गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में लेख शृंखला - भाग 4
ईश्वर और गुरु
ईश्वर और गुरु एक ही होते हैं । गुरु अर्थात ईश्वर का सगुण रूप और ईश्वर अर्थात गुरु का निर्गुण रूप, जिस प्रकार बैंक की अनेक शाखाएं होते हैं, उन शाखाओं में से हमें नजदीक की शाखा में खाता खोलकर पैसे जमा करना आसान होता है। दूर की मुख्य शाखा में ही जाकर पैसे जमा करने की तकलीफ लेना आवश्यक नहीं होता । उसी प्रकार भाव- भक्ति, सेवा, त्याग, दिखाई न देने वाले ईश्वर के लिए करने की अपेक्षा उनके सगुण रूप अर्थात गुरु के संग कार्य में सहयोग करना आसान होता है। निकट की शाखा में पैसे जमा करें तो भी वह मुख्य खाते में जमा होते हैं, उसी प्रकार गुरु के कार्य में या गुरु द्वारा जो सेवा कार्य किया जा रहा है वह करने पर वह ईश्वर तक ही पहुंचती है ।
वामन नाम के पंडित ने पूर्ण भारत घूमकर बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित किया और उनके द्वारा उन्होंने पराजय पत्र भी लिखवा लिया । वह विजय पत्र लेकर जा रहे थे तब शाम को एक पेड़ के नीचे पूजा करने के लिए बैठ गए। तभी पेड़ की एक टहनी पर एक ब्रह्मराक्षस को बैठा हुआ देखा । जब एक दूसरा ब्रह्म राक्षस पास की टहनी पर आकर बैठने लगा तब पहले ने कहा कि यह जगह वामन पंडित के लिए है क्योंकि उनको अपनी विजय का बहुत घमंड हो गया है वह सुनते ही वामन पंडित ने अपने सभी प्रशंसा पत्र को फाड़ डाला और हिमालय पर तपस्या करने के लिए निकल पडे । कई वर्षों तक तप करने के पश्चात भी जब ईश्वर के दर्शन नही हुए तो उन्हें बहुत निराशा हुई और वह ऊंचाई से कूद पडे परन्तु ईश्वर ने उन्हे बचा लिया और सिर पर बायाँ हाथ रखकर आशीर्वाद दिया । उसके पश्चात दोनो में यह संवाद हुआ :
पंडित : सिर पर बायाँ हाथ क्यों रखा दायाँ क्यों नही ?
ईश्वर :वह अधिकार गुरु का है ।
पंडित : गुरु कहां पर मिलेंगे ?
ईश्वर :सज्जनगढ़ में ।
उसके पश्चात वामन पंडित सज्जनगढ़, समर्थ रामदास स्वामी के दर्शन के लिए गए, समर्थ दास जी ने उनकी पीठ पर दायाँ हाथ रख कर आशीर्वाद दिया ।
पंडित : सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद क्यों नहीं दिया ?स्वामी जी : अरे ईश्वर ने हाथ रखा ही है ।
पंडित : फिर ईश्वर ने सिर पर हाथ रखने का अधिकार गुरु का है, ऐसा क्यों बोला ?
स्वामी : ईश्वर का दायाँ और बायाँ हाथ एक ही है, ईश्वर और गुरु एक ही है यह अभी तक तुम्हें कैसे नहीं ज्ञात हुआ !
इस प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि ईश्वर और गुरु एक ही होते हैं।
संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ 'गुरुकृपायोग'
श्री. गुरुराज प्रभु
सनातन संस्था
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