"हिन्दी हमारी मदर टंग है" ( व्यंग्य)
सुरेश "विचित्र"
हिंदी दिवस पर भाषण देते हुए नेता जी कह रहे थे । हिंदी हमारी मदर टंग है । और मदर टंग के साथ न्याय करना हमारी ड्यूटी बनती है ..। लेकिन अभी तक हम लोग ऐसा नहीं कर सके हैं । क्योंकि अंग्रेजी बोलना हमारी मजबूरी हो गई है । हमें अपने फ्यूचर को ध्यान में रखते हुये डिसीजन लेना पड़ता है । बात सच है । हमारा लड़का विदेश में पढ़ता है। किंतु हमने उसे अदर सब्जेक्ट के रूप में हिंदी लेने का प्रेशर डाला । और उसने अदर सब्जेक्ट के रूप में हिंदी को सिलेक्ट किया। चाहता तो किसी और विदेशी भाषा को सिलेक्ट कर लेता,जैसे जर्मनी, जापानी ,चाइनीज, रसिया, फ्रांस , या कोई भी लैंग्वेज सेलेक्ट कर सकता था । किंतु मदर टंग हमारी हिंदी है । इसलिए मैंने उससे कहा कि बेटा तुम्हें मदर टंग के प्रति न्याय करना चाहिए । और मदर टंग को अदर लैंग्वेज के रूप में लेना चाहिए । हमें गर्व है कि हमारे बेटे ने अपनी मदर टंग को सिलेक्ट कर हमारी पोजिशन का ध्यान रखा ।
हमारे मित्र दुकानदार ने अपनी नई दुकान का उद्घाटन हिंदी दिवस के दिन करने का निश्चय किया ! और एक बड़ा बोर्ड भी बनवाया, उसमें लिखवाया "इंडियन फूडस एण्ड ड्रिंक्स साप"....।
दुकानदार श्री रमेश चंद अपने नाम के बाद मे हिंदुस्तानी लिखवाना बहुत पसंद करते है ।और जब भी कोई उन्हें रमेश हिंदुस्तानी कहता है। वह उसे बुलाकर ....... बढ़िया इंडियन चाय बनाओ, आर्डर देकर चाय पिलाते हैं । और हिन्दी को मातृ भाषा होने की बात करते हुए गर्व महसूस करते हैं । रमेश भाई की यह दूसरी दुकान है । पहली दुकान पिछले बर्ष ही हिंदी दिवस पर खोली थी । जहां पर सब्जियां और फल बेचे जाते है.। दुकान का नाम है "इंडियन वेजिटेबल्स एण्ड फ्रूट्स" है। आपके दो लड़के हैं । दोनों इंग्लिश मीडियम मैं पढ़ाई करते हैं । और प्रतिवर्ष प्रथम श्रेणी में पास भी होते हैं। यह बात भी वह बडे गर्व से बताते हैं । कहते हैं.. जमाना बदल गया है , अब एक भाषा से काम नहीं चलने वाला, दूसरी भाषाओं का भी ज्ञान होना जरूरी है । इसलिए मैंने दोनों बच्चों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ाने का निर्णय लिया है ।
हिंदी तो उनसे बनती ही है । वह तो हमारे घर में सबसे, बल्कि हमारे यहां जो काम वाली बाई आती है । वह भी अच्छी हिंदी में बात करती है। हमारी माता जी, जो कि अनपढ़ है , वह भी हिन्दी मे अच्छी बात कर लेती है । इसलिए इसको गलत ना समझा जाये ।हंसते हुये बोले यार कितना भी अंग्रेजी पढ़ा लिखा आदमी क्यों न हो , जब उसे गुस्सा आता है तो वह अपने हिन्दुस्तानी होने का सबूत हिन्दी में जोर जोर से गालियां देकर बता देता है ..। अंग्रेजी मे तो गालियां भी उतनी बढ़ियां नहीं है जितनी हमारी हिन्दी मे हैं .।भाई साब इंसान को समय के अनुसार चेंज लाना चाहिए । वही इंसान सफल होता है। हिंदी तो हमारे कण कण मैं बसी हुई है ।
साल भर में एक दफा हिंदी दिवस मना कर खुश हो लेना भी अच्छा लगता है ..। क्योंकि अभी भी हिंदी को हमारे देश के लोग ज्यादा महत्व देना पसंद नहीं करते । जितने भी सरकारी ऑफिस है, चाहे वह न्यायालय ही क्यों ना हो , सभी काम अंग्रेजी में हो रहे है .। किसी ऑफिस में जाकर हिंदी में बात करो तो लोग ज्यादा महत्व नहीं देते , किंतु यदि वहां जाकर अंग्रेजी में बात करना शुरू कर दो तो सभी लोग आपकी तरफ आकर्षित होकर आपकी बात सुनने और समझने के लिए आ जाते हैं..।
बहुत से अधिकारी तो ऐसे भी होते है ..। जिन्हे ना तो हिन्दी का ही ग्यान होता है ,और ना ही अंग्रेज़ी का ..। लेकिन साहब हो जाने का भ्रम हमेशा उनके मन में बना रहता है । और उसी भ्रम मे वे अपनी साहबी करते रहते हैं । स्वतंत्रता के पहले हमारे देश में अंग्रेजी की खास अहमियत ना थी । किन्तु आज कई गुना बढ़ गई है । इसका श्रेय भी हमारे अपनो पर ही जाता है.। हिंदी की वकालत करने वालो के लड़के अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे है । विडंबना देखिये उन्हें हिन्दी के अक्षर मालूम नहीं होते..... मगर दो साल के बच्चों को लोग अंग्रेजी के छब्बीस अक्षर रटा देते हैं ..। और जब भी कोई मेहमान आता है तो उसे पकड़कर बुलाकर ,पास बिठाकर पुटयाकर ए,बी,सी,डी, पढ़वाते है ..। और भारी गौरव महशूस करते है .। तभी चाय लेकर आई गृहिणी भी उस मासूम पर टूट पड़ती है .।। बेटा टिंकू... टिक्ल टिक्ल भी सुना दो..। पूरा परिवार उस बच्चे को सर्कस के जोकर की तरह हिला डुलाकर ..खुद ने जितना सिखाया है ..उस मेहमान को सुनवा देना चाहते है ..भले वह बच्चा रोने ही क्यों ना लग जाये । स्थिति देखते हुये मेहमान भी मन ही मन भागने की फिराक मे हो जाता है ..।
हर देश की अपनी भाषा होती है ..। कहने को हिन्दी भी हमारी मातृ भाषा है ।किन्तु हमारे लोगों ने आज तक हिन्दी को उसका हक नहीं दिलवाया । हिन्दी प्रेमी लोग साल मे एक बार हिंदी दिवस मना लेते है ..।और इस दिन हिंदी के प्रति अपना प्रेम उढ़ेल देते है..। मै भी हिंदी के हक की लड़ाई कई सालो से लड़ रहा हूँ , इस लड़ाई के लिए मैने सिर्फ दो पंक्तियां लिखी है । उन्हीं को हर साल मंचो पर चिल्ला कर वाह वाही पाता रहता हूँ। इन पंक्तियों के मै स्टीकर भी बनवाकर जहां तहां चिपकाता रहता हूँ, और नीचे अपना नाम भी लिखवा देता हूँ । वो पंक्तियाँ .हैं...
हिंदी का सारे भारत में राज होना चाहिये।
कल नहीं, परसों नहीं, आज होना चाहिये।
लेखक -वरेण्य साहित्यकार है। जबलपुर में निवास करते है।संपर्क:883 912 0434