देसी कामधेनू गाय को दिया 'राज्यमाता -गोमाता' का दर्जा


 महाराष्ट्र सरकार का ऐतिहासिक निर्णय

देसी कामधेनू गाय को दिया 'राज्यमाता -गोमाता'  का दर्जा

नई दिल्ली 30- महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए देसी कामधेनू गाय को ‘राज्यमाता - गोमाता’ का दर्जा दिया है। इस निर्णय की घोषणा के तुरंत बाद सरकार ने इसका आधिकारिक आदेश भी जारी किया है। आदेश में कहा गया है कि भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही गाय को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गाय के धार्मिकऔषधीय और कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इसके साथ हीगाय को 'राज्यमाता- गोमाताका दर्जा देने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य बन गया है।

आयुर्वेद और पंचगव्य उपचार में गाय का महत्व

सरकार ने गाय के महत्व पर विशेष जोर देते हुएआयुर्वेदिक चिकित्सा और पंचगव्य उपचार में गाय के अमूल्य योगदान को स्पष्ट किया है। पंचगव्य उपचार पद्धति में गाय का दूधगोमूत्रगोबरघी और दही शामिल होते हैंजो विभिन्न बीमारियों के उपचार में उपयोगी माने जाते हैं। इसके अलावाजैविक खेती में भी गोमूत्र का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

 

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

हिंदू धर्म में गाय को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे 'गौमाताका दर्जा दिया गया है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी पूजा की जाती है। गोमूत्र और गोबर को पवित्र माना जाता हैऔर यह विभिन्न धार्मिक कार्यों में उपयोगी होते हैं। गाय का दूध शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टि से लाभकारी माना जाता है।

 

भारतीय संस्कृति में गाय का योगदान

भारतीय संस्कृति में गाय को हमेशा से ही सम्मान प्राप्त हुआ है। वैदिक काल से लेकर आज तकगाय को धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में देखा गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में देवी-देवताओं का वास होता हैइसलिए इसे माता का दर्जा दिया गया है। महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय से राज्य की संस्कृति और धर्म को एक नई दिशा मिलेगी।

जैविक खेती में गोमूत्र का उपयोग

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथगाय को जैविक खेती में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। गोमूत्र का उपयोग खेती में किया जाता हैजिससे फसलों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महाराष्ट्र सरकार ने इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए गाय को '‘राज्यमाता - गोमाता’ का दर्जा दिया है।


 

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