द्वार पड़ा मैं वोटर तेरे ......!
।।कविता।।
चुनाव आ गया सर पर मेरे।
द्वार पड़ा मैं वोटर तेरे ।
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मुझको अपने गले लगा लो।
सारे शिकवे गिले भुला लो।।
जीत गया जो वोट से तेरे।
फिर आऊंगा शाम सबेरे।।
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काम आपका सब कर दूंगा।
दुःख ना कोई होने दूँगा।
बीती बाते याद ना करना।
हार जाऊंगा मैं तो वरना।।
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आशीर्वाद मांगने मैं आया हूँ।
भाग्य विधाता दर पे तेरे।।
चुनाव आ गया सर पे मेरे।
द्वार पड़ा मैं वोटर तेरे ।।
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बिजली पानी सड़क खंडजा।
शौचालय आवास मैं दूँगा।
धन धान्य से घर भर दूँगा।
तू सर पर मेरे हाथ जो फेरे।।
जीत गया जो वोट से तेरे।
फिर आऊंगा शाम सबेरे।।
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अपनी आवाज मुझे बना लो।
दिल मे अपने मुझे बसा लो।
काम के लिए मुझको अपने।
जब चाहे तूम मुझे बुला लो।।
मैं सेवक तूम स्वामी मेरे।
जीत गया जो वोट से तेरे।
फिर आऊंगा शाम सबेरे।
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प्यार मोहब्बत भाई चारा।
पर सेवा ही धर्म हमारा।
एक बार आजमा कर देखो।
याद करोगे जीवन सारा।।
बादल गम के हटेंगे तेरे।
द्वार पड़ा मैं वोटर तेरे ।।
जीत गया जो वोट से तेरे ।
फिर आऊंगा शाम सबेरे ।।
चुनाव आ गया सर पर मेरे ।
द्वार पड़ा मैं वोटर तेरे।।
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मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी
मधु गोरखपुरी
कलिंदीपुरम, जागृति विहार प्रयागराज