अपनी लेखनी से ब्रिटिश भारत में ला दी एक नई क्रांति राष्ट्र कवि दिनकर ने: संतोष कुमार त्रिपाठी
अपने नाम के अनुकूल चमकते है आज भी दिनकर जी इनकी 46 वी पुण्यतिथि पर शत शत नमन
* अपनी लेखनी से ब्रिटिश शासन को भी बौना साबित कर दिया दिनकर जी ने
ललितपुर।
सरस्वती मंदिर इंटर कॉलेज मड़ावरा (ललितपुर) में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि
जनकवि से राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्ध मैथिलीशरण गुप्त के राष्ट्रीय विचार धारा के उत्तराधिकारी हिंदी साहित्य के छायावादोत्तर काल खंड के वीर रस के सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक रश्मिरथी उर्वशी बापू जैसी कृतियां लिखकर ब्रिटिश शासन में "काल कूट कर लेना पहले सुधा की बीज लगा लेना" जैसी पंक्तियों एवं अपने काव्य से भारत देशवासियों में देशभक्ति की अलख जगाने वाले 1972 में उर्वशी काव्य पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त किया।
दिनकर की काव्य यात्रा की कहानी बड़ी विचित्र और अद्भुत रही है। वे मूलतः राष्ट्रीय भावों के संवाहक और मानवतावादी विचारों को अभिव्यक्ति देने वाले प्रतिभाशाली कवि थे। उनका साहित्य परिमाण और गुणों में विपुल और महान् है। उनकी काव्यकृतियों में– ‘बारदोली विजय, रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, द्वन्द्व गीत, सामधेनी, बापू, इतिहास के आंसू, दिल्ली, धूप और धुआँ, नील कुसम, नीम के पत्ते, सीपी और शंख, परशुराम की प्रतिज्ञा, कोयला और कवित्व आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। प्रणभंग, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, और ऊर्वशी उनके प्रबंध काव्य हैं। उनकी चुनी हुई कविताएं चक्रवाल में संग्रहीत हैं।
26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्रता के समय एक कविता सिंहासन खाली करो जनता आती होगी नाम से लिखकर सरकार की आलोचना भी किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू के इतने करीब होने के बावजूद भी दिनकर जी ने शासन सत्ता में कभी भी पद पर आसीन ना होकर हमेशा देशभक्ति की अलख जगाने का प्रयास किया। साहित्य में स्वतंत्रता से पूर्व विद्रोही कवि एवं स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय कवि की धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि में से एक थे।
1947 में दिनकर ने 'बापू' नामक काव्य की रचना की थी। चार विशिष्ट कविताओं के इस संग्रह में गांधी के प्रति उनकी संवेदना निम्न पदों से प्रकट है- बापू जो हारे, हारेगा जगती तल पर सौभाग्य क्षेम, बापू जो हारे, हारेंगे श्रद्धा, मैत्री, विश्वास, प्रेम, बापू मैं तेरा समयुगीन, है बात बड़ी, पर कहने दे, लघुता को भूल तनिक गरिमा के महासिंधु में बहने दे। यही नहीं, इस रचना के छह महीने बाद ही महात्मा गांधी की जब हत्या हो गई तो शोक और पश्चाताप में भर कर दिनकर ने पुन: लिखा- लौटो, छूने दो एक बार फिर अपना चरण अभयकारी, रोने दो पकड़ वही छाती जिसमें हमने गोली मारी,
राष्ट्रपिता के प्रति एक राष्ट्रकवि की करुण काव्य रचना गांधी से अहिंसा के मामले में असहमत होते हुए भी दिनकर महात्मा गांधी के व्यक्तित्व से न केवल गहरे तक प्रभावित थे।
1962 ईस्वी में भारत चीन युद्ध के समय भी भारत की पराजय पर दिनकर जी का मन बहुत व्यथित हुआ और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से ही तत्कालीन सरकार को चेतना पहुंचाई थी। मिटटी की ओर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, भारत की सांस्कृतिक कहानी एवं शुद्ध कविता की खोज लिख कर उन्होंने अपने गद्य का लोहा मनवाया।
गद्य साहित्य पद्य साहित्य देश भक्ति कविता कोष सभी क्षेत्रों में दिनकर जी ने अपना योगदान देकर हिंदी साहित्य के गौरव को आगे बढ़ाया इनकी रचनाओं का अध्ययन करने से हमें पता चलता है कि आज के समय में अगर दिनकर जी होते तो उनको बड़ा ही कष्ट होता संप्रदायिक जातिवाद धर्मवाद के नाम पर जिस तरह से देश विखंडित है लोग एक दूसरे से दूरी बनाकर जीने की जो आज बनाए हुए हैं यह देख कर आज दिनकर जी का हृदय रोता दिनकर जी की पुण्यतिथि पर नमन करते हुए यही आशा और इच्छा करते हैं कि हम सभी लोग संगठित एक सूत्र बंधन है बनकर रहेंगे तथा देशभक्ति का संकल्प लेकर गौरवशाली बनेंगे। इनकी रचना संस्कृति के चार अध्याय, काफी चर्चित रही जिसे 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।