क्यों ईमानदारी फांसी पर झूल गई ?


राजस्थान के सिंघम कहे जाने वाले थानाधिकारी विष्णु दत्त बिश्नोई का शव उनके सरकारी आवास पर फांसी के फंदे पर लटका मिला जिसके बाद प्रशासन व सियासी जगत में हड़कंप मच गया. प्रदेश की राजनीति और प्रशासन में भूचाल खड़ा हो गया. बिश्नोई पिछले कुछ दिनों से तनाव में थे तथा नौकरी छोड़ना चाहते थे. दरअसल, बिश्नोई की छवि विभाग में एक ईमानदार अफसर की थी. जिसने अपने क्षेत्र में कई तरह के अपराधों पर अंकुश लगाया था. शराब माफिया हो या विभिन्न मादक पदार्थों के तस्कर हो सभी के आंखों की किरकिरी बने बिश्नोई ने क्षेत्र की जनता का दिल जीत लिया था. लेकिन बिश्नोई पर ऐसा कौन सा दबाव आया कि उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा?


हजारों फॉलोवर, तेज तर्रार-ईमानदार अफसर की छवि-


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विष्णुदत्त एक तेज तर्रार अफसर थे। पुलिस महकमे में सामाजिक नवाचारों को लेकर उनकी कार्यप्रणाली खासी चर्चाओं में रहती थी। उनकी लोकप्रियता का इसी से पता चलता है कि सोशल मीडिया पर उनके हजारों की संख्या में फॉलोवर थे। महकमे में विष्णुदत्त की एक ईमानदार छवि थी। वे मूल रुप से रायसिंहनगर, हनुमानगढ़ के रहने वाले थे। वर्ष 1997 में पुलिस विभाग में सबइंस्पेक्टर भर्ती हुए थे। उनके चाचा सुभाष विश्नोई भी एडिशनल एसपी रहे है।


विष्णुदत्त विश्नोई बेस्ट पुलिसकर्मियों में से एक थे, यह पुलिस विभाग के लिए एक बड़ा लॉस है. सीआई विष्णुदत्त विश्नोई चूरू के राजगढ़ थाने में एसएचओ थे. उसी दिन वो इलाके में हुई एक हत्या के मामले में देर रात तक वह जांच कर रहे थे, सुसाइड नोट में विश्नोई ने लिखा है कि उनके चारों तरफ इतना दबाव था कि वे इसे झेल नहीं सके. उन्होंने खुद के तनाव में होने की बात कही. वकील को मैसेज भेज कर उन्होंने लिखा कि उन्हें गन्दी राजनीति के भंवर में फंसा दिया गया है. इसी मैसेज में उन्होंने बताया था कि वे सेवा से मुक्त होना चाहते हैं. उन्होंने लिखा था कि थाना भवन के निर्माण में उन पर 3.5 करोड़ रुपए का गबन का आरोप मढ़ा जा रहा है.


मामले में गरमाई राजनीति-


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विष्णुदत्त विश्नोई के सुसाइड के बाद राजनीति भी गरमा गई है। घटना के बाद वहां पूर्व विधायक मनोज न्यांगली और पूर्व सांसद कस्वां राजगढ़ थाने पहुंचे। वहां धरने पर बैठ गए। स्थानीय लोगों ने कांग्रेस विधायक के खिलाफ नारेबाजी की। वहीं, मामले में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ट्वीट कर कहा कि इस घटना ने कांग्रेस सरकार के सिस्टम पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है।


थानाधिकारी की आत्महत्या एक गम्भीर घटना है और यह हमारी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रही है। सरकार को इसकी जांच करवा कर तथ्यों का पता लगाना चाहिए कि ऐसे क्या कारण रहे की एक थानाधिकारी को आत्महत्या करनी पड़ी।


थाने का पूरा स्टाफ क्यों चाहता है ट्रांसफर?


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सीआई विष्णु दत्त विश्नोई सुसाइड केस के बाद थाने का अधिकतर स्टाफ ट्रांसफर चाहता है. सीआई के सुसाइड के बाद थाने के स्टाफ ने बीकानेर रेंज के आईजी को लैटर लिखा है कि वे भी थाना छोड़ना चाहता हैं, उनका भी ट्रांसफर कर दिया जाए. इस थाने से और शहर के अन्य थानों में लगा दिया जाए. इसमें अधिकतर पुलिस कार्मिकों ने हस्ताक्षर भी किए हैं. हांलाकि इस लैटर के बारे में अफसर मीडिया से कुछ बोल नहीं पाए.


आत्महत्या की घटना से आक्रोशित जनता ने क्षेत्रीय कांग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. नारेबाजी करने वालों का आरोप था कि थानाधिकारी ने विधायक के दबाव में आकर आत्महत्या की है. वहीं कृष्णा पूनिया ने कहा है कि विश्नोई से 5-7 बार बैठक में ही उनकी मुलाकात हुई थी. विधायक ने बताया कि उन्होंने विश्नोई के बारे में सुन रखा था, लेकिन कभी अकेले में मुलाकात नहीं हुई. विश्नोई के बारे में ये भी कहा जा रहा है कि वो अपने थाने के कुछ पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर किए जाने से नाराज थे. आरोप है कि विधायक पूनिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात कर ऐसा कराया था. अब तक 13 थानों में रह चुके विश्नोई की आत्महत्या के मामले में एक क्षेत्रीय गैंगस्टर की गैंग का नाम भी सामने आ रहा है, क्योंकि वो जिस मर्डर केस की जांच कर रहे थे, उसके तार इसी गैंग से जुड़े थे.


सीबीआई जांच की मांग-


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21 साल से सेवारत विश्नोई वरिष्ठ अधिकारियों के भी चहेते थे. विष्णुदत्त राज्य के शीर्ष 10 एसएचओ में शामिल थे. पुलिसकर्मियों के लिए राजनीतिक, सामाजिक और आपराधिक दबाव आम बात है, जो विभाग में भर्ती के पहले दिन से ही शुरू हो जाता है. उन्होंने कहा कि सभी क्षेत्रों के वरिष्ठ अधिकारी सिफारिश करते थे कि अपराध को नियंत्रित करने के लिए उनके इलाके में विष्णुदत्त की पोस्टिंग की जाए. चूरू के राजगढ़ में भी अपराध नियंत्रण के लिए ही विष्णुदत्त की पोस्टिंग की गई थी. वहां उन्होंने अच्छा काम किया था, लेकिन आत्महत्या के पहले कैसी परिस्थितियां बनीं, ये जांच का विषय है. इसकी सच्चाई सीबीआई जांच के बिना सामने नहीं आएगी.


क्या ईमानदारी फांसी पर झूल गई ?


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विष्णुदत्त विश्नोई ऐसे अधिकारियों में से थे, जो हमेशा ईमानदारी से काम करते थे. उन्होंने कभी जात-पात जैसी घिनौनी सोच को खुद से मीलों दूर रखा। वे जहां भी रहे लोग उनकी ईमानदार छवि की मिसाल
आज भी देते है। उन्होंने जाति से पहले संबंधित व्यक्ति का जुर्म देखा और उसी लिहाज से उसके साथ न्याय किया। वे अपराध की दुनिया से जुड़े क्रिमनल और सफेदपोश नेताओं को कभी भी भाव नहीं देते थे।


उनका काम केवल लोगों को सुरक्षा व सुरक्षित माहौल देना था और वे हर उस आदमी की कद्र करते थे जो न्याय प्रणाली व पूरे समाज को संगठित करने में यकीन रखते थे। उनकी इसी सोच के कारण हर वर्ग के लोग उनके कायल हो गए थे। पर आज सवाल उनकी ईमानदारी पर है, हमारी भ्रष्ट व्यवस्था और राजनितिक चालों पर है, आखिर क्यों ईमानदारी फांसी पर झूल गई ?



( ये लेखक के निजी विचार है )


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