स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर-सोने की चिरैया यह भारत देश मेरा था......
सोने की चिरैया यह भारत देश मेरा था,
धन-धान्य वैभव की कमी न थी इसमें ।
भारतीय वीरों की वीरता की शानी नहीं,
फिर भी यह ग़ुलाम हुआ क्या कमी थी इसमें ।।
सद्गुण विकृति के शिकार हुए पृथ्वीराज,
क्षमा शीलता की हद कर दी थी इनने ।
उसी एक भूल का परिणाम भारत देश,
सहस्रवर्ष दासता का भोगा था क्षण में ।।1।।
सनातन संस्कृति दासता में विलुप्त प्राय,
भूल गये आन-बान स्वाभिमान क्षण में ।
स्वार्थपरता का भाव ऐसा जगा जन-जन में,
राष्ट्र राष्ट्रीयता का भाव नहीं मन में ।।
अपने हित साधन में ऐसा हुए अलमस्त,
खण्ड-खण्ड करके देश बांट दिया क्षण में ।
उसके प्रभाव से अभी तक मुक्ति नहीं,
भेदनीति, राजनीति, अर्थनीति सबमें ।।2।।
समता, समरसता, समानता की जरूरत आज,
सबको ले साथ चलें भेदनीति टाल दें ।
भारत माँ के सपूत हैं सभी भारतीय,
मातु अर्चना निमित्त सभी निज भाल दें ।।
कटुता,कुटिलता, भेदभाव नीति त्यागो,
शुचिता, सहजता, निश्छलता का भाव दें ।
भारत यह माता है हमारी और आपकी भी,
माता के हेतु तन,जीवन, धन गार दें ।।3।।