मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन

 मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।

मेरी छंदबद्ध वाणी में नहीं किसी कृष्णाभिसारिका के आकुल अंतर की धड़कन

अरे किसी जनपद कल्याणी के नूपुर के रुनझुन स्वर पर मुग्ध नहीं है मेरा गायन!

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।

मैं न कभी नीरव रजनी के अँचल में छुपकर रोता हूँ.

आँसू के जल से अतीत के धुँधले चित्र नहीं धोता हूँ,

चित्रित करता हूँ समाज के शोषण का वह शोणित प्लावन।

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन ।

आज विकट कापालिक बनकर !

महाप्रलय के शंखनाद से मरघट के सोए मुर्दों को जगा रहा हूँ!

जगा रहा हूँ अभिनव की वह ज्वाल निरंतर.

जलकर जिसमें स्वयं भस्म हो जाय पुरातन !

मैं विप्लव का कवि हूँ ! मेरे गीत चिरंतन।

~कवि स्व. मनुज देपावत

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