श्वेत बटन खुम्ब की खेती
हिमाचल में सितंबर माह के शुरू से मार्च तक की जाती है इसके प्रबंधन में अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाये तो किसान इससे काफी लाभ अर्जित कर सकते हैं। आजकल प्रदेश में बहुत से कृषक बड़े एवं लघु स्तर पर इसकी खेती कर रहे हैं, उनके लिए यह सझाव उपयोगी रहेंगेबीजाई उपरांत ध्यान देने योग्य तथ्य ___ यदि बैग उपयोग में लाए गए हों तो बीजाई के उपरान्त बैग का ऊपर की ओर बचा खाली हिस्सा अन्दर की ओर इस प्रकार मोड़ा जाता है कि यह खाद को पूरी तरह से ढक ले और साथ ही यह इतना अधिक कस कर नही बंधा होना चाहिए कि बीज को फैलने के लिये आवश्यक ऑक्सीजन ही न मिलेयदि बैग को अन्दर की ओर मोड़ने की गुंजाइश न हो तो बैग के ऊपरी हिस्से को पॉलीथीन अथवा कागज से ढक देते हैं। इसी प्रकार पेटी में भी खाद की ऊपरी सतह को कागज से ढक देते हैं। जिससे खाद में नमी बनी रहेइसके पश्चात इन बैगों या पेटियों को निश्चित तापक्रम 23-25° सेल्सियस वाले कमरे में रख दिया जाता है। इन्हें यदि अखबारी कागज से ढका गया हो तो बीजाई के एकदम बाद 0-5 प्रतिशत फार्मेलीन का घोल बनाकर स्प्रे पम्प की सहायता से कागज पर छिड़काव किया जाता है। इसके पश्चात इन पेटियों तथा बैगों में यदि कागज बिछाया गया हो तो दिन में 1-2 बार स्प्रे पंप की सहायता से पानी छिड़का जाता है। पानी इस प्रकार छिड़का जाना चाहिए कि बैग अथवा पेटियों में पानी खड़ा न हो तथा साथ ही इन पर बिछे कागज न सूखेंकमरे में आवश्यकतानुसार नमी 80-85 प्रतिशत बनाए रखने के लिये दीवारों, दरवाजों पर बोरियां टांग कर इन्हें पानी से गीला रखा जाता है। कमरे का फर्श भी पानी डालकर गीला रखा जाता है। यदि बैग व पेटी पॉलीथीन से ढके गए हों तो इन पर पानी का छिड़काव करने की आवश्यकता नहीं होती परन्तु कमरे में नमी इसी प्रकार से बनी रहनी चाहिए। बीजाई उपरान्त रख रखाव खाद में स्पॉन फैलने के लिये कमरे का तापमान 22-23° सेल्सियस ही रखना चाहिए। इस तापमान पर बीज 12-14 दिन में खाद में पूरी तरह से फैल जाता है। यदि तापमान इससे कम हो तो बीज को फैलने में अधिक समय लगता है। इस समय यह आवश्यक हो जाता है कि हीटर आदि लगाकर कमरे का तापमान 23° सेल्सियस तक ले जाया जाए। कमरे को गर्म करने के लिये बिजली चलित उपकरणों का प्रयोग ही करना चाहिए। लकड़ी, कोयला अथवा मिट्टी के तेल के उपयोग से धुआं उत्पन्न होता है जिससे विकृत खम्ब निकलने की आशंका रहती है। यदि तापमान 25° सेल्सियस से अधिक हो तो भी खम्ब के बीज के लिये अच्छा नहीं होता और कई प्रकार की बीमारियां व प्रतियोगी कवक उगने शुरू हो जाते हैं जो खम्ब के बीज को फैलने से रोकते तापमान कम करने के लिये ताजी हवा अथवा कूलर या एअर कंडीशनर का उपयोग किया जा सकता है। नमी व तापमान के अतिरिक्त कमरे में संवातन भी अत्यन्त आवश्यक है जिससे कमरे में निश्चित आक्सीजन की मात्र बनी रहे। बीज फैलने के लिये थोड़ी अधिक कार्बन डाईऑक्साड की मात्रा की आवश्यकता होती है। इस समय कार्बन डाईआक्साईड कुल वातावरण का 0.1-0.5 प्रतिशत होना चाहिए। बीज फैलने के समय खुम्ब कवक की श्वसन क्रिया अधिक प्रबल हो जाती है, जिससे कार्बन डाईआक्साइड अधिक मात्र में बनती है व तापमान भी थोड़ा सा बढ़ जाता है। सामान्य हवादारी से तापमान व कार्बन डाईआक्साइड दोनों को नियंत्रित किया जा सकता है। केसिंग व उसके बाद रख रखाव केसिंग क्या है ? जब खाद में बीज मिलाने के पश्चात उसे नियंत्रित कमरे में 22 23° सेल्सियस पर रख देते हैं तो अनुकूल परिस्थितियों में कवक जाल 12-15 दिनों में पूरी खाद में फैल जाता है। परन्तु खाद में कवक जाल कितनी अच्छी तरह ही क्यों न फैला हो, इसमें खम्ब नहीं निकलेगी जब तक कि इस पर केसिंग मिश्रण को न बिछाया जाएकेसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिट्टी होती है जिसे खाद पर बिछाने से खम्ब निकलने लगती हैं क्योंकि यह न्यून पोषक माध्यम है। इससे एक प्रतिबल स्ट्रेस की स्थिति उत्पन्न होती है जो खुम्ब उत्पादन के लिये आवश्यक है। इस मिश्रण को केसिंग मिश्रण व इसे खाद पर बिछाने की प्रक्रिया को केसिंग करना कहते हैं। केसिंग के लिये उपयुक्त समय केसिंग करने के सही समय का निर्धारण करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अधिकतर केसिंग मिश्रण तभी बिछाया जाता है जब खाद में कवक जाल पूरी तरह फैल चुका हो। जैसा पहले भी बताया जा चुका है कि अनु कूल परिस्थितियों में बीजाई के 12-15 दिन बाद कवक जाल खाद में फैल जाता है। इसके पश्चात ही केसिंग मिश्रण खाद पर बिछाना ठीक रहता है। केसिंग परत बिछाने की प्रक्रिया ) सर्वप्रथम हाथों को अच्छी तरह साबुन से धो लें। । अब बैग या पेटियों पर से कागज हटा दें यदि बैग अन्दर की ओर फोल्ड किया गया हो तो खोल लें। , अब पेटी व बैग में खाद की ऊपरी तह को हाथ से दबा-दबा कर समतल कर • बर्तन जिसमें केसिंग मिश्रण पेटी से निकाल कर रखाना है, अच्छी तरह साफ करके 2 प्रतिशत फामेलीन के घोल में डाल कर निकालें। अब सूखने पर पेटी में से केसिंग मिश्रण इस बर्तन में डाल लें। केसिंग मिश्रण, बैग या पेटियों की समतल की गई सतह पर डालकर 3-4 सें.मी. मोटी तह बिछा लें। इससे कम मोटी तह बिछाने पर कवक जाल केसिंग के उपर आ जाता है और इससे अधिक मोटी परत बिछाने पर जो खुम्ब उगते हैं उनके तने बहुत लम्बे होते हैं और कई बार खम्ब केसिंग के अन्दर ही बन जाते हैं। ) केसिंग बिछाते हुए, कुछ केसिंग मिश्रण नीचे गिर जाता है। इसे प्रयोग में नहीं लाना चाहिए तथा उठा कर बाहर फेंक देना चाहिए। 7- केसिंग के तुरन्त बाद बैगों या पेटियों को रैक्स में रख कर केसिंग के ऊपर पानी का छिड़काव करें। प्रथाम छिड़काव में 0-5 प्रतिशत फार्मेलीन का प्रयोग किया जा सकता है। लें। केसिंग के दौरान कुछ अन्य विधियां आजमाने से खुम्ब की पैदावार जल्दी व अधिक मिल सकती है, जो कि निम्नलिखित हैं। 1. रफलिंग इस विधि में कवक जालयुक्त खाद पर केसिंग की तह बिछाने से पहले बैग को किसी उपचारित टब में उलट देते हैं। खाद के ढेलों को तोड़कर अलग-अलग कर देते हैं। अब खाद को दोबारा बैग में भर कर केसिंग कर दी जाती है। इस विधि से खुम्ब की पैदावार जल्दी शुरू होती है। परन्तु इस विधि में श्रम अधिक पड़ता है और यदि बैग के किसी हिस्से में कोई बीमारी आदि है तो उसके फैलने का खतरा भी अधिक होता है। केसिंग करने के लगभग एक सप्ताह पश्चात, जब कवक जाल केसिंग में फैल चुका हो तो कमरे का तापमान कम करके 14-18° सेल्सियस पर लाना आवश्यक होता है। खुम्ब उत्पादन इसी तापमान पर शुरू होता है इससे अधिक तापमान होने पर उपज कम होती है और जितना अधिक तापमान होगा उत्पादन में उतनी अधिक कमी होगी। 21° सेल्सियस से अधिक तापमान पर कुल अपेक्षित उत्पादन का 50 प्रतिशत ही उत्पादन मिल पाता है। तापमान 250 सेल्सियस से अधिक होने पर उत्पादन बिल्कुल बन्द भी हो सकता है। केसिंग की तह खुम्ब के विकास के लिये आवश्यक जल उपलब्ध कराती है। साथ ही यह खाद को सूखने से रोकती है। खुम्ब पैदावार के समय कमरे में लगभग 85-90 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है। इतनी नमी को बनाए रखने के लिये फर्श को गीला रखें, दीवारों पर बोरियां टांग कर उन पर भी पानी का छिड़काव करना आवश्यक है। केसिंग तह पर साफ पानी का छिड़काव करें। छिड़काव इस प्रकार करना चाहिए कि केसिंग के ऊपर पानी खड़ा न हो और न ही केसिंग की परत सूखाने पाए। साधारणतया दिन में दो छिड़काव एक सुबह व एक शाम काफी होते हैं। परन्तु यदि वातावरण में नमी बहुत कम हो या तापमान बहुत अधिक हो तो दो से अधिक छिड़काव भी किए जा सकते हैंछिड़काव करते समय स्प्रे पम्प का नोजल इस प्रकार रखना चाहिए कि पानी मिस्ट की तरह पड़े, नहीं तो विकासशील खम्बों को चोट पहुंचने का खतरा बना रहता है। 2. वायु संवातन खाद में कवक जाल फैलते समय कार्बन डाईऑक्साइड की बहुतायत खम्ब के लिये लाभकारी होती है। इसलिये दिन में एक या दो बार शुद्ध हवा देना काफी होता है। परन्तु खुम्ब उत्पादन के समय शुद्ध हवा की आवश्यकता बढ़ जाती है, इस दौरान कमरे में कार्बन डाईआक्साइड की मात्र 0. 05 से 0.1 प्रतिशत तक होनी चाहिए। इसके लिये ताजी हवा फेंकने वाले पंखे कमरे में लगाए जा सकते हैं। हवा सीधी बैड के ऊपर न पड़े, इसके लिये डक्टस हवा वाहिनी का प्रयोग किया जा सकता है। इस डक्ट का एक सिरा पंखे के मुंह पर लगा दिया जाता है तथा दूसरा सिरा कमरे के दूसरी ओर ला कर बन्द कर दिया जाता है। इस डक्ट में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगभग 1 सें-मी- चौड़े छिद्र किये जाते हैं। इस डक्ट को कमरे की छत की तरफ इस प्रकार लटकाया जाता है कि यह प्रतिदिन के क्रियाकलापों में बाधा न डाले। जब फसल उत्पादन के समय पानी का छिड़काव करना हो तो यह ध्यान रखना चाहिए कि खम्ब तोड़ने के पश्चात ही पानी का छिड़काव करें। यदि छिड़काव पहले करेंगे तो खुम्ब केसिंग मिट्टी से लथ-पथ हो जाएंगे जिससे इनकी गुणवत्ता में कमी आती है। खुम्बों की तुड़ाई खुम्ब की टोपी का आकार जब 3-4 सें.मी. हो जाए तो यह तोड़ने योग्य हो जाती है। इस अवस्था में खम्ब के गलफड़े गिल्स एक झिल्ली से ढके रहते हैं। यदि इस अवस्था में खुम्ब तोड़ा न जाए तो यह झिल्ली फटजाती है और खुम्ब धीरे-धीरे छतरी का आकर ले लेती है। खली हुई छतरीनुमा खम्बों का विपणन मुश्किल हो जाता है तथा उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता। परिपक्व खुम्ब की तुड़ाई अंगूठे व पहली उँगली के बीच पकड़कर हल्का घुमा कर की जाती है, फिर धीरे से खुम्ब को बाहर की तरफ खींच लेते हैं। खुम्ब के तने का निचला सिरा जिसमें खुम्ब कवक धागों के रुप में लटका रहता है तथा मिट्टी के कण चिपके रहते हैं, तेज चाकू से काट कर अलग कर लिया जाता है। ऊपर का टोपी वाला हिस्सा व इससे लगा हुआ साफ तना खाने के काम आता है। खुम्ब की तुड़ाई से उत्पन्न हुए छिद्रों को केसिंग मिश्रण से भर दिया जाता है और इसके पश्चात ही पानी का छिड़काव किया जाता है। खम्ब की तुड़ाई प्रतिदिन होती है। छोटे पिनहैड्स नवजात खुम्ब कलिकां अगले कुछ दिनों में बड़े होकर तुड़ाई के योग्य हो जाते हैंयह तब तक चलता रहता है जब तक एक फलन अवस्था का समापन या ब्रेक न आ जाए। इस अवस्था में बैड पर न तो बटन और न ही पिनहैडस दिखाई देते हैं। यह अवस्था 3-4 दिन तक रहती है जिसके पश्चात खुम्ब पुनः निकलना शुरू हो जाते हैं। यह चक्र 8-10 सप्ताह तक चलता रहता है। पैदावार भारतवर्ष में खम्ब की पैदावार में बहुत विभिन्नता है क्योंकि यहां पर खुम्ब प्राकृतिक वातावरण में उगाई जाती है। जब तक सुम्ब को नियंत्रित वातावरण में न लगाया जाए, इसकी निश्चित पैदावार नहीं ले सकते। यहां पर खाद भी लम्बी विधि के द्वारा बनाई जाती है जिसमें अपेक्षाकृत कम पैदावार मिलती है। परन्तु फिर भी यदि खाद व बीज ठीक बने हों और फसल लेने के दौरान सफाई आदि का पूरा ध्यान रखा जाए तो लम्बी विधि वाली खाद से भी लगभग 10 से 15 किलोग्राम खुम्ब प्रति क्विंटल खाद से प्राप्त हो सकती है। यदि खाद लघु विधि व इंडोर विधि से बनाकर खुम्ब प्राकृतिक वातावरण में लगाई जाये तो उत्पादन लगभग 18 से 20 किलोग्राम खम्ब प्रति क्विंटल खाद से प्राप्त होते है। 000