलखण्ड़
का पिछड़ापन जग जाहिर है. इस पर मुझे किसी प्रकार के तर्क को रखने की जरूरत नहीं
है. अत: इस क्षेत्र के विकास हेतु, इस क्षेत्र को
एक अलग प्रदेश के रूप में गठित करना आवश्यक हो गया है. ताकि यहाँ के पिछड़ेपन व
गरीबी को दूर किया जा सके. लेकिन इस प्रकार के नये प्रदेश के गठन की माँग भी कोई
नयी बात नहीं है. “बुन्देलखण्ड़ प्रदेश” के गठन की माँग आजादी के पहले से ही उठती रही
है. कुछ आंशिक सफलता “विंध्य प्रदेश” के गठन के नाम पर मिली भी. परंतु यह
विंध्यप्रदेश कुछ राजाओं, महाराजाओं के
निजी स्वार्थों व अहंकारों की भेंट चढ गया.
इसी
प्रकार बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र को एक अलग प्रांत बनाने के लिए समय-समय पर कुछ स्थानीय
राजनीतिक लोगों ने आंदोलन चलाये भी. परंतु उनका ध्यान अलग प्रांत बनाने में कम, लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर राजनीतिक लाभ
उठाना ज्यादा रहा. बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र के अलग प्रांत न बन पाने के और भी कारण हो
सकते हैं. परंतु उनमें से एक मुख्य बात रही, आम
जनता के समर्थन का अभाव. पिछले आंदोलन या तो कुछ बाहुबलियों या कुछ धनकुबेरों
द्वारा संचालित रहे. परिणाम यह हुआ कि आम जनता को अपनी भागीदारी के लिए वहाँ कोई
स्थान ही नहीं मिला. आम जनता दूर खड़ी, आंदोलन के इस
स्वाँग को एक तमासा के रूप में दूर से ही देखती रही. उसको इस आंदोलन से कुछ
प्राप्त होने की उम्मीद या कहूँ, इन तथाकथित
आंदोलनकारियों के पास आम जनता को देने या दिलाने की कोई ठोस कार्य-योजना ही नहीं
थी. जिस पर आम जनता को विश्वास होता. अन्यथा क्षेत्र की भूखी आम जनता दूर खड़ी मूक
दर्शक भर बन कर न रह जाती. स्थानीय जनता इस नये प्रदेश की माँग व उसके विकास हेतु
इन नेताओं से कुछ ठोस तर्क सुनना चाहती थी. ताकि जनता अपनी कसौटी पर उसको कस कर उस
पर अपना निर्णय ले सके. परंतु ऐसा कुछ हुआ नहीं. आजादी के पहले से लेकर अभी तक के
आंदोलनों के परिणाम हम सब के सामने हैं. शायद अभी दूर-दूर तक इस प्रदेश के गठन की, कोई आशा की किरण भी नजर नहीं आ रही.
अब मैं
अपनी बात बुन्देलखण्ड़ प्रदेश के गठन हेतु एक तर्क के साथ प्रस्तुत करना चाहूँगा. मेरा
यह तर्क भी शायद आपको अटपटा भी लगे. हो सकता है आपको हँसी भी आये. पर कोई बात
नहीं. मुझे अपनी बात को अपने ढंग से रखने की स्वतंत्रता तो है ही. फिर अपनी बात के
समर्थन में कुछ अन्य विंदु भी रखना चाहूँगा.
पहली
बात, यहाँ की भौगौलिक परिस्थितिकी जनित
समस्याओं के समाधान के स्थान पर, अभी तक बुन्देलखण्ड़
प्रांत की माँग इस क्षेत्र की भाषा, साहित्य, संस्कृति,
इतिहास तथा यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों को केंद्र में रख कर ही की जाती रही है.
गरीबी का नक्कारा भी खूब बजा. लेकिन यह यह गरीबी क्या है? गरीबी क्यों है? इस गरीबी के कारण क्या हैं? और पहले क्या रहे हैं? कैसे दूर होगी? इस पर कोई विश्लेषणात्मक अध्ययन किया ही नहीं
गया. रोग की डायग्नोसिस किए बिना ही दवा दी जाती रही. गरीबी का रोग घटने के बजाय
बढता ही गया. अब यह नासूर का रूप ले चुका है. यह कभी भी फट सकता है. फटने पर इसका
परिणाम क्या होगा. कुछ कहा नहीं जा सकता. इस क्षेत्र की असह्य गरीबी जैसी भयंकर बीमारी
के लिए कोई सार्थक समन्वित कार्य योजना, आज तक नहीं
प्रस्तुत की जा सकी. कुछ प्रयास, कुछ आँख के
अंधों द्वारा, एक हाथी को
हाथ से केवल छू कर उसके आकार और प्रकार को पारिभाषित कर, आँख के अंधों के आकलन के अनुसार, उस गरीबी जैसे हाथी को नियंत्रित करने का प्रयास
जरूर किया गया. लेकिन यह हाथी इतना बिगड़ैल निकला कि वह उन अंधों के कंधों पर ही चढ
बैठा. और इन हालातों में यहाँ रहने वाले बेचारे गरीबों को अब अपना घर द्वार छोड़ कर, पलायन करने में ही अपना भला नजर आया. और आप देख
ही रहे होंगे कि पूरे के पूरे बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र के घरों में ताले लटके हैं. रात
में यहाँ दिये भी नहीं जलाये जाते. क्यों कि यहाँ कोई रहने वाला ही नहीं. यदि बचे
भी हैं, तो मात्र साठ
साल से ऊपर के लोग, वो भी जो भगवान
भरोसे, बटाई से प्राप्त आय या बाहर से भेजे
गए मनी-आर्ड़र की राशि पर जिंदा रहने के लिये यहाँ टिके हैं. शेष पलायन कर गये हैं.
दूर दराज अनजान जगहों के लिये. जहाँ वे मलिन बस्तियों में नारकीय जीवन जीने के
लिये बाध्य हैं. यह वह बुन्देलखण्ड़
क्षेत्र है जिसे किसी समय “जा पर विपदा पड़त है, सोइ आवत यहि देश” के रूप में जाना जाता था. यह
हमेशा शरणदाता रहा है. लेकिन आज यहाँ का हर निवासी शरण लेने के लिए दर-दर भटक रहा
है. लेकिन उसे न कोई शरण दाता और न ही कोई उपाय सूझ रहा.
अब मैं
अपनी बात को जरा अपने ही ढंग से रखने की कोशिश करता हूँ. हमारे पूरे बुन्देलखण्ड़
क्षेत्र को विंध्याचल पर्वत की ये श्रेणियाँ इस पूरे वृहत्तर बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र
को दो भागों, लगभग उत्तर और दक्षिण, में विभाजित
करती हैं. यदि देखा जाय तो यह विंध्य श्रेणियाँ ही इस वृहत्तर बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र
के भौगोलिक जलागम (वाटर शेड़) क्षेत्र की ऋजु रेखा (ridg line) का निर्माण करती हैं. किसी जलागम क्षेत्र की
ऋजु रेखा, उस क्षेत्र की
भौगोलिक संरंचना पर खींची गयी की वह रेखा
है, जिस पर आकाश से बरसने पर गिरने वाला
पानी, उस रेखा पर गिर कर दो विपरीत दिशाओं
में बहने लगता है. इस प्रकार पूरे बृहत्तर बुन्देलखण्ड़ क्षेत्र पर बरसने वाला पानी
विंध्य-ऋजु-रेखा पर गिर कर इसके उत्तर में विभिन्न नदी नलों से बह कर यमुना/गंगा में तथा दक्षिण दिशा में नर्मदा नदी के
माध्यम से बह कर समुद्र में चला जाता है. इस ऋजु रेखा के दोनों ओर ऊंची-नीची, ऊबड़-खाबड़ प्राकृतिक भौगोलिक संरंचनायें पायी
जाती हैं. जिसके कारण यहाँ का वर्षा का पानी तीव्र प्रवाह से बह कर, भूमि की ऊपरी उपजाऊ सतह को अपने साथ बहा ले जाता
है जिससे भूमि की उरबरता कम हो जाती है.
परिणामस्वरूप फसलों की उत्पादकता कम हो जाती है. जो इस क्षेत्र की गरीबी के कारणों
में से एक सबसे महत्वपूर्ण कारण है. इसके अतिरिक्त अशिक्षा, अंधविश्वास, संसाधनों व कौशल्यत विकास का अभाव, इन सबके ऊपर यहाँ की सामंतवादी, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था ने यहाँ के लोगों की
कमर तोड़ कर, उन्हें हजारों
सालों से गरीबी व बेहाली की हालत में जिंदा रहने के लिए बाध्य कर दिया.
परिणामस्वरूप विंध्य श्रेणियों के उत्तर और दक्षिण दोनों ओर (उत्तर प्रदेश और मध्य
प्रदेश) के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की गरीबी ही उनका सबसे बड़ा रोग या सबसे
बड़ा दुश्मन है. इस गरीबी जैसे दुश्मन या रोग से दोनों ओर के लोगों को मिल जुल कर
एक रणनीति बनाकर ही लड़ना पड़ेगा. तभी इस गरीबी जैसे राक्षस पर विजय पायी जा सकती
है. यह क्षेत्र पर्याप्त वर्षा के बावजूद हमेशा सूखे या अकाल की चपेट में आ जाता
है. अत: इस क्षेत्र के विकास के लिए यहाँ की भूमि का सघन रूप से एक-एक इंच की
पैमाइस कर इसकी संरंचना के अध्ययन की जरूरत है. साथ ही यहाँ के बरसने वले पनी की
एक-एक बूँद का संग्रहण कर उसको व्यर्थ बहने से रोकना होगा. इसके लिए यहाँ सूक्ष्म
या मध्यम आकार के चेक-डैम का निर्मित कर यहाँ बरसे पानी की प्रत्येक बूँद को
संरक्षित करना पड़ेगा. जिसका उपयोग पीने के पानी, तथा सिंचाई जैसे अन्य कामों में लाया जा सकता है.
जो पानी बरसात में अधिकता के कारण बह जाता है, उसको बड़े बाँधों के माध्यम से रोक कर बिजली पैदा
करने के साथ-साथ नहरें भी निकाली जा सकती हैं. कुछ बड़ी नदियों को आपस में जोड़ कर
अतिरिक्त जल को व्यर्थ समुद्र में बह जाने देने के बजाय कमी वाले क्षेत्रों की
आपूर्ति की जा सकती है. इससे देश के अन्य स्थानों में भी खुशहाली लाने में सहायता
मिलेगी. जल उपलब्धता के कारण फसलों की उत्पादकता में वृद्धि के साथ साथ, भूमि क्षरण और पर्यावरण संरंक्षण में भी सफलता
प्राप्त होगी. कच्चेमाल की उपलब्धता से नये उद्योग और व्यापार को भी गति मिलेगी.
नये रोजगार के सुअवसर भी सृजित हो सकेंगे. “जल ही जीवन है” इस मंत्र को
जन-जन के जीवन का मूल आधार बनाना पड़ेगा. तभी इस क्षेत्र के गरीबी जैसे राक्षस पर
नियंत्रण पाया जा सकेगा.
लेकिन
इतने बड़े कार्य सम्पादित कैसे होंगे? इन कार्यों के
क्रियान्वयन हेतु नीति निर्माण और आर्थिक संसाधन कौन और कैसे मुहैया करायेगा? उसकी क्या शर्तें और क्या मापदण्ड़ होंगे. ये कुछ
यक्ष प्रश्न हैं जो अभी भी अनुत्तरित हैं. लेकिन इन समास्यओं का समाधान इस “वृहत्तर बुन्देलखण्ड़
- इत यमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत
टोंस (एक कवि की कल्पना अनुसार)” क्षेत्र को एक अलग प्रदेश “विन्ध्यांचल
प्रदेश” के रूप में
गठित कर, खोजा जा सकता है.
इसके लिए हमें इस “विन्ध्यांचल प्रदेश” की सीमा
रेखायें नये सिरे से व्याख्यायित करनी पड़ेंगी. इन सीमा रेखाओं का निर्धारण परम्परागत
मान्यताओं से हट कर भौगोलिक संरचना व परिस्थितिकी के आधार पर समस्याओं के समाधान
हेतु, नये सिरे से चिंतन कर तय करना
पड़ेगा. समग्र विन्ध्यांचल क्षेत्र की भौगोलिक संरंचना व उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों
के परिप्रेक्ष में यहाँ के लोगों की गरीबी को दूर करने के उपायों का हल खोजने और
कुछ सामाजिक, आर्थिक और
राजनीतिक तथा प्रशासनिक समस्याओं के सामाधान को ध्यान में रख कर इस नये राज्य का
नाम “विन्ध्यांचल
प्रदेश” रखने का पर
विचार किया जा सकता है. इम नाम से इस पूरे विंध्य क्षेत्र की भूमि के भाव का
प्रतिविम्बात्मक प्राकट्य होता है. यह वह भूमि है जिसका यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति
का भावात्मक लगाव है. यह नाम किसी स्थान,
व्यक्ति, जाति, समाज, धर्म व इतिहास
का प्रचार प्रसार नहीं करता. यह ऐसे दोषों से परे है, जिस पर कोई उंगली उठा सके. ऐसे “विन्ध्यांचल
प्रदेश” के नाम को
निश्चय ही यहाँ के आम लोगों का जन समर्थन प्राप्त होगा.
सीमा
रेखाओं के तय किए जाने की बाद इस प्रदेश के समग्र विकास की “विकास नीति” निर्धारित की
जायेगी. तत्पश्चात विकास के विभिन्न आयामों को व्याख्यायित कर इनके विकास की धारा
के प्रवाह को कैसे प्रवाहित किया जायेगा, इसके
लिए अलग-अलग तैयार की गयी कार्य-योजनाओं के अनुसार इनको क्रियान्वित किए जाने की
रूप रेखा तैयार करनी पड़ेगी. साथ ही इस पूरी कार्य-योजना को कार्यरूप में परिणित
करने के लिए सघन रूप से एक आंदोलन के रूप में पूरे प्रदेश के प्रत्येक शहर और गाँव
में घर-घर जा कर जन समर्थन जुटाना होगा. क्योंकि यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश और मध्य
प्रदेश दो प्रदेशों के बीच बँटा होने के कारण कुछ ज्यादा ही कठिन और पेचीदा हो गया
है. लेकिन प्रबल जन समर्थन, गरीबी जैसे राक्षस को दूर भगाने के
प्रति अटूट निष्ठा और विकास की गति में तेजी लाने के लिए इस प्रकार के संघर्षात्मक
निर्णय लेने ही पड़ते हैं. इसके लिए हमें जन समर्थन के साथ-साथ सशक्त जनांदोलन
चलाने की भी जरूरत पड़ सकती है. इसकेलिए तैयार रहना चाहिए.
“विन्ध्यांचल
प्रदेश” के विकास की
गति में तीव्रता लाने व इन धाराओं को शाश्वत व टिकाऊ बनाने के लिए के कुछ विकास-धारायें
एक साथ समानान्तर रूप से साथ-साथ प्रवाहित करने की जरूरत पड़ेगी. इनमें से कुछ
निम्न प्रकार हैं :
1.
शिक्षा, कौशल व
अनुसंधान विकास की धारा.
2.
स्वास्थ्य संवर्धन की धारा.
3.
सडक, रेल, वायुयान
जैसे परिवहन विकास की धारा.
4.
विद्युत,
वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन व आपूर्ति की धारा.
5.
जल प्रवाह व जल संरंक्षण के साथ-साथ प्राकृतिक
संम्पदा संवर्धन की धारा.
6.
कृषि और पशुधन संवर्धन विकास की धारा.
7.
पारदर्शी राज्य संचालन व सभी धाराओं में परस्पर
समन्वयन की धारा.
8.
साथ ही आज के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात
सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखने के साथ-साथ उसे बाजार में एक विकासात्मक
प्रवाह/उत्पाद/पर्यटन के रूप में रखे जाने का प्रयास करना तथा बढावा देना. यह भी
हमारी समृद्धि के विकास की एक महत्वपूर्ण धारा बन सकती है.
इस लेख के
माध्यम से इस क्षेत्र के लोगों के सामने यहाँ की समस्याओं को नये सिरे से
सोचने-समझने के साथ-साथ नये समाधान खोजने के लिए मिल-जुल कर कुछ कदम आगे बढाने हेतु
प्रेरित करने का प्रयास किया गया है. कार्य कठिन है लेकिन हाथ पर हाथ रख कर बैठा
भी नहीं रहा जा सकता. यह कार्य अपने लिए नहीं आगे आने वाली पीढियों की सुरक्षा और
उनकी खुशहाली के लिए आवश्यक है. क्योंकि अंग्रेजों की गुलामी जैसे राक्षस से
मुक्ति का संग्राम यहाँ के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने लिए नहीं, अपनी आगे आने वाली या वर्तमान पीढी की आजादी के
लिए लड़ा था. अब हमारी बारी है कि गरीबी जैसे राक्षस से पूरे देश व समाज, व अपनी आगे
वाली पीढियों को इससे निजात दिलाने हेतु लड़ा जाय. वास्तव में इस दिशा में
उठाये गये कुछ कदम ही हमारी उन सेनानियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
जय जय “विन्ध्यांचल
प्रदेश” . जय जय “भारत देश”.
संपर्क सूत्र:
राम औतार सिंह खंगार
1/62, विनम्र खण्ड़, गोमतई नगर,
लखनऊ – 226 010
(उत्तर प्रदेश)
मो. नं. : 099181
43754