आज भारत के इतिहास का भारत - नेपाल सम्बन्धों का दुर्भाग्यपूर्ण दिन है-प्रमोद तिवारी
कांगे्रस वरिष्ठ नेता श्री प्रमोद तिवारी ने कहा है कि आज भारत के इतिहास का भारत - नेपाल सम्बन्धों का दुर्भाग्यपूर्ण दिन है, भारत के तीन भूभाग 1. लिपुलेख, 2. कालापानी, 3. लिम्पियाधुरा को नेपाल असंवैधानिक और छद््म रूप से अपना भाग बता रहा है, जबकि ये भारत का अभिन्न अंग है। नेपाल यहीं नहीं रुका, उसने अपने (नेपाल के) पार्लियामेण्ट में इसे ‘‘दोबारा’’ संविधान संषोधन के रूप में प्रस्तुत भी कर दिया है। ये भारत के संविधान सम्मत सार्वभौमिकता और अभिन्नता को चुनौती देने जैसा है । ये किसी भी हालत में बर्दाष्त नहीं किया जा सकता है ।
श्री तिवारी ने कहा है कि नेपाल में इतना साहस नहीं है कि वह अपने बल पर भारत को चुनौती देने का दुस्ससाहस करने की जुर्रत करता, इसे दूर तक पढ़ने और समझने की जरूरत है। निःसंदेह भाषा नेपाल की अवष्य है किन्तु निर्देषन ‘‘चीन’’ का हो, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है । केन्द्र सरकार भारत की एकता और अखण्डता के लिये जो भी कदम उठायेगी, उस कदम का हमारा भरपूर समर्थन रहेगा। परन्तु अब समय आ गया है कि मोदी सरकार अपनी विदेष नीति और पड़ोसी देषों से सम्बन्ध पर पुनर्विचार करे। क्या कारण है ? कि नेपाल, जो भारत के छोटे भाई की तरह है , और उससे लगी हुई लगभग 1700 किमी. की खुली सीमा है, जहांॅ उत्तर प्रदेष का एक बहुत बड़ा भूभाग नेपाल की सीमा बनाता है, उस अंचल में ऐसा दुस्साहस किया जा रहा है ।
श्री तिवारी ने कहा है कि यह सोचने का समय है और गंभीर कूटनीतिक कदम उठाने की आवष्यकता है, कि जिस नेपाल की निर्भरता भारत की थी उस पर चीन की न बनने पाये । यदि नेपाली कांगे्रस भी इसका समर्थन कर रही है तो यह गम्भीरतापूर्वक सोचने का समय है और बुद्धिमत्तापूर्ण कूटनीतिक कदम उठाने की जरूरत है । देष का प्रत्येक नागरिक दृृढ़ता के साथ भारत की सम्प्रभुता तथा एकता और अखण्डता के लिये साथ खड़ा रहेगा ।
श्री तिवारी ने कहा है कि भारत के भूभाग को नेपाल का अंग बताना भारत के लिये खुली चुनौती है, जिसे भारत कभी बर्दाष्त नहीं करेगा । 395 वर्ग किमी. का यह भूभाग देष के लिये सामरिक महत्व का हे, अत्यंत संवेदनषील है और बहुत ही महत्तवपूर्ण है क्योंकि ये भारत- नेपाल की सीमा पर तो है किन्तु चीन से जुड़ा हुआ है ।
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