हेमवती नंदन बहुगुणा के सपनों का भारत
जन्म शताब्दी वर्ष पर विशेष
भारत के राजनीतिक क्षितिज पर एक जाज्वल्यमान नक्षत्र की भांति चमकने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा भारत की माटी से जुड़े हुए थे। उनके चिंतन में सपनों का एक भारत बसा हुआ था। वे भारतीय राजनीति को एक ऐसी मिसाल देना चाहते थे जो विश्व के चिंतन में सर्वोपरि हो। वे चाहते थे देश विश्व का एक अग्रणी देश बनकर उभरे और विश्वगुरु के चिंतन को प्रतिस्थापित कर सके ।उनके मन में भारत के दलित वर्ग, असहाय, किसान, खेतिहर मजदूर तथा श्रमिकों के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे देश में किसी को गरीबी रेखा के नीचे नहीं देखना चाहते थे। देश के वह शायद वे पहले नेता थे जो किसी दूरदराज के गांव के व्यक्ति द्वारा लिखे हुए पत्र का जवाब तत्काल दिया करते थे। किसी की बेटी ,किसी की बहन और किसी के छोटे से भी छोटे उत्सव, दुख दर्द में हाथ बटाने वाला कोई अगर नेता उस जमाने में दिखाई देता था तो वह थे हेमवती नंदन बहुगुणा ।
अपने अध्ययन काल के समय ही वे तत्कालीन अग्रणी नेता शांति के प्रतीक लाल बहादुर शास्त्री के संपर्क में आए और उनके राजनीतिक क्षितिज की एक ऊंचाई का दौर शुरू हुआ |1936 से लेकर 42 तक वे छात्र आंदोलन से जुड़े रहे और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जमकर हिस्सा लिया इलाहाबाद उस समय आजादी की लड़ाई में सर्वोपरि था, यहां का स्वराज भवन राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु था । महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस, लाल ,बाल, पाल सहित जाने कितने देश के कर्णधार प्रयाग की धरती पर आते रहे है , हेमवती नंदन बहुगुणा उनके विचारों से प्रभावित होकर आगे बढ़ते रहें।
हेमवती नंदन बहुगुणा अपने छात्र जीवन में एक क्रांतिकारी छता नेता की भूमिका अदा कर रहे थे। उसी समय उनके संपर्क में कमला बहुगुणा आई थी जो महिलाओं के लिए आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका अदा करने में लग गई थी कमला जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामप्रसाद त्रिपाठी की पुत्री थी । बहुगुणा के क्रांतिकारी जीवन का ही परिणाम था कि 1942 के आंदोलन में जिस समय ब्रिटिश हुकूमत ने जिला कचहरी पर छात्रों के जुलूस पर गोलियां बरसाईं उस समय बहुगुणा सबसे आगे थे और जैसे ही उन्हें शूट करने का आदेश हुआ शहीद लाल पद्मधर आगे आ गए और गोली उनके सीने पर लगी और शहीद हो गए । आज भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ भवन के सामने लाल पद्मधर उस क्रांतिकारी शहादत के प्रत्यक्ष गवाह के रूप में प्रतिमा स्वरूप विद्यमान है बहुगुणा के क्रांतिकारी जीवन और राष्ट्रभक्ति को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें जिंदा और मुर्दा पकड़ने के लिए ₹5000 का इनाम रखा था और वह किसी प्रकार उनके हाथ नहीं लगे परंतु 1943 में दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से वे गिरफ्तार हुए और 1945 में उनकी रिहाई हुई। नैनी केंद्रीय कारागार में जिस समय बहुगुणा बंद थे उस समय उन्हें यातना के फलस्वरूप प्लूरिशी हो गई थी जिसकी सूचना इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार पी डी टंडन ने जेल से पंडित विजय लक्ष्मी पंडित को दी और उन्होंने प्रयास कर उन्हें इलाज के लिए डॉक्टर भेजा और उनका स्थानांतरण सुल्तानपुर जेल के लिए हुआ फलस्वरूप उनका जीवन बचा ।ऐसे थे ये आजादी के लिए समर्पित क्रांतिकारी नेता। बहुगुणा एक कांग्रेसी ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और सच्चे राष्ट्रभक्त थे यह सब कुछ उन्हें इलाहाबाद की धरती से मिला था ।
1947 में देश आजाद हुआहेमवती नंदन बहुगुणा ट्रेड यूनियन के एक सक्षम नेता बने, छिवकी, बिजली घर, गवर्नमेंट प्रेस, जैसे प्रतिष्ठानों के वे नेता थे, मजदूरों की लड़ाई लड़ी। उनकी जिंदगी जमीन से जुड़ी हुई थी, बहुगुणा की गरीबी के वे दिन जब वे साइकिल का पंचर जोड़ कर खर्च चलाया करते ते थे, बहुगुणा जी एवं कमला जी,खुद बताया करते थे, जब उनकी बेटी रीता बहुगुणा जोशी जो वर्तमान में सांसद है ,पैदा हुई, कमला नेहरू अस्पताल से घर लाने के लिए पैसे नहीं थे, घर ले जाने के लिए बहुगुणा जी मुहूर्त का बहाना बनाते रहे, अंत में कमला बहुगुणा ने अपने कंगन बेंच कर बच्ची को घर लेकर आईं
____ 1952 से लेकर वे लगातार कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे और कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में उनकी गणना की जाती रही वह एक आस्थावान व्यक्ति थे । पिता के अलावा वे राजनीति के पुरोधा कमलापति त्रिपाठी जी के पैर छुआ करते थे। सी बी गुप्ता जैसे राजनीति के महारथी को उन्होंने चुनाव में पराजित कर यह साबित कर दिया था कि वह एक राजनीतिज्ञ एवं कुशल कूटनीतिज्ञ नेता थे ।उनकी दृष्टि भविष्य के भारत और भविष्य की राजनीति पर थी। कहा जाता है कि एक बार वे लखनऊ में जब पंडित गोविंद बल्लभ पंत मुख्यमंत्री थे उस समय उनसे मिलने गए हए थे और जब उनसे मिलकर वापस लौट रहे थे तो उनके कार्यालय में उनके बैठने के लिए खाली पड़ी कुर्सी को वे टकटकी लगाकर देखते रहे और जब लोगों ने पूछा कि आप इसे क्यों देख रहे हैं तो उन्होंने उस समय कहा था कि यह कुसी मेरे लिए है और एक दिन मुझे इस कुसी पर बैठना है ।इतने दूरदशी थे हेमवती नंदन बहुगुणा। बहुगुणा के बारे में एक बात स्पष्ट थी कि पहाड़ टूट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता ,जीवन में वह किसी के सामने झुके नहीं यही कारण है कि 1975 में इंदिरा गांधी और संजय गांधी के हस्तक्षेप को लेकर उन्होंने अपने वसूलों सेसमझौता नहीं किया वे बराबर अपने दृढ़ संकल्प पर अडिग रहें।
मुख्यमंत्री बहुगुणा :
मुख्यमंत्री के रूप में बहुगुणा की महान उपलब्धियां रही हैं उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रदेश को एक नया स्वरूप देना चाहते थे और हरिजनों आदिवासियों विमुक्त जातियों के लिए कुछ नया करना चाहते थे उदाहरण स्वरूप उनके द्वारा किए गए कार्य कुछ इस प्रकार है ।
बहुगुणा जी ने 1975 तक लाखों हरिजन व आदिवासी परिवारों को उनके रहने की जगहों पर पूरा कब्जा दिलाया एक एकड़ तक की भूमि वाले हरिजनों आदिवासियों तथा विमुक्त जातियों और भूमिहीन किसानों के साहूकारी कर्ज माफ कर दिए। बाद में कानून बनाकर 1 एकड़ तक की भूमि वाले सभी वर्गों के लोगों को इन करजू से मुक्त करा कर दिया1974-75 में शहर में रहने वाले बेघर हरिजनों के लिए मकान बनवाए 1975 -76 में 1050 हरिजन और सो विमुक्त जाति के परिवारों को खेती में मदद की राशि500 से बढ़ाकर ₹1000 कर दियाकुटीर उद्योग के लिए प्रति व्यक्ति अनुदान की धनराशि 2500 से बढ़ाकर प्रोजेक्ट की लागत का 50% यानी ३3000 और प्रति सहकारी समिति के लिए ₹10000 कर दी 1975 _76 में इस मदद में अनुसूचित जातियों के लिए राशि निर्धारित की।इसी प्रकार शिक्षा क्षेत्र में दसवीं कक्षा से आगे पढ़ने वाले हरिजन और आदिवासी छात्रों की छात्रवृत्ति दुगनी कर दी।
बहुगुणा की वैश्विक दृष्टि
बहगणा जी कीअपनी वैश्विक दृष्टि थीवे भारत को विश्व के मानस पटल पर सर्वोच्च स्थान दिलाना चाहते थे, वह नहीं चाहते थे की कश्मीर और पंजाब जैसी कोई समस्या भारत में उत्पन्न होइसीलिए वे हमेशा से कश्मीर समस्या के समाधान हेतु तत्पर थे ।कश्मीर को वह ऐतिहासिक नजरिए से देखते थे और 14वीं शताब्दी से लेकर उसके धार्मिक इतिहास और उसके अंतर्द्वद पर हमेशा चर्चा किया करते थे 1८५९ में मुगल शासन तथा उसके पश्चात राजवंश के इतिहास पर वह हमेशा दृष्टिपात करते थे और यह मानते थे के कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उसे भारत से अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने 1983 में 7 अक्टूबर को बुलाए गए एक अधिवेशन में कश्मीर के महत्व पर महत्वपूर्ण चर्चा की थी। पंजाब में उभरे तनाव खालिस्तान की मांग की वे धुर विरोधी थे और वह सिखों के बहादुरी और उनके कुर्बानियों के भली भांति समर्थक थे। वे चाहते थे के उन्हें सम्मान मिले परंतु वे राष्ट्र का सम्मान करें।वे विश्व के अनेक देशों के संपर्क में थे।उनकी विदेश नीति अपने आप में अनूठी थी।वे पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध रखने के पक्ष में थे, उनका मानना था एक देश की हवा दूसरे देश में जाती है दो कोई कहे हम इससे सांस नहीं लेंगे, नदी का पानी एक मुल्क से बहकर दूसरे में जाता है कोई कहे हम वहां से आया पानी नहीं पिएंगे
मुझे स्मरण है के देश में इमरजेंसी लगी बहुगुणा ने किसी सीमा तक लागू ना करने के लिए इंदिरा गांधी को सलाह भी दी थी परंतु उनका प्रयास विफल रहा। इंदिरा गांधी ने बहुगुणा से नाराज होकर उन्हें जिस समय पत्र भेजा, उस समय वह इलाहाबाद में अपने आवास पर पत्रकार वार्ता कर रहे थे और एक विशेष दूत ने आकर उन्हें पत्र दिया, उनके चेहरे पर बिल्कुल घबराहट नहीं थी .थोड़ा सा विनम्र होते हुए उन्होंने कहा था 'मेरे लिए देश सर्वोपरि है ,1977 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में रसायन तथा उर्वरक मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । उस समय देश पेट्रोलियम के लिए एक गंभीर समस्या से जूझ रहा था। उन्होंने उस देश को पेट्रोलियम में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण कदम उठाए। वे आज हमारे बीच नहीं है परंतु उनकी स्मृतियां ,उनका संकल्प, उनकी राजनीति उनकी आस्था, उनका देश प्रेम ,राष्ट्रभक्ति और उनके सपनों का भारत आज भी देशवासियों के मन में है देश की नई पीढ़ी को एक संदेश दे रहा है।