गीत ----------- देख समय की उलट चाल को दऊआ भी हैरान ।
गीत
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देख समय की उलट चाल को
दऊआ भी हैरान ।
पुरवैया से न बतियाती
अब खेतों की धान ।
शहरों में जा कर गाँवों ने
खोया भोलापन ।
पहले जैसे रहे न रिश्ते
रहा न निश्छल मन ।
निंदा रस में डूब रहे है आज मंच
के गान ।
देख समय की उलट चाल को
दऊआ भी हैरान । ।
नाना नानी के किस्ते अब
धर में कौन सुने ।
गाँवो का कलुआ भी देखो
शहरी ख्वाब बुने ।
नैतिकता ने छोड़ दिये है गीतों के
मैदान ।
देख समय की उलट चाल कोरोना
दऊआ भी हैरान ।।
पहले जैसा अपनेपन को
गाँवों में पाना ।
दुर्लभ जैसे सींग गधे के
सिर पर उग आना ।
पसर रहा है झूठ आजकल
धर धर के दालान ।
देख समय की उलट चाल को
दऊआ भी हैरान ।
आभासी दुनियां की छवियां
धर धर में छाई ।
डरा रहीं अपने को अब तो
अपनी परछाईं ।
धर की खूंटी पर लटके है
बड़े बड़ो के मान ।
देख समय की उलट चाल को
दऊआ भी हैरान ।
शिवसेन जैन संघर्ष
शहडोल