सुख में सुमिरन जो करे, सो दुःख काहे को होय: राजकुमार सेठी

ब्रम्हज्ञानी सन्त के सानिध्य में निरंकारी आध्यात्मिक सत्संग का आयोजन

 


ललितपुर।

सन्त निरंकारी शाखा मण्डल ललितपुर द्वारा निरंकारी आध्यात्मिक सत्संग का आयोजन अमृतसर (पंजाब) से चलकर आये ब्रम्हज्ञानी महात्मा राजकुमार सेठी के सानिध्य में राठौर मैरिज गार्डन अम्बेडकर पार्क जेल चौराहे के पास हुआ। सत्संग में भारी संख्या में भक्तों ने सतगुरु वचनों का पान कर अपना जीवन धन्य बनाया।  

सतगुरु अमृत वचन प्रदान करते हुए ब्रम्हज्ञानी महात्मा राजकुमार सेठी ने कहा कि सुख में सुमिरन जो करे, सो दुःख काहे को होय  अर्थात हम यदि सुख में परमात्मा का भजन करते रहें तो दुःख की घड़ी आ ही न पाये। उन्होंने कहा कि हम जिस परमात्मा की पूजा करते हैं, इबादत करते हैं जब संकट की घड़ी आती है तो उसे हम याद करते हैं। कस्ट में हम जब डॉक्टर के पास जाते हैं वह भी मना कर देता है इब उपचार का कोई रास्ता नहीं रह जाता तब अंत मे डॉक्टर भी प्रभु परमात्मा की बंदगी करने को कहता है । यह हमारा धर्म है कि हम परमात्मा को जाने। प्रभु ने धरती पर तो परमात्मा का एक नूर भेजा है, लेबल लगाने का कार्य हमने किया। इस आत्मा का धर्म है अपने परमात्मा को जानना, परमात्मा जो निराकार है हर तरफ है हर जगह है इसको हाजिर नाजिर देखता है इसका ज्ञान हमें आज समय की सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की कृपा से सबको मिलना सम्भव हो रहा है। जो भी सतगुरु की शरण मे आता है सतगुरु उसे गले से लगा लेते हैं। सतगुरु अपने भक्तों के लिए सब कुछ देकर मालामाल कर देता है। व्यक्ति की धन दौलत सब यहीं पर रह जाती है साथ मे सिर्फ नाम धन जाता है। नाम धन से मानव का लोक एवं परलोक दोनों सुखेला हो जाती है । कहा कि भक्त कि भक्ति तो तभी होती है जब उसे भगवान मिल जाते हैं । निरंकार के दर्शन सतगुरु कृपा से ही सम्भव है। परम पिता परमात्मा हमारे अंग संग हर तरफ है कण-कण में है पत्ते-पत्ते जर्रे जर्रे में है। सतगुरू ज्ञान का दीपक  जलाकर प्रकाश देने का कार्य करतें है। भक्ति आखिरी स्वांस तक करनी है। जब परमात्मा को साथ लेकर चलते हैं उसका नाम लेकर कार्य करते हैं तो सारे कार्य बनना शुरू हो जाते हैं। इस प्रभु को प्रेम से ही पाया जा सकता है। सतगुरु ज्ञान दृष्टि से अंधकार को मिटाकर निरंकार के दर्शन कराकर निरन्तर परमात्मा से जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। ज्ञान के बाद हमें हर तरफ निरंकार परमात्मा दिखाई देने लगते हैं।  

भक्ति भगत और भगवान को जोड़े रखती है। सतगुरु ने जो पहचान कराई है जो परमात्मा हर समय हमारे अंग संग रहता है जब हमें उसका रंग चढ़ जाता है तब उससे हमे प्रेम हो जाता है प्रेमा भक्ति ऐसी ही जिसमे भक्त एवं भगवान एक हो जाता है। निरंकार सांत है, इसका ज्ञान होने पर हमारे अंदर भी शांति आती है।  निरंकार अनन्त है इसका नाम सच्चिददानंद है। सत्संग से हमे चैन सुकून मिलता है क्योंकि यहाँ पर श्रद्धा, भक्ति, प्यार की तरंगें प्रवाहित होती हैं। भक्ति एक समर्पण हैं। जो निरंकार में समर्पित है हमेशा आनन्द में रहता है। टेक्नोलॉजी के साथ आज लाइफ फ़ास्ट हो गई है। 

यह भक्ति समर्पण हैं जो इसमें समपर्ण हो जाते हैं हर समय मस्ती में रहतें है। 

आज हर कोई कहता है कि टेंशन है डॉक्टर के पास जाते हैं तो यही डॉक्टर भी मरीज से यही कहते हैं कि फिकर तो नहीं करते हैं टेंशन तो नहीं करते है।  डॉक्टर की दवा से कुछ आराम तो मिलता है किन्तु टेंशन नहीं खत्म होती। परमात्मा के अनुसार सब कुछ होता है किंतु लोग मानते नहीं हैं।  डोरी का एक सिर परमात्मा के हांथ में है एक हमारे हांथ में है। एक तरफ हम खींच रहें हैं जिससे टेंशन बढ़ रही है किन्तु परमात्मा समझदार व्यक्ति  डोरी परमात्मा के हाँथो में सौंप देता है और फिर परमात्मा कहता है कि अब जब तू मेरा हो गया है तो जा सब कुछ तेरा हो गया।  गीता में कहा है कि कर्म करो, जो फल मिले उसमे परमात्मा का शुकराना करो। दुनियां में कोई धन दौलत के लिये, कोई शरीर कष्ट दूर करने को भक्ति करते हैं। जब हम परमपिता परमात्मा जो निरंकार के हो जाते हैं तो सारी चीजों की कमी पूरी हो जाती है। जिस प्रकार से पिता अपने बच्चों की हर चीज का ध्यान रखता है उसी तरह परम पिता परमात्मा सबकी फिकर करता है। जो इसकी मस्ती में खो जाते हैं वह फिर उसकी हो जाता है। हर समय निरंकार को उठते, बैठते महसूस करते रहें। अहंकार समाप्त होने पर ही निरंकार हमारे ह्रदय में बस पाता है। सेवा सुमिरन सत्संग हमारे जीवन के भक्ति मार्ग को प्रसस्त करते हैं। 

 

 

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