ठहर गईं… बोलतीं रेखायेँ ‼, वरिष्ठ कार्टूनिस्ट गणेश चंद्र डे का निधन
लखनऊ 05 जून 2024, कहा जाता है कि एक चित्रकार का चित्र बनाना वास्तव में उसके अपने आसपास और अपने समय को देखने की प्रक्रिया का ही हिस्सा होता है। चित्रों के जरिए अपने मन की बात रखना या फिर किसी घटना को बेहद रोचक तरीके से पेश करने की क्षमता रखने वाले बतौर कार्टून या स्केच आर्टिस्ट की श्रेणी में आते हैं। अपनी कला का सहारा लेते हुए गंभीर से गंभीर मुद्दों व सामाजिक परिदृश्यों व कुरीतियों पर बेहद रोचक तरीके से कुठाराघात करते हैं। लेकिन वह इस बात का बेहद ख्याल रखते हैं कि उनके द्वारा बनाए गए कार्टून से किसी की भी भावनाएं आहत न हों और वह अपनी बात को भी बेहद सरल तरीके से सबके सामने रख पाएं। वहीं बच्चों के लिए कार्टून बनाने के लिए किसी एक नए काल्पनिक कार्टून किरदार को जन्म देना भी कार्टूनिस्ट का ही काम होता है।
हम यहाँ बात कर रहे हैं एक ऐसे वरिष्ठ कार्टूनिस्ट कलाकार गणेश चन्द्र डे की, जिनका निधन 2 जून 2024 को प्रातः हो गया। इस निधन की सूचना उनकी पुत्री शुभ्रा डे ने दिया। कार्टूनिस्ट गणेश डे कला के माध्यम से प्रसिद्ध रहे भारत के कलाकार यामिनी राय के कर्मभूमि (के घर से लगभग 40 किमी) स्थान बांकुरा वेस्ट बंगाल के थे। गणेश दादा किसी संस्थान से कला की कोई शिक्षा नहीं प्राप्त की थी। बचपन से रेखांकन करने का शौक़ रहा। दादा ने अपनी जीविका के लिए एक पान की दुकान चलाते थे और खाली समय मे रेखांकन करते थे। जिसे देखते हुए काफी लोगों ने उन्हें इस क्षेत्र में जाने के लिए कहा। फिर इसी तरफ मुड़ गए और तब से अंतिम स्वास तक रेखांकन करते रहे। और इसी को अपनी जीविका का साधन भी बनाया।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि गणेश डे ने अपना सफर बतौर कार्टुनिस्ट ‘जनधारा ‘ से शुरु किया और आगे इस कड़ी में गणेश डे 1989 से 1994 तक अनेकों पत्र पत्रिकाओं में रेखांकन किया। ‘The Chronicle’ में भी काम किया । लोगों की सलाह पर गणेश डे लखनऊ आये और यहाँ उन्होनें 1996 से 1998 तक ‘समता लहर’ ‘स्वतंत्र भारत’ और ‘THE TIMES OF INDIA’ , पायनियर, स्वतंत्र भारत,राष्ट्रीय स्वरूप जैसे अख़बारों में भी अपने कार्टुनों के माध्यम से छाप छोड़ी और 1995 से बहुत से सोसल सेक्टर में पूरी तन्मयता से अपने रेखांकन को करते रहे। गणेश डे ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश में अपने रेखांकन के बहुत काम किये। गणेश डे के चित्रों में रेखांकन का बड़ा महत्व था। कम से कम शब्दों का सहारा लेते हुए अपने दृश्य कला भाषा का ज्यादा प्रयोग करते थे।
अपनी भावनाओं, अपनी कला दृष्टि ,अपने विचारों को अपनी कला अभिव्यक्ति का प्रमुख मार्ग बनाया। गणेश डे अपनी कला का इस्तेमाल समाज में फैली हई कुरीतियों का खाका तैयार कर लोगों को जागरुक करने में करते थे। अनगिनत प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर अपनी सोच को चरितार्थ भी किया। और अंतिम समय तक उसी सोच के साथ कार्य किया । कार्यशाला आयोजनों के साथ-साथ वह कई समाजसेवी संस्थानों के साथ भी जुड़े रहे, और चित्रकला की बारिकियों और गुणों को लोगों के साथ साझा करते रहे ।
गणेश डे का जन्म 5 अक्टूबर 1953 को हुआ था। वे 71 वर्ष के थे । उन्होने उम्र के अंतिम पड़ाव में भी निरंतर काम किया। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। कभी निराश भी नहीं हुए। एक लंबे समय से संघर्ष और विभिन्न पड़ाव से गुजरते रहे । पत्नी के साथ बंगाली क्लब के सामने, हीवेट रोड (शिवा जी मार्ग), लखनऊ में एक किराए के रूम में रहते थे। तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपने मन पसंद कार्य करते रहे। उनके हाथ से निकले हुए एक एक रेखाएं समाज की दशा और दिशा दोनों को चुनौती देती है। समाज में कला और कलाकारों के प्रति जो भाव होने चाहिए वो नहीं होने से निराश भी थे। निराशा के कारण वे कहते थे कि " अब डिजिटल समय मे मेरे द्वारा बनाये कार्टून को लेकर चिंतित हूँ क्योंकि अब इस उम्र के पड़ाव में डिजिटल काम करना सम्भव नहीं "। आज कलाकार के लिए 'सम्मान' से अधिक जरूरी है 'काम' और 'पैसा'।
गणेश डे को लोग प्यार से 'दादा' कहते थे। दादा की जिंदगी उन कलाकारों की सी रही जिन्हें कभी कोई सरकारी मदद नही मिली। किसी कला संस्थान ने उनकी मदद के लिए कदम नही उठाया। दादा कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ काम कर कुछ संसाधन जुटाते रहे। वे समसामयिक घटनाओ पर अपने कार्टून के लिए अपनी अभिव्यक्ति का प्रदर्शन करते रहे।
दादा जैसे कलाकार समाज और सरकार दोनो के लिए धरोहर थे। पर दिखावटी चमक में दादा और उनकी कला की कद्र कंही खो सी गई थी। यह किसी भी देश और समाज के लिए अच्छे संकेत नही है। दादा नई पीढ़ी और बच्चो को मुफ्त कार्टून कला सीखने को तैयार रहते थे। जिससे यह कला कभी खत्म ना हो।
एक वृद्ध संघर्षरत किंतु कला और रंगों से आत्मिक जुड़ाव रखने वाले कार्टून आर्टिस्ट गणेश डे दादा अब इस दुनियाँ से अलविदा कर गए हैं। उनकी बोलती रेखाएँ अब ठहर सी गईं हैं। लेकिन उनकी स्मृतियाँ सदैव हमारे हृदय मे रहेगी। सोशल मीडिया के माध्यम से देश भर के तमाम कलाकारों,कार्टूनिस्ट ने उन्हे भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।