कानून की कड़ी,बनेगी हथकड़ी अशांति की अग्नि में मानवता की आहुति कैसे रुकेगी?


लेखक-दिवाकर पाठक,

हजारीबाग (कंडाबेर),झारखंड

बांग्लादेश में कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की हो रही निर्मम हिंसा ने,हम राष्ट्रवादियों के बीच कई गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। विश्व के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे तमाम भारतीयों के बीच यह एक अति महत्वपूर्ण और चिंतनीय विषय है,जिसका तथ्यात्मक समाधान आवश्यक है। जिस प्रकार वहां के हिंदुओं की वीभत्स विभीषिका की मन व्यथित करने वाली तस्वीर सामने आ रही है,उसका हल हम राष्ट्रवादियों को ही ढूंढना होगा। क्योंकि अब हमारी सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है। जिस प्रकार हसीना सरकार की बौनी हुकूमत की तख्ता पलट कर हिंदू बहन,बेटियों और भाइयों की अस्मिता को तार-तार करते हुए,उनकी निर्मम हत्या की गई। यह घटना ने विश्व के तमाम राष्ट्रवादियों को सोचनें पर मजबूर किया है। इस पर उनके सामने सुरक्षा को लेकर कई चुनौतीपूर्ण सवाल हैं,जिसका जवाब हर किसी के लिए महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार इस अराजकता में वहां की सेना,पुलिस,जज आदि शक्तियां घुटने टेकती नजर आई,तो ऐसे में उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है? वहीं दूसरी ओर अपनी सरकार में बैठे विपक्षी दलों के नेताओं ने भी उनकी सुरक्षा को लेकर कोई बात नहीं कही, बल्कि मुंह बाए खड़े हैं। सबसे चिंतनीय बात तो यह है की इस घटना के पीछे नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के तार जुड़े रहने की खबर आई। जिस पर सरकार द्वारा उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया,पर उन्होंने इस पर कोई सफाई नहीं दी है। इसके अलावे विपक्ष का कोई भी बड़ा नेता इस पर बात करना उचित नहीं समझा। अगर थोड़ी बहुत बात भी कर रहे हैं,तो वो केवल दिखावे के लिए। सलमान खुर्शीद ने तो बांग्लादेश जैसी घटना भारत में भी होने की बात कही,तो ऐसे में आप स्वयं समझ सकते हैं की विपक्षी दलों की मानसिकता क्या है? क्या ऐसे बोल राष्ट्रवादियों की रक्षा के लिए गंभीर प्रश्न खड़ा नहीं करता। हिंसा का विरोध केवल सरकार,आरएसएस और हिंदवादी संगठनों द्वारा किया जा रहा है। इसके साथ ही विश्व के अलग-देशों में रह रहे राष्ट्रवादियों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।

      सरकार ने तो इसकी सुरक्षा को लेकर एक कमिटी भी बनाई है और वहां की अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस से बात भी करी। इस पर उन्होंने माफी मांगी और कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई की बात करते हुए,सुरक्षा की बात कही। इसके बाद यूनुस द्वारा वहां की कई हिंदूवादी संगठनों से मिलकर सुरक्षा की बात कही गई है। लेकिन इसके बावजूद भी घटनाएं रुक नहीं रहीं। विश्व की तमाम मानवतावादी संस्थाएं और हमारा विपक्ष इस मौत के मंजर को बड़े तमाशे के साथ देखते हुए,मौन है। कश्मीर,हमास,फिलिपिंस आदि के मुद्दे पर तो ये तमाम लोग खूब मुंह चलाते थे,लेकिन इस पर तो वे कुछ भी बोलना उचित नहीं समझे, क्योंकि हिंदुओं की हिंसा इन्हें पीड़ादायक नहीं लगती। राजनीति की भाषा में इसे ही वोट बैंक की राजनीति कहते हैं। बताते चलें की वोट एक ऐसा सिरप है,जिसे पीकर विभिन्न दलों के नेता स्वयं को संतुष्ट करते नजर आते हैं। आम भाषा में इसे ही कहते हैं स्वार्थभरी राजनीति। जिसमें सत्ता सुख की कामना से वोटर को हाथ जोड़ कर अपनी स्वार्थभारी बातों में उलझाते हुए वोट देने की विनती की जाती है। जिस पर हमारे भोले-भाले वोटर अपना मत देकर अधिकार खो देते हैं। इस प्रकार सच्चाई ये है की वोट दी नहीं जाती,बल्कि वोट ली जाती है। यही कारण है की वे मानवीय हिंसा पर भी कुछ बोलने का हिम्मत नहीं जुटा पाते। क्योंकि उन्हें डर होता है की कहीं मेरा वोट बैंक खराब न हो जाय। इस पर यदि गंभीरता से सोंचा जाए तो यह किसी का भला नहीं करते,बल्कि केवल स्वयं की स्वार्थलिप्सा की पूर्ति करते हैं। खैर बात चाहें जो भी हो पर मानवीय हितों की रक्षा करना,हम सभी राष्ट्रवादियों का परम् कर्तव्य है। हमें इससे मुंह मोड़ना नहीं चाहिए,बल्कि मुखर होकर शेर की तरह दहाड़ लगाना चाहिए। तभी हमारी सुरक्षा मुक्कमल हो पाएगी। वरना! अराजकता के इस साम्राज्य में हमारी रक्षा कौन करेगा? हमें स्वयं अपनी रक्षा करनी होगी। तभी हमारा अस्तित्व बच सकेगा। वरना! कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और विभाजन की त्रासदी दुहराई न जाए। अभी वर्तमान में बांग्लादेश में जो मौत का मंजर जारी है,वो किसी त्रासदी से कम नहीं। इसलिए हमें अपनी ज्ञान की आंखों को खोलने की जरूरत है। तभी हमारा अस्तित्व सच्चे अर्थों में कायम रह सकेगा। 

         वरना! आज स्वदेश में भी स्थिति ये है की आंदोलन की आड़ में,दंगे को जन्म दिया जा रहा है। तभी तो असामाजिक तत्वों द्वारा हर पर्व-त्योहारों पर अशांति की अग्नि भड़काई जाती है। जिस पर तुष्टीकरण की राजनीति भी बड़ी प्रबल दिखती है। इस प्रकार राष्ट्रवाद संक्रमित होता दिख रहा है,जिसका हल हम सभी राष्ट्रवादियों को ही करना होगा। तभी हम सृष्टि में वृष्टि से हरियाली ला सकते हैं। वरना! मरुस्थल बनाने वाले तत्व,जीवन रूपी वृक्ष को काटने पर तुले हैं। इसलिए हमेशा सावधान रहकर,मानवता के दुश्मनों पर पैनी नजर बनाए रखने की जरूरत है। तब हमारी सुरक्षा पर कोई आंच नहीं आ सकेगी। 

         हम इसे इस प्रकार समझें,जब हिंसा की आग में हिंदुओं को जलाया जा रहा है। चार गावों के जलाने की खबरें भी आईं। ऐसे विकट काल में वे बचाने की गुहार लगा रहे हैं और जीवन की भीख मांग रहे हैं। परंतु उन्हें बचाने की बात तो दूर,उनके लिए दो शब्द बोलने वाला भी कोई नहीं। विश्व की तमाम मानवतावादी शक्तियां सहित विपक्ष भी खामोश दिखा। सरकार ने तो कमिटी बनाई और सुरक्षा को लेकर अंतरिम सरकार से बात भी की। पर सच्चाई ये है की क्या केवल कमिटी का निर्माण कर देने से उनकी सुरक्षा मुक्कमल हो पाएगी? कदापि नहीं। इसके लिए सरकार को अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम सहित कई अन्य कड़े कानून बनाने होंगे। मतलब ऐसे कानून बनने चाहिए जिस पर मानवता के दुश्मनों को दंगा करने की बात तो दूर,एक बार आंख उठाकर देखने के लिए भी सोंचना पड़े। जब तक कानून की कड़ी मजबूत नहीं होगी,तब तक ऐसे मानवता के विरोधियों पर काबू पाना संभव नहीं। हां यह भी बताते चलें की इसका खामियाजा सम्पूर्ण विश्व को भोगना होगा। इसलिए विश्व के तमाम मानवतावादियों से अपील है की इसके निरोध के लिए अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करें। राष्ट्र सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर,कानून की कड़ी को मजबूत किया जाए। इसके लिए हमें चीन से सिख लेने की जरूरत है। वहां के कानून बड़े कड़े हैं,तभी तो वहां कोई दंगा नहीं होता। इस पर हमें भी सरकारों का सहयोग करना होगा। जब कानून की कड़ी मजबूत होगी,तो दंगे स्वतः बंद हो जाएंगे। इसमें कोई संशय नहीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं की कानून की कड़ी,बनेगी हथकड़ी। तभी अशांति की आग में मानवता की आहुति रुकेगी। इस पर विश्व के तमाम राष्ट्रध्यक्षों को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के जजों की सहायता से मानवहित में कानून बनाने की जरूरत है। साथ ही इस पर हर किसी को उदारता भी दिखानी होगी। इससे इसका बेहतरीन फायदा संपूर्ण विश्व के तमाम मानवतावादियों को मिलेगा। इसमें कोई दो मत नहीं। 

         इन सब के बावजूद जहां पर ऐसे हमले हो रहे हों,वहां के लोगों को डरने की बजाय उसका सर्वप्रथम मुकाबला करना चाहिए। अर्थात् इसके लिए सबसे पहले प्रशासन से मदद की गुहार लगाएं और यदि फिर भी कोई कार्रवाई न हो तो प्रशासन को लिखित आवेदन देकर यह सूचित करें की अब हम अपनी सुरक्षा की गारंटी खुद लेते हैं। इसके बाद देखिए प्रशासन तंत्र कितनी त्वरित कार्रवाई करेगा। हां इसके लिए आपको डरने की बजाय उसका डटकर मुकाबला करना होगा। तभी यह संभव हो सकेगा। आपने यह देखा होगा की जब बांग्लादेश का सुरक्षा कवच फेल हो गया,अर्थात् वहां उनकी कोई मदद नहीं की तो अंत में जाकर उनलोगों ने अपनी सुरक्षा के लिए खुद कमर कसी और इसका लाभ उन्हें मिला। इसलिए प्राथमिक सुरक्षा तो स्वयं सुनिश्चित करना होगा। तभी आगे का रास्ता आपको सफलता दिलाएगी। जिस प्रकार प्राथमिक उपचार के बाद मरीज के बचने की गारंटी लगभग सुनिश्चित होती है,उसी प्रकार ये सुरक्षा कवच भी आपको सुरक्षित रखेगी। इसलिए प्राथमिक सुरक्षा स्वयं करें। इसके लिए हमें शेर बनने की जरूरत है। 

      सारांश है की अब हमें अपनी दृष्टि को मजबूत करने की जरूरत है। हमें सरकार से  मुफ्त रेवड़ियां मांग करने की की जगह सुरक्षा की गारंटी की मांग करें। इसके लिए आप अपने विधायक,सांसद आदि से राष्ट्रविरोधी ताकतों के खिलाफ कानून बनवाने की मांग करें। फिर देखिए कैसे मानवता के दुश्मन चारो खाने चित नजर आएंगे। आप अपने जन प्रतिनिधियों से कहें की हमें हर हाल में सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए,तभी मैं वोट करूंगा। देशद्रोहियों के खिलाफ कड़े कानून बनाने की अपील करें। इस प्रकार सुरक्षा नहीं,तो वोट नहीं के नारे लगाएं। फिर देखिए आपकी जीत किस प्रकार सुनिश्चित होती है। सरकारें सक्रियता की सीढ़ियों पर चढ़ना प्रारंभ कर देंगी। बांग्लादेश के मुद्दे पर भी भारत सरकार उनसे कड़ाई से पेश आए। चुकी आप देख रहे हैं की वहां की अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस एक ओर मंदिरों में जाकर वहां के लोगों से मिलते हैं और फिर उसके बाद तुरंत हत्या की खबरें आती हैं। ऐसे में यूनुस की सरकार पर कैसे विश्वास किया जाय,की वह हमारे हिंदुओं की सुरक्षा करेगी। वहां की सेना और पुलिस तो खुद की जान बचाने में असफल है। ऐसी विकट परिस्थिति में उन्हें खुद कमर कसना होगा। साथ ही विश्व के ताकतवर देशों जैसे अमेरिका,रूस,इजरायल,भारत आदि देशों को कड़ाई से अपनी भागीदारी निभानी होगी। तभी कट्टरपंथियों पर लगाम लग सकेगी। एक ओर इसमें कहीं दो राय नहीं की मोदी विश्व के तमाम ताकतवर नेताओं की लिस्ट में आते हैं। ऐसे में इस विभीषिका पर लगाम लगाना उनके लिए कोई बड़ी चीज नहीं। क्योंकि उन्होंने विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान से सकुशल लाकर जो दिखा दिया है। 

             कुल मिलाकर,विश्व के संपूर्ण राष्ट्रवादियों को अब कमर कसने की जरूरत है। क्योंकि यह बात स्पष्ट है की जब मानवता की मौत रुकेगी,तभी आप मानव कहलाने के हकदार हैं। यही सच्चे अर्थों में विश्वकुल परंपरा की प्रकाष्ठा है। संपूर्ण विश्वकुल वंशजों को यह आश्वस्त करें की मैं तुम सब की सुरक्षा की गारंटी देता हूं।  इस प्रकार कह सकते हैं की कमर कसो ये राष्ट्रवादियों,भयमुक्त कर दो सारा विश्व। यह भी सत्य है की बिना कमर कसे,कोई कीर्तिमान हांसिल नहीं कर सकता। इस पर विपक्ष को भी सरकार का साथ देना चाहिए। जब बात राष्ट्रहित की आए,तो फिर एक हो जानें में ही भलाई है। क्योंकि मानवतावादी सिद्धांत जब तक जीवित है,तभी तक सभी का अस्तित्व है। वरना! फिर सृष्टि में वृष्टि का लाभ कहां से ले सकेंगे। विश्व के किसी भी देश में हमारे हिंदुओं को लेकर तुष्टिकरण की राजनीति नहीं होती। फिर हम अपने यहां तुष्टिकरण की राजनीति क्यों करें? जैसे ये समझें की जब तक घर सुरक्षित है,तभी तक हम सुरक्षित हैं। यह जीवन का मूल मंत्र है,जिसे हर किसी को याद रखने की जरूरत है। इसलिए देश के कर्णधार युवाओं कमर कसो और तैयार हो जाओ। क्योंकि स्वदेश को पुनः सोने की चिड़ियां बनने के साथ-साथ यहां के राष्ट्रभक्तों को शेर की दहाड़ दिखाने की जरूरत है। यह संभव भी है,क्योंकि इतिहास साक्षी है की यहां के बच्चे शेरों के बच्चों के साथ खेलकर बड़े होते हैं। अर्थात् निडर बनें और अमानवीय घटनाओं पर आवाज उठाएं। यही जीवन का मुख्य सार तत्व है,जिसका पालन हर किसी को करने की जरूरत है। इसलिए एक मंत्र दुहराएं हम न जुल्म करेंगे,हम न जुल्म बर्दास्त करेंगे। इसी आशा और विश्वास को लेकर हम आगे बढ़ें। यही सुरक्षा की सर्वोच्च कवच है,जिसका ख्याल हर किसी को रखने की जरूरत है। तभी कट्टरपंथियों के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित हो सकेगी।


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