लौट आई बचपन की यादें
सुबह की किन-किनी धूप जगाएं
पंछियों की चह-चह सुनाएं
खिलखिलाते नीले बादल दोपहर में दिखाएं
शाम की लालिमा में सतरंगी इंद्रधनुष दिखाएं
रात्रिबेला में चांद सितारे खूब दिखाएं
पूरे दिन पेड़ पौधे की ठंड हवाएं हमको कप कपाए
जीव जंतुओं की हट खेलिया भी हमको दिख जाए
ये थी बचपन की यादें
जो जीवंत हो गई आज फिर से
पता है मुझे भी पता है आपको भी
प्रकृति ले रही है चंद दिनों की फिर से सांसे
जो मिली आपदा के डर से घर में सिमटे मानवो से
वक्त जब भाग जाएगा आपदा का
मानव फिर गुफा से बाहर निकलेगा
फिर होगी भौतिकवादी सुखों की होली
प्रकृति की सांसे फिर से इसमें दहन हो जाएगी
फिर से धुंध दिखेगा आसमान में
फेक्टी के घुए तेज मिसाइलों की रफ्तार और होंगे हेलीकॉप्टर
उसके दोस्त
सड़कों पर दौड़ेगी तेज गाड़ियों की आवाजे
पहाड़ों को फिर से चीरकर बनाएंगे हम रास्ता
पशुओं की अठखेलियां नहीं सुनेंगे अब
सुनेंगे अब उनकी हम सिर्फ चीख पुकार
पंछी फिर से छुप जायगें घोसलों में
डर उन्हें फिर से सतायेगा,कोई हमें फिर से ना खा जाए
जो लौट कर आई थी बचपन की यादें
फिर से बचपन की यादें बन जाएगी।