महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि 18 जून पर श्रद्धा सुमन अर्पित
हमीरपुर 18 जून 2020 लॉकडाउन को ध्यान में रखकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर वर्णिता संस्था के तत्वावधान में विमर्श विविधा के अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत सत्तावन के समर की शेरनी
महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि 18 जून पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर भवानी दीन ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बुंदेलखंड का एक अलग स्थान रहा है। प्रथम स्वातन्त्र्य समर के प्रारंभ होने के पहले ही बुंदेल क्षेत्र में महोबा के सूपा में बुढ़वा मंगल के बहाने बुंदेल शासकों की बैठक के बाद 1842 में महाराज परीक्षित ने गौरो के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था। तत्पश्चात 18 57 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई ने अप्रतिम भूमिका निभाई। जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। रानी लक्ष्मीबाई सही मायने में आजादी के संघर्षी क्षेत्र में अवंती बाई लोधी के बाद बुंदेलखंड की दूसरी वीरांगना थी।लक्ष्मीबाई का 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में मोरोपंत तांबे के घर जन्म हुआ था ,मां का नाम भागीरथी बाई था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था। लेकिन प्यार में इन्हें मनु कह कर पुकारा जाता था, मनु स्वभाव से चंचल थी। इसलिए इन्हें छबीली भी कहा जाता था। मनु ने बचपन में ही शास्त्र और शस्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर ली थी। मनु का 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर से विवाह हुआ था। शादी के बाद इनका नाम रानी लक्ष्मीबाई रखा गया। 1851 में रानी लक्ष्मीबाई के एक पुत्र पैदा हुआ, जिसकी चार माह बाद मृत्यु हो गई, 21 नवंबर 1853 में राजा गंगाधर राव का निधन हो गया। राजा ने अपने नजदीकी रिश्तेदार से आनंद राव नाम के एक बालक को गोद लिया। जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। गोरों ने दत्तक पुत्र की मान्यता प्रदान नहीं की। साथ ही अंग्रेजों ने झांसी को अपने राज्य में मिला लिया। गोरों ने खजाना हड़प कर लिया। लक्ष्मी बाई को झांसी के रानी महल में रहना पड़ा, किंतु रानी ने हिम्मत नहीं हारी। स्त्री सैन्य दल को खड़ा किया। सेना को सुसज्जित किया। फिर रानी ने यह घोष किया कि मैं झांसी नहीं दूंगी, नाना साहब, तात्या टोपे, अली बहादुर द्वितीय, बांदा के नवाब और कुंवर सिंह जैसे महान सूरमाओं ने रानी का साथ दिया। मॉर्च 1858 में अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। दो हफ्तों की लड़ाई के बाद भितरघातियों के कारण रानी की हार हुई, रानी झांसी से बचकर कालपी पहुंची, रानी ने कोंच, कालपी और ग्वालियर में गोरो का डटकर मुकाबला किया। देशी रियासतों के राजाओं की गुटबाजी, स्वार्थपरता और विलासिता ने गोरों को अवसर देकर विजय दिलाई ,रानी ग्वालियर के निकट कोटा के सराय में गोरों से लड़ते हुए 18 जून 1858 को वीरगति प्राप्त हुई, रानी शहादत की वह फसल बो गई ,जिसे कालांतर में अंग्रेज काट नहीं पाये। देश ऐसी वीरांगनाओ के कारण ही 1947 में आजाद हो गया। रानी के योगदान को कभी भी योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम में अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, राधारमण गुप्त, बब्बू द्विवेदी, कल्लू चौरसिया और अजय गुप्ता मौजूद रहे।