प्रियवर यदि तुम जाते-जाते राग हृदय का सुन लेते
प्रियवर यदि तुम जाते-जाते राग हृदय का सुन लेते
बोझ हो जाता कम हृदय का गीत अगर तुम सुन लेते
निर्भया साहित्यिक, सामाजिक महिला कल्याण संस्थान् की मासिक काव्य गोष्ठी हिन्दी भवन में आयोजित की गई. वरिष्ठ साहित्यकार अशोक निर्मल,
देवनागरी' हिन्दी भाषा सम्वर्धन एवम् शोध सन्स्थान् के अध्यक्ष अशोक व्यग्र वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश 'शेष' जी के मुख्यातिथ्य,, में कवयित्री अनीता श्रीवास्तव को निर्भया सम्मान प्रदान किया गया. युवा ग़ज़लकार गौरव गर्वित के सञ्चालन में कवियों, शायरों ने गीत, ग़ज़ल, कविताएं प्रस्तुत की.
अशोक व्यग्र ने पढ़ा
प्रियवर यदि तुम जाते-जाते राग हृदय का सुन लेते
बोझ हो जाता कम हृदय का गीत हृदय का सुन लेते
कवि अशोक निर्मल ने सुनाया
जिनके हाथों में बल नहीं होता, प्रश्न रोटी का हल नहीं होता
याद रखिए सदा समर्पण में,त्याग होता है छल नहीं होता.
सत्य देव सत्य ने कहा
सींच सके जग जीव धरा को,कौन भला इतना उपकारी
बोल रहा जग हाथ उठाकर,गंग माई जय कार तुम्हारी
और
अम्बर पर जो पूजित है उन्हें भगवान कहते हैं
पराई पीर पढ़ ले जो उसे इंसान कहते हैं.
कवि आनंद अनभिज्ञ ने सुनाया
रागिनी मनभावनी वो बावरी लड़की, शर्करा सी घुल गई वो सांवली लड़की
निभाती है संजीदगी से वो रिश्ते, जो बाबुल के आँगन में चंचल रही है
इसी कड़ी में गजानंद भैरून्दा ने कहा
चलो अयोध्या धाम, पुनर्निर्माण कराया है,
रामलला का कलयुग में, मंदिर बनवाया है
कवि ओमप्रकाश ने सुनाया
इस धरती से उस अंबर को
युगों युगों से प्यार है ,प्रेम प्यार में सब है अर्पण
लेना नहीं उधार है.,
कवयित्री सरोज लता जी पढ़ा
हम तो पुतले फूंक रहे हैं, जिन्दा रावण घूम रहे हैं
ये तो सोचो राम कहाँ हैं,उनके जैसा काम कहाँ है.
कवि राजेश चिलमचट्टी ने कहा
लफ्ज़ है आपके या है सपोले, गुजारिश है जरा आहिस्ता बोले
तल्खियाँ वैसे भी कम नहीं, अब इनमें और कड़वाहट न घोले
कमलेश वर्मा ने सुनाया
तूफान इस तरह के उठाएंगे कब तलक
ए जालिमों घरों को गिराऔगे कब तलक
आबिद काजमी ने चंद शेर पढ़े
उसे जीने का कोई हक नहीं वतन से जो भी गद्दारी करे है
निवारण खुद को कहता है दुखों का,जहां चाहे बम वारी करे है
वो झूठा है मगर लगता सच्चा है,ग़ज़ब की वो अदाकारी करे है
अमीरों से बड़े गहरे है रिश्ते, गरीबों से मगर गद्दारी करे है.
कवयित्री राजकुमारी ने कहा
बनूं खुशबू मैं फूलों की ,कांटे न बनूँ किसी राह की
गौरव गर्वित ने सुनाया
हर तरफ हुस्न की नुमाइश,लाख रंगत से सादगी जायज
है हकीकत में जिंदगी जायज, ख्वाब में होगी खुदकुशी जायज
जितनी भी की थी कोशिशें जायज,इश्क जायज तिश्नगी जायज
और
आसमाँ से चांद तारे खो गए,रात और दिन एक जैसे हो गए
नींद में ख्वाहिशों ने दस्तक दी,जागने के बाद सपने सो गए
अमन टाटस्कर ने पढ़ी
सिर्फ दौलत से कुछ न होगा भला,रिश्ते नाते भी थोड़े निभाया करो
चुपके चुपके न आंसू बहाया करो,जो भी शिकवा गिला हो बताया करो
कवयित्री अनीता श्री ने कहा
दुआओं का तेरी असर लग रहा है
बहुत खूबसूरत सफर लग रहा है ,वज़ूद का उसका असर है कि
मर कर भी वो अमर लग रहा है,
कवि दिनेश भदौरिया जी ने सुनाया
नहीं लौटा वो कह कर भी, यकीं टूटा न इस पर भी
पड़े हैं अश्क अब इतने, पड़ा छोटा है समंदर भी.
वीणा विद्या जी ने कहा
आज मेरी नन्ही बेटी ने मां की याद दिलाई
साड़ी का पल्लू पकड़ जो मेरे पास आई
आँख मेरी भर आई
मेरी सांसों की खातिर तूने कितनी लङी लङाई, याद तुझे करके मां आँख मेरी भर आई.
कवयित्री प्रमिला मीता ने सरस्वती वंदना से शुभारम्भ किया.