हम भूले अपनी बलिदानी बेटी रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस को
5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर जनपद बांदा उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में पैदा हुई दुर्गावती का बलिदान 24 जून 1564 में हुआ। 40 वर्ष केे अपने छोटे से जीवन काल में लगभग 52 युद्ध लड़े और उनमें से 51 युद्धों में विजय प्राप्त करने बाली बुन्देलखण्ड की वीरागंना बेटी को नाराहट के मधुकर शाह की तरह भूल गये।संवेदनाओं की बात करते करते हम कितने असंवेदशील हो गये जो अपन पूर्वर्जो के इतिहास को जानने को प्रयास तक नहीं करते है। मालवा के सुल्तान बाज बहादुर से लेकर अकबर तक मुगलों के अनेक भारी आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब देने वाली दुर्गावती ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए आत्मबलिदान दिया। कोई दुश्मन उनको देह को हाथ तक नहीं लगा सका क्या अद्भुत अवतारी थीं रानी दुर्गावती कि विवाह के मात्र चार वर्ष बाद ही पति दलपत शाह की मृत्यु के कारण पूरे राजकाज का बोझ सिर पर आने के बाद भी न केवल एक वर्ष के अपने बेटे की परवरिश की कि निरंतर युद्ध के मैदान में भी चीरता दिखाई।
सोलह वर्ष के शासन काल में एक ओर जहां दुर्गावती लगभग 52 बड़े युद्धों में रणचण्डी की तरह टूटती रहीं, वहीं दूसरी ओर राजा की जनता को
के लिए पूरी संवेदनाओं के साथ सक्रिय रहीं। जल संरक्षण के क्षेत्र में रानी दुर्गावती के योगदान को मानकों में सबसे ऊपर रखा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अपने सहयोगियों के प्रति ऐसा असीम स्नेह करती थीं कि उनके नाम पर कई बांध तालाब और बावड़ियां बनाई अपने सहयोगी के नाम पर निर्मित आधारताल आज भी जबलपुर में रानी के जल संरक्षण के उच्च मानकों की गाथा गौरव के साथ कह रहा है। शीया वीरता रानी दुर्गावती के व्यक्तित् का एक पहलू था। वो एक कुशल योद्धा होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक थीं और उनकी छवि एक ऐसी रानी के रूप में भी थी, जो प्रजा के कड़े को पूरी गहनाई से अनुभव करती थीं। इसीलिए गोंडवाना क्षेत्र में उन्हें उनकी वीरता और अदम्य साहस के अलावा उनके
के लिए भी याद किया जाता है। दुर्भाग्य से 1947 को स्वतंत्रता के बाद भी लंबे समय तक रानी दुर्गावती जैसी वीरांगनाओं और शूरवीरों की स्मृतियों को संजोए रखने के