कमल कपूर की लघु कथाएँ

"आप करेंगी अपने पति के 'फूल' विसर्जित देवी? पुत्र-पौत्र नहीं हैं आपके?" हरिद्वार के कनखल घाट में अपने सामने बैठी सुजाता से पंडे जी ने पूछा तो वह एक ठंडी-लंबी साँस ले कर भीगे कंठ से बोली, "सब हैं महाराज, पर बिदेस में बसे हैं। ना आ सके।" "दिवंगत के भाई-भतीजे.... कोई तो होगा?" 'दो बड़े भाई थे, जो 'उनसे पहले ही चले गएभतीजे हैं पर.... जाने दें न महाराज! आप विधि कराइए,” सुजाता ने बात टाली। "श्मशान की क्रियाएँ किसने की?" पंडे महोदय सब कुछ जान लेने पर उतारू थे जैसे"मैंने ही की महाराज!" "घोर कलजुग! पहले कभी न ऐसा देखा न सुना।" "क्या फर्क पड़ता है महाराज? अगर पति अपनी पत्नी की अंतिम क्रियाएँ कर सकता है तो पत्नी क्यों नहीं?" सुजाता ने अपना तर्क रखा। ‘फूल–विसर्जन' के बाद सुजाता के आँसू छलक आये, "ओ मेरे तीन सपूतों के पापा! आपकी मिट्टी तो मैंने ठिकाने लगा दी पर मेरी मिट्टी कौन समेटेगा?" __ अपने पिता के 'अरथी-फूल' ले कर आया इंतजार की कतार में सबसे आगे बैठा 'वह' नौजवान उठ कर आया और उसके कंधे पर हाथ धर कर बोला, “माँ जी! यूँ तो ज़िन्दगी का पल भर भी भरोसा नहीं पर इस घड़ी आप ऐसी बात न सोचें-कहें। माँ जी! वीर सिर्फ वही नहीं कहलाता जो रण में लड़ता-मरता है। समाज की घिसी पिटी परम्पराओं के खिलाफ लड़ने वाला भी वीर है और आपने ऐसी ही जंग लड़ने की हिम्मत जुटाई है। आप जैसी वीरांगना को प्रणाम है मेरा," और उसने झुक कर सुजाता के चरण छू लिए।


आवाज


"आइये सुधीर भाई! आइये। आज कैसे राह भूल गए?" प्रोफेसर राघव ने दबे स्वर में कहा। "मैं तो राह नहीं भूला पर आप ही भूल गए प्रोफेसर साहब कि कुछ दिन पहले मैं आपके पास एक बिनती ले कर आया था।" “याद है सुधीर भाई! आपने कहा था 'आप इस ब्लॉक के महासचिव हैं। आप चाहें तो यहाँ के सारे वोट मुझे मिल सकते हैं और मैंने कहा था...."


"..... जरूर मिल सकते हैं अगर आप यहाँ की सड़कें ठीक करवा कर ‘स्ट्रीट लाईट्स' लगवा दें, यही जवाब था न आपका?" "और आपका कहना था, 'अभी यह मुमकिन नहींचुानव जीतते ही सबसे पहले यही काम करवाऊँगा मैं' इस पर मैंने कहा था, “पिछली बार भी आपने यही कहा था पर चुनाव जीतते ही सब भूल गएआप लोगों का विश्वास खो बैठे हैं.... इसे हासिल करने के लिए अब ये काम आपको पहले करने होंगे। प्रचार–प्रसार पर जब इतना पैसा खर्च कर रहे हैं तो इस काम के लिए पीछे क्यों? ये काम करवाइए तो निश्चय ही आपकी जीत है।" "और क्या किया आपने? मेरी भारी हार बता रही है कि आपने कोई कोशिश नहीं की," खिन्न स्वर में कहा सुधीर भाई ने"मुझे आपकी हार का अफसोस है सुधीर भाई! मैंने जीतोड़ कोशिश की उनकी आवाज़ आप तक और आपकी आवाज़ उन तक पहुँचाने की पर मैं क्या जानता था कि उनकी आवाज़ तो आपने सुन ली और उनकी इच्छा भी पूरी कर दी पर आपकी आवाज़ उन तक नहीं पहुंच पाई तो मैं क्या करूँ?" हाथ जोड़ते हुए नर्मी से कहा प्रोफेसर राघव ने।


दुनिया का सब से सुंदर गुलाब


"बीबी जी! चार नंबर वाली बीबी जी बोल रही थी कि आज दोस्तों का दिन हैवो क्या कहते हैं उसे ....” “फ्रेंडशिप डे' बेला ने मुस्कुराते हुए फुलवा की बात पूरी की तो उसकी जिज्ञासा जाग उठी जैसे—“इसमें क्या होता है बीबी जी?" "अपनी सच्ची-पक्की सहेली को 'हैप्पी फ्रेंडशिप डे' कहा जाता है और कोई भेंट दी जाती है," बेला ने खुलासा किया तो फुलवा ने एक प्रश्न दागा"भेंट में क्या देते हैं बीबी जी?" "ज्यादा नहीं। कोई कार्ड या कुछ फूल.... सच्चे मन से एक गुलाब भी दे दो तो चलेगा।" "सच्ची सहेली कैसी होती है बीबी जी?" फुलवा जैसे सब कुछ जान लेना चाहती थी। "जो तुमसे प्यार करे, मीठा बोले, तुम्हारी खुशी में खुश हो और मुश्किल वक्त में तुम्हारी मदद करे और हाँ बेटा! दोस्ती में अमीरी-गरीबी और उम्र का फर्क नहीं देखा जाता।" "जीऽऽऽ!" कह कर फुलवा वहाँ से चली गई और दो पल बाद ही लौट आई और सरल स्वर में बोली, "बीबी जी! आपने सच्ची सहेली के जो गुन बताए, वो तो बस आपमें ही हैं जी। लो जी आज के दिन की भेंट,” कहते हुए फुलवा ने बेला के हाथ में उसी के बगीचे का एक पूरा खिला गुलाब थमा दिया। बेला ने भाव-विभोर हो कर उसे सीने से लगा लिया और तरल स्वर में बोली-“फुलवा! अब तक यह फूल मेरे बाग के पौधे पर लगा एक साधारण गुलाब था पर अब यह दुनिया का सबसे सुंदर गुलाब है।"


 


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