गौरैया
आंगन मेरे गौरैया थी,
जो नीड बसेरा करती थी,
नित भोर हुए चहकती थी,
उन्मुक्त उड़ानें भरती थी।
तिनके, चिथड़े ले आती थी,
सुंदर नीड बनाती थी,
मोती जैसे अंडे देकर
पंखों से, से जाती थी,
धीरे- धीरे पल छीन बीते,
सेते -सेते अंडे फूटे,
कोमल -कोमल चू जे निकले।
स्नेहसिक्त गौरैया मां,
बच्चों का पोषण करती थी।
फिर कोमल डेंनों को उनके,
उड़ने को संबल देती थी।
छोटे छोटे पाखी नित,
किल्लोल किया करते थे,
समय बीत जाने पर फिर,
उन्मुक्त उड़ानें भरते थे।
मेरे सूने आंगन में अब,
वो नहीं दिखाई देती है,
जो नीड बसेरा करती थी,
नित भोर हुए चहकती थी,
उन्मुक्त उड़ानें भरती थी।