उत्तरप्रदेश के विधान भवन का परिभ्रमण
सात्येन्द्र कुमार पाठक
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ में स्थित विधान सभा भवन में उत्तर प्रदेश की द्विसदनीय विधायिका की विधानसभा एवं विधान परिषद सीट है । उत्तर प्रदेश विधान सभा 1967 ई. में 431 सदस्य में 403 सीधे निर्वाचित सदस्य और एंग्लो-इंडियन समुदाय से एक मनोनीत सदस्य शामिल तथा विधान परिषद में 100 सदस्य हैं। उत्तर प्रदेश विधानमंडल भवन को काउंसिल हाउस का स्थापत्य शैली इंडो - यूरोपीय वास्तुकला शैली में निदेशांक 26.870649° उ 80.965277° पू पर 114 मीटर ऊँचाई युक्त विधानसभा भवन का निर्माण प्रारम्भ 15 दिसंबर 1922 ई. और 21 फरवरी 1928 ई. को बलुआ पत्थर से युक्त डिजाइन व निर्माण वास्तुकार सैमुअल स्विंटन जैकब और हीरा सिंह मात्रा सर्वेक्षक हरकोर्ट बटलर ठीकेदार मैसर्स मार्टिन एन्ड कंपनी के वास्तुकार ए. एल. मार्टिमर एवं सर फोर्ड और मैकडोनाल्ड द्वारा 21 लाख रु. की लागत से किया गया था। उत्तरप्रदेश विधान सभा भवन को 1928 में निर्मित विधान भवन को मूल रूप से "काउंसिल हाउस" का 1937 ई. से विधानमंडल का घर और उत्तरप्रदेश सरकार के अन्य कार्यालय है। 20वीं शताब्दी की प्रारंभ मे उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी इलाहाबाद थी । उत्तरप्रदेश की इलाहाबाद राजधानी को 1922 ई. में लखनऊ स्थानांतरित करने और विधानसभा क्षेत्र के लिए विधान भवन बनाने का निर्णय लिया गया। 15 दिसंबर 1922 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल स्पेंसर हरकोर्ट बटलर ने विधान भवन की नींव रखी। विधान इमारत का डिज़ाइन सैमुअल स्विंटन जैकब और हीरा सिंह एवं बटलर ने इमारत के निर्माण की निगरानी में विधान भवन पाँच वर्षों में ₹ 21 लाख ( 2023 में ₹ 43 करोड़ या US$5.1 मिलियन के बराबर लागत से पूर्ण होने के बाद 21 फरवरी 1928 को विधान भवन का उद्घाटन किया गया था । विधान भवन मिर्ज़ापुर से तराशे गए हल्के भूरे बलुआ पत्थर से बनी हॉल, गैलरी और बरामदे आगरा और जयपुर के संगमरमर से बने हैं । प्रवेश द्वार के दोनों तरफ़ गोलाकार संगमरमर की सीढ़ियाँ बनी हुई और सीढ़ियों की दीवारें चित्रों से सजी हुई हैं। भवन का मुख्य कक्ष गुंबददार छत के साथ अष्टकोणीय है । ऊपरी सदन के लिए एक अलग कक्ष का निर्माण 1935 और 1937 के बीच किया गया था। दोनों सदनों की इमारतें बरामदे से जुड़ी हुई और दोनों तरफ़ कार्यालय हैं। विधान भवन के अंदर अंदर केन्द्रीय हॉल है। भारतीय संविधान के भाग VI में अनुच्छेद 168 से 212 राज्य विधानमंडल के संगठन, संरचना, अवधि, अधिकारियों, प्रक्रियाओं, विशेषाधिकारों, शक्तियों आदि से संबंधित हैं। उत्तर प्रदेश विधान भवन में विधान सभा एवं विधान परिषद है। उत्तर प्रदेश विधान सभा द्विसदनीय विधानमंडल का निचला सदन में राज्यपाल द्वारा मनोनीत एक एंग्लो-इंडियन सदस्य को छोड़कर कुल 403 सदस्य हैं। एक मनोनीत एंग्लो-इंडियन सदस्य सहित 1967 ई. में 431 सदस्य थे। परिसीमन आयोग की सिफारिश के अनुसार, इसे संशोधित कर 426 कर दिया गया। 9 नवंबर 2000 को राज्य के पुनर्गठन के बाद, विधान सभा की संख्या एंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक मनोनीत सदस्य सहित 404 हो गई है। उत्तर प्रदेश विधान परिषद भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा अस्तित्व में आईऔर राज्यपाल राम नाईक इसके सदस्य थे। विधान परिषद में 60 सदस्य होते थे। परिषद के एक सदस्य का कार्यकाल नौ वर्ष और इसके एक तिहाई सदस्य हर तीन साल बाद सेवानिवृत्त होते थे। सदनों को अपने पीठासीन अधिकारी चुनने का अधिकार प्राप्त था जिसे राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता था। विधान परिषद की पहली बैठक 29 जुलाई 1937 को हुई थी। सर सीताराम और बेगम एजाज रसूल क्रमशः विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुने गए थे। सर सीताराम 9 मार्च 1949 तक पद पर रहे। 10 मार्च 1949 को चंद्रभाल अगले अध्यक्ष बने थे । 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्रता और संविधान को अपनाने के बाद चंद्रभाल को विधान परिषद का अध्यक्ष चुना गया था । चंद्रभाल 5 मई 1958 तक अपने पद पर बने रहे। 27 मई 1952 को श्री निजामुद्दीन को परिषद का उपाध्यक्ष चुना गया। वे 1964 तक अपने पद पर बने थे । भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों के तहत संयुक्त प्रांत में विधान परिषद अस्तित्व में आने के बाद 60 सदस्य थे। 26 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश राज्य की विधान परिषद (विधान परिषद) की कुल सदस्य संख्या 60 से बढ़ाकर 72 कर दी गई। संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम 1956 के साथ, परिषद की संख्या बढ़ाकर 108 कर दी गई। नवंबर 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य के पुनर्गठन और उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद, घटकर 100 हो गया है ।
लखनऊ अवस्थित विधान भवन का परिभ्रमण 18 सितंबर 2024 को साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा विधान भवन में स्थित बिधान सभा एवं विधान परिषद , परिसर , कार्यालयों तथा ऐतिहासिक स्थलों की भ्रमण किया गया । विधान भवन परिभ्रमण में साहित्यकार व इतिहासकार सात्येन्द्र कुमार पाठक के साथ उत्तर प्रदेश विधान सभा के पूर्व वित्त नियंत्रक एवं विशेष सचिव एवं साहित्यिक त्रय मासिकी पत्रिका अपरिहार्य का व्यवस्था प्रमुख डॉ. दिनेश चंद्र अवस्थी , हिंदी दैनिक अवध दूत मुजफ्फरपुर डिस्ट्रिक्ट व्यूरो चीफ डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव एवं संस्कार भारती द्वारा लखनऊ से प्रकाशित पत्रिका कला कुंज भारती के संपादक पद्मकान्त शर्मा प्रभात थे ।