स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर-‘स्वतंत्रता संग्राम में पंजाबियों का योगदान’’, ‘‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस‘‘ तथा ‘‘हर घर तिरंगा‘‘ विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन

 


लखनऊ ,उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी के तत्वावधान में ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव‘‘ के अभियान के अन्तर्गत स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर दिनाँक 14 अगस्त, 2024 दिन बुधवार, अपराह्न 03ः00 बजे से अकादमी कार्यालय कक्ष संख्या 444, इन्दिरा भवन, लखनऊ में ‘‘स्वतंत्रता संग्राम में पंजाबियों का योगदान’’, ‘‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस‘‘ तथा ‘‘हर घर तिरंगा‘‘ विषयक एक संगोष्ठी का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया। उक्त संगोष्ठी में वरिष्ठ पंजाबी विद्वानों/लेखकों द्वारा उपरोक्त विषय पर अपने-अपने वक्तव्य प्रस्तुत किये गये।  

स० दविंदर पाल सिंह ‘बग्गा‘- आजादी की लड़ाई में पंजाबियों ने बड़ी भूमिका निभाई। बाबा राम सिंह, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राय, शहीद उधम सिंह, करतार सिंह सराभा, दीवान सिंह कालेपानी और कई अन्य वीर रत्नों ने आजादी के अंतिम लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने खून की हर बूंद बहा दी। हमारे महान राष्ट्र की स्वतंत्रता के ऐतिहासिक आंदोलन में पंजाब ने बहुमूल्य योगदान डाला। देश की स्वतंत्रता की कुल आबादी में पंजाबियों की संख्या केवल ढाई प्रतिशत होने के बावजूद स्वतंत्रता संग्राम में जीवन कुर्बान करने वालो योद्धाओं में 80 प्रतिशत पंजाबी ही थे।



स० नरेन्द्र सिंह मोंगा- पंजाब के महान शहीद लाला लाजपत राय, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, शहीद ऊधम सिंह, करतार सिंह सराभा, दीवान सिंह कालेपानी, बाबा राम सिंह, सोहन सिंह भल्ला और अन्य योद्धाओं ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अपने रक्त का एक-एक कतरा बहा दिया। स्वतंत्रता दिवस चाहे जश्न और खुशियां मनाने का अवसर होता है परंतु साथ ही यह राज्य की उन्नति के लिए नये लक्ष्य निर्धारित कर और स्वयं समीक्षा करने की घड़ी होती है। हमें यह प्रण करना चाहिए कि हम स्वतंत्रता संघर्ष के हमारे पूर्वजों द्वारा लिये गये सपनों को साकार करने के लिए स्वयं को पुनः समर्पित करना चाहिए। आज के छात्र-छात्राओं के हाथ में देश का भविष्य  है। कठोर परिश्रम के माध्यम से सर्वपक्षीय विकास और उन्नति के एक नये युग आरंभ किया जा सकता है।
प्रो० गोपालकृष्ण लालचन्दानी- 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी से एक दिन पहले हुए भारत के विभाजन और उस त्रासदी में मारे गए एवं पीड़ित लाखों लोगों की याद में 14 अगस्त को ‘‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस‘‘ के रूप मे मनाया जाता है। यह दिन इतिहास के सबसे क्रूर प्रकरण के दौरान अमानवीय पीड़ाओं का सामना करने वाले, जीवन खो देने वाले और बेघर हो जाने वाले लाखों लोगों को श्रद्धांजलि देने का दिन है।
आज हमें उन अनगिनत लोगों को याद करना चाहिए, जो विभाजन की भयावहता से प्रभावित हुए और कई तकलीफों का सामना किया। विभाजन से प्रभावित बहुत से लोगों ने अपने जीवन को फिर से संवारा और अपार सफलता प्राप्त की। आज, हम अपने देश में एकता और भाईचारे के बंधनों की हमेशा रक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराना चाहिए। अपने इतिहास को स्मृति में बसा कर, उससे सीख लेकर ही एक राष्ट्र अपने मजबूत भविष्य का निर्माण कर सकता है और एक शक्ति के रूप में उभर सकता है। इस दिवस को मनाने की परंपरा राष्ट्रनिर्माण की ओर उठाया गया मजबूत कदम है।
श्री दुर्गेश चैधरी- स्वतंत्रता आंदोलन में पंजाबियों की विलक्षण और बेमिसाल भूमिका को बड़े गर्व से याद करना चाहिए। वास्तव में वे बहादुर पंजाबी थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की सदियों पुरानी हुकूमत का अंत करने के लिए चलाये विभिन्न संघर्षों का नेतृत्व किया। भाई महाराज सिंह पहले पंजाबी योद्धा थे जिन्होंने इस महान कार्य के लिए अपना जीवन बलिदान किया था।
प्रो0 अलका पाण्डेय- स्वतंत्रता प्राप्त करने के क्रम में पंजाब में कई रणनीतिक स्वतंत्रता आन्दोलनों कीर्ति किसान सभा, कोमागाटा मारू घटना, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का आगाज़ हुआ। कोमागाटामारू घटना का उस समय भारतीय समूहों द्वारा कनाडा के आव्रजन कानूनों में विसंगतियों को उजागर करने के लिए व्यापक रूप से हवाला दिया गया था। इसके अलावा इस घटना के बाद भड़की भावनाओं को भारतीय क्रांतिकारी संगठन, गदर पार्टी द्वारा अपने उद्देश्यों के लिए समर्थन जुटाने के लिए व्यापक रूप से बढ़ावा दिया गया।
डाॅ0 रश्मि शील- जलियाँवाला बाग त्रासदी की क्रूरता ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। भारतीय जनता के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि को अस्वीकार कर दिया, जो पहले उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सेवा देने वाले दस लाख से ज््यादा भारतीयों में से लगभग आधे पंजाब से भर्ती किए गए सिख थे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई सिखों ने अपनी जान की कुर्बान दी। अंग्रेजों द्वारा फांसी पर चढ़ाए गए 121 स्वतंत्रता सेनानियों में से 93 सिख थे। पंजाबियों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने मंे दिया गया अतुलनीय बलिदान सदैव स्मरणीय रहेगा।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्री राजेन्द्र कुमार सिंह, व्यवस्था अधिकारी (इन्दिरा भवन), स० त्रिलोक सिंह, स० अजीत सिंह, श्री प्रकाश गोधवानी, श्रीमती मीना सिंह, श्रीमती अंजू सिंह, श्री महेन्द्र प्रताप वर्मा, श्री रवि यादव तथा प्रियंका त्रिपाठी आदि उपस्थित थे।
अन्त मंे अकादमी के निदेशक जी के प्रतिनिधि के रूप मंे एवं कार्यक्रम काॅर्डिनेटर श्री अरविन्द नारायण मिश्र जी ने संगोष्ठी में उपस्थित सम्माननीय वक्ताओं/विद्वानों को अंगवस्त्र एवं स्मृतिचिन्ह भेंट कर सम्मानित करते हुये सभी का साधुवाद आभार व्यक्त किया।  

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