दे सकेगा क्या किसी को वो ख़ुशी
ग़ज़ल
दे सकेगा क्या किसी को वो ख़ुशी
खौफ़ में बिताई जिसने ज़िंदगी
सिर्फ़ कहने का तरीका है नया
बात कोई भी नहीं है अनकही
उम्र भर की शोहरतों का ये सिला
सर छुपाने को नहीं छत आज भी
प्यास दुनिया की मिटाएगा कहाँ
इस समन्दर की मिटी कब तिश्नगी
मैं तो आदत के मुताबिक हँस पड़ा
दास्ताँ गो आपकी थी दुःखभरी
सम्पर्क सूत्र: 103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी