"पचास के बाद"
"पचास के बाद"
पचास
के बाद नई पगडंडियों पर चलना,
रिस्की
होता है।
शरीर
और मस्तिष्क का ताल मेल,
शिथिल
होने लगता है ,
और
फ्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है।।
यद्यपि
अभी तक न मन मुनक्का हुआ रहता है,
और
न ही लालसाएं छुहारा ,
तथापि
उम्र की दूसरी पारी में,
पहाड़ा
पढ़ना,भ्रमर
गुंजार,
बड़ा
ही हास्यास्पद लगता है ।।
कदाचित
वर्षों से जलते आ रहे दीये को,
अब
तक का अपना जलना,
अर्थहीन
सा अनुभव होते ही,
बुझने
से पहले भभकने लगता है ।।
नई
पगडंडियों पर चलना,
पहाड़े
पढ़ना,भ्रमर
गीत गाना,
जोख़िम
भरा तो होता है किंतु,
ख़तरों
से खेलना,संकटों
का सामना,
जीवन
अनुभव का हिस्सा होता है ।।
इरादों
और सपनो का भी एक समय होता है,
किंतु
घड़ी ठहर जाए तो,
मंसूबों
को फिर पाला जा सकता है,
पियराती
आंखों से ,
सपनो
को देखा जा सकता हैं ।।
गीता
सिंह,
प्रयागकुंज
अपार्टमेंट,स्ट्रैची रोड,सिविल लाइन,प्रयागराज,उत्तर प्रदेश