रक्षाबंधन



'दीदी आज आप मुझे नहीं मैं आपको राखी बांधूंगा।' राखी बांधने के लिए थाल सजाती हुई बड़ी बहन से सोनू ने कहा। अपने छोटे भाई की बात सुनकर नीरा ने आरती का दीया जलाते हुए पूछा-'क्यों भला?बहन मैं हूं तुम नहीं।राखी बहनें भाई को बांधती हैं ।भाई बहन को नहीं। मेरे प्यारे भैया।भाई तो तोहफे देते हैं तोहफे। मैं भी तो देखूं मेरा प्यारा भाई मेरे लिए क्या तोहफा लाया है?'ऐसा कहकर नीरा ने अपने भाई के दोनों कपोलों को हथेली की अंजुलि में भरकर,उसके माथे पर ममता के कई चुम्बन जड़ दिए।

बहन की ममता से भावुक सोनू की आंखों से बड़ी बहन के लिए कृतज्ञता बहने लगी।भाई के भीगे कपोलों को अपनी हथेली से पोंछते हुए नीरा बोली-'क्या हुआ सोनू ?मेरे भाई।सोनू बहन से लिपटकर सुबकने लगा।दीदी-'मां पिताजी के चले जाने के बाद आपने ही मेरा पालन-पोषण किया है।आपने सारे दुख सहकर भी मुझे हर तरह की धूप से बचाया है।मैं आपको क्या तोहफा दे सकता हूं ?अभी तो मैं कुछ कमाता भी नहीं हूं ।उलटे आप ही पिछले दस सालों से मुझे मातृत्व का अनमोल तोहफा देती आ रही हैं।दीदी यह तो कोई बात नहीं कि राखी भी आप बांधें और तोहफा भी आप ही दें।'भाई की ऐसी प्यारी बातें सुनकर नीरा की आंखें भी नम हो गईं। नीरा ने सोनू का सिर कंधे से उठाया और उसके दोनों कंधों पर हाथ रखकर बोली-'अरे वाह मेरा छोटा सा सोनू तो आज बहुत बड़ा हो गया है। इतनी बड़ी बड़ी बातें तूने कहां से सीखीं?' नीरा ने थाल से दो राखियां उठाईं ।एक राखी सोनू के हाथ में देते हुए कहा-'भैय्या ना तेरी ना मेरी।यह ले एक राखी तू ले और एक मैं लेती हूं।अब से प्रत्येक रक्षाबंधन पर हम दोनों एक दूसरे को राखी बांधेंगे।'दीदी की बात सुनकर सोनू मुस्कराने लगा। नीरा और सोनू खिलखिलाते हुए राखी बांधने के लिए पहले मैं बांधूंगी ,पहले मैं बांधूंगा कहकर झगड़ने लगे।जलते हुए दीप की झिलमिल करती हुई बाती,घर के किसी बुजुर्ग की तरह गर्दन हिलाकर मानो भाई-बहन के इस प्यार को अक्षुण्ण बने रहने का आशीर्वाद देने लगी थी।


माया अग्रवाल वीणा

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