खेल मैदान (कहानी)-डॉ0 संदीप कुमार सिंह
बच्चों के खेल मैदान शहरों से ऐसे गायब हो रहे हैं जैसे देश से गौरैया, गिद्ध और टाइगर; नेताओं से समाज सेवा और परिवारों से एक-दूसरे के प्रति लगाव। जो कुछ मैदान बचे भी हैं, उनमें लंबी-लंबी घास उग आई है। वे इस लायक नहीं रह गए हैं कि उनमें कोई खेल खेला जा सके। फिर भी हम तो ठहरे आशावादी। ओलंपिक में हम आस लगाते हैं कि सारे मेडल हमारी झोली में ही गिरेंगे।
इंटर कालेजों में साल के कुछ दिन खेलों का मेला लगता है; और फिर अगले साल तक के लिए बंद हो जाता है।
स्कूलों में खेलों के आयोजन के लिए डीआईओएस कार्यालय से कैलेंडर जारी किया गया। कुछ स्कूलों के शारीरिक शिक्षकों (पीईटी) ने खिलाड़ियों की खोजबीन शुरू कर दी। कुछ दूसरे स्कूलों ने पूर्व वर्षों की भाँति मौन व्रत कायम रखा। कुछ स्कूलों में शारीरिक शिक्षक नहीं थे और कुछ में थे तो उनके प्रधानाचार्य और शारीरिक शिक्षक को खेल से दूर-दूर तक कोई लगाव नहीं था।
एचएम इंटर कालेज को प्रत्येक वर्ष तहसील स्तर की प्रतियोगिताओं को कराने के लिए संकुल चुना जाता था; क्योंकि, पूरी तहसील में केवल एचएम इंटर कालेज के पास खेल मैदान था। खेलों में कालेज के प्रधानाचार्य और पीईटी संतोष सिंह की रुचि के कारण कालेज में खेल गतिविधियाँ होती रहतीं थीं।
बरसात के मौसम में मैदान में कोई खेल गतिविधि नहीं होती थी। ऐसी स्थिति में खेल का मैदान छोटे बड़े सभी तरह के वाहनों का आरामगाह या यूँ कहें कि टैक्सी स्टैंड बन जाता था। भारी वाहनों से रौंदे जाने के कारण पूरे मैदान में गड्ढे ही गड्ढे नजर आ रहे थे।
गड्ढों को भरने के लिए मिट्टी की आवश्यकता थी; लेकिन, सरकार ने मिट्टी की खुदाई पर रोक लगा रखी थी। चोरी-छिपे या पुलिस वालों को नजराना देकर मिट्टी मँगाई जाती थी।
संतोष सिंह ने प्रधानाचार्य से गड्ढ़ों को भरने के लिए मिट्टी मँगाने की बात की।
"सर, मैदान में गड्ढ़े बहुत हैं, बिना मिट्टी डलवाए खेल नहीं हो सकते।"
"मिट्टी मँगवा लो।"
"सर, मिट्टी की खुदाई पर सरकार ने रोक लगा रखी है।"
"अरे! संतोष जी पता करो कोई तो मिट्टी की खुदाई करवा रहा होगा? रोज तो मिट्टी के ट्रैक्टर आते हैं।"
संतोष सिंह ने अपने स्तर से काफी प्रयास किया। काफी खोजबीन के बाद पता चला कि रईस मिट्टी की खुदाई का काम करता है। संतोष सिंह ने रईस को बुलवा लिया।
संतोष सिंह ने रईस से मिट्टी के रेट के बारे में पूछा तो उसने कहा-
"एक टेक्टर के एक हजार।"
"बहुत अधिक रेट बता रहे हो।"
"साहब एक टेक्टर माटी के लिए पुलिस वालों को दो सौ रुपया देना पड़ता है।"
"दो सौ रुपए पुलिस वालों को, क्यों?"
"सरकार ने माटी खोदने पर रोक लगा रखी है, वे कहते हैं कि माटी खोदना अबैध है और अबैध काम को बैध बनाने के लिए कुछ तो नजराना देना पड़ेगा।"
संतोष सिंह ने उसे समझया कि मिट्टी कालेज के खेल मैदान को ठीक करने के लिए मँगाई जा रही है। अपने घर के लिए थोड़े न मँगवा रहा हूँ।
रईस ने कहा -"साहब वे किसी की बात नहीं मानते।"
"यदि एसडीएम साहब से परमीशन दिलवा दी जाए तो?"
"अगर परमीशन दिलवा दोगे तो मैं आठ सौ रुपया के भाव से माटी गिरा दूँगा।"
एसडीएम साहब एचएम कालेज के पदेन प्रबंधक थे। इसलिए मिट्टी मँगवाने के लिए आसानी से अनुमति मिल गई।
संतोष सिंह ने एसडीएम साहब से अनुमति लेकर एक कॉपी कोतवाल साहब को तथा एक कॉपी रईस को दे दिया। कोतवाल साहब ने रईस से रात में मिट्टी गिराने को कहा क्योंकि दिन में सड़क पर वाहन बहुत अधिक होते हैं।
अगले दिन शाम सात बजे रईस का फोन आया-"साहब पुलिस वालों ने टेक्टर पकड़ लिया है, तुम आ जाओ।"
संतोष सिंह तुरंत ही रईस के पास पहुँच गए। उन्होंने सोचा कि एसडीएम साहब की अनुमति के बावजूद पुलिस वालों की हिम्मत कैसे हुई कि वे ट्रैक्टर रोक लें।
संतोष सिंह के पहुँचते ही एक पुलिस वाला थोड़ा डरते-डरते बोला-"सर जब इसने एसडीएम साहब का पत्र दिखाया तो मैंने उसी समय ट्रैक्टर छोड़ दिया था।"
उन्होंने रईस से पूछा कि वह पुलिस वाला तो कह रहा है कि उसने छोड़ दिया है फिर तुमने मुझे क्यों बुलाया?
"अभी कोतवाल साहब आ रहे हैं, उनसे एक बार बात कर लो।" रईस ने कहा।
एक घण्टे इंतजार के बाद कोतवाल साहब आए। वे नशे में होने के बावजूद पूरे होशोहवास में थे। संतोष सिंह ने अपना परिचय दिया और एसडीएम साहब की अनुमति वाला पत्र दिखाया तो उन्होंने कहा-"सर, आपसे हमारा कोई मतलब नहीं। आपने इसे जो पैसे दिए हैं, मैं तो उसमें से माँग रहा हूँ।"
संतोष सिंह समझ गए कि कोतवाल से ज्यादा बहस करने का कोई फायदा नहीं है। वे चुपचाप कोतवाल के पास से हट गए। उन्होंने रईस से कहा तुम जानो तुम्हारा काम जाने। मैंने तो तुम्हें परमीशन लाकर दे दिया। अब तुम थाना, पुलिस और कोतवाल से कैसे निपटते हो? ये तुम जानो।
रात भर में उसने दस की जगह बीस ट्रैक्टर मिट्टी गिराई। दस खेल मैदान में और दस किसी दूसरे के यहाँ।
डॉ0 संदीप कुमार सिंह
कहानी
नूतन कहानियां हिंदी मासिक
अप्रेल अंक -2024 में प्रकाशित हो चुकी है।