।।याचना।।
सम्हालो यह अपना संसार,
मुझे दो मेरा प्यारा प्यार।
यहाँ है पापों का परिताप,
प्रमादों का है प्रलय -प्रलाप।
अनिच्छा इच्छा का अभिशाप,
जिसे सुन जी जाता है काँप।
इसी से कहता हूँ हर बार-
मुझे दो मेरा प्यारा प्यार।
खड़ा सिर पर ले काल-कृपान,
नहीं यों भी मिटता अभिमान।
न होता आशा का अवसान,
अहो!यह कैसा है अज्ञान।
सहूँ कब तक माया की मार,
मुझे दो मेरा प्यारा प्यार।
हुई ममता-मद से मतिमंद,
जकड़ रक्खा है भ्रम मय फंद।
इसी से पाता हूँ दुख द्वन्द,
नहीं हो सकता हूँ स्वच्छंद।
करूँ फिर कैसे आत्मोद्धार-
मुझे दो मेरा प्यारा प्यार।
अगम आहों का पारावार,
पुरानी नैया भारी भार-
भरी है, कैसे होगी पार,
अरे ओ मेरे प्रिय पतवार।
डुबाओ या करदो उस पार,
किन्तु दो मेरा प्यारा प्यार।