फूल बाग वर्तमान नानाराव पार्क (पूर्व कम्पनी बाग) गुलाम भारत से स्वतंत्र भारत

वैसे तो विदेषी आक्रांताओ से भारत 10वी0सदी से घायल होता आ रहा था । परन्तु ईस्ट इंडिया कम्पनी की कुटिल चालो से मात खाकर भारत अन्ततः 17वी0सदी मे पूर्ण रूप से गुलाम हो गया, और अंगे्रजो के अधिपत्य मे ब्रिटेन की  राजषाही के अधीन होकर गुलाम देष कहलाने लगा, परन्तु गुलाम भारत मे भी कुछ ऐसे तालुकेदार, राजा और बड़े जमीदार थे जो अग्रेजो का कृपापात्र रहकर देष की जनता के साथ अंग्रेजो जैसा व्यवहार करते थे । इस प्रकार गुलामी की जंजीर में जकड़ी जनता कराहती रही । अत्याचार, अन्याय, लूटपाट से जनता त्रस्त हो गयी । अब उसे ऐसे अत्याचारियांे और अन्यायिआंे से मुक्ति की छटपटाहत होने लगी और इसकी आग सम्पूर्ण भारत मे धधकने लगी । एक ब्राहम्ण नवजवान इन अत्याचारियों, आतताइयों तथा अन्यायिओं के विरूद्व मेरठ छावनी से विगुल फूका । वह वर्श 1857 था एवं विद्रोह घोश करने वाला नवजवान मंगल पाण्डे था । मंगल पाण्डे की विद्रोह घोशणा का सम्पूर्ण भारत के बच्चे, बूढे और नवजवानों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि एक-एक कर अंगे्रजो और उनके चापलूसों के विरूद्व अनेक नवजवानांे ने देष को गुलामी से मुक्त कराने हेतु आग का गोला बनकर मैदान मे कूद पड़े । 
     भारत मे अंग्रेजी सत्ता के विरूद्व आक्रोष फूटता गया । बैरिस्टरी छोड़कर दक्षिण अफ्रीका से मोहनदास करमचन्द गांधी भारत आ गये । अंग्रेजो के विरूद्व आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया । देष की देषभक्त जनता उनके आन्दांेलन मे सम्मिलित होती गयी । अब मोहनदास करमचन्द से वह महात्मा गांधी बन चुके थे । पंण्डित मोतीलाल, पंण्डित जवाहरलाल, जयप्रकाष नरायण नेता जी सुभाशचन्द्र बोस, सरदार बल्लभ भाई पटेल, पंण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त, डा0अबुलकलाम, डा0 लोहिया, फरकरूद्दीन अहमद किदवई, राजगोपालचारी आदि अनेकों लोगो ने अंग्रेजी सत्ता के विरूद्व सम्पूर्ण भारत में घूम-घूम कर स्वतंत्रता हेतु जनजागृति का कार्य करते रहे और अंग्रेजों के जुल्म को सहते हुए कारावासित होते रहे । 
    अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचारों के विरूद्व पंण्डित चन्द्रषेखर तिवारी ‘‘आजाद’’, पंण्डित राम प्रसाद विस्मिल रोषनसिंह, सरदार भगत सिंह, अषफाक 
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उल्लाह खां, राजेन्द्र नाथ लाहिडी बन्धुओ, दुर्गा मामी आदि ने क्रान्ति का उद्घोश कर अंग्रेजी सत्ता की कमर तोड़ना प्रारम्भ कर दिया । इन्ही पंण्डित चन्द्रषेखर आजाद के प्रेरकत्व में पंण्डित कालिका प्रसाद वाजपेयी निवासी ग्राम-बभनी अवस्थी तथा पंण्डित रामलखन ‘‘त्रिपाठी’’ निवासी ग्राम-जीवा, तहसील-बांसी, जनपद-बस्ती (अब सिद्धार्थनगर) ने सिटी बम केष कानपुर को साथियों सहित अंजाम दिया और भूमिगत हो गये थे । परन्तु महात्मा गांधी के ‘‘करो या मरो’’ की 08 अगस्त 1942 की उद्घोशणा के पूर्व ही एक देषद्रोही की कुटिलता के कारण रामलखन (त्रिपाठी) वर्श 1941 मे ही अंग्रेजो के गिरफ्त मे आ गये । और कानपुर में मजिस्ट्रेट के समक्ष मांफी मांगने से इन्कार करने पर उन्हें कठोर कारावार की सजा हुई । पष्चात् इसके कानपुर सेन्ट्रल जेल भेजे गये । उनके क्रन्तिकारी जीवन से भयभीत अंग्रेजों ने बाद मे कानपुर जेल से गाजीपुर जेल स्थानान्तरित कर दिया । जहां से सन् 1942 मे छूटे और देष के स्वंतत्र होने तक अंग्रेजी सत्ता के विरूद्व बगावत करते रहे । परन्तु इस बार अंग्रेजी पुलिस उन्हे पकड नही पायी । 
     सन् 1930 के पश्चात् आततायी अंग्रेजों की दमनकारी निति ने भारत के वीर सपूतो, पंण्डित चन्द्रषेखर आजाद, पंण्डित राम प्रसाद विस्मिल, रोषनसिंह, सरदार भगत सिंह, अषफाक उल्लाह खां, आदि देष भक्तो को फांसी पर लटका दिया । परन्तु उन वीर सपूतो ने ‘‘भारत मां की जय’’ के साथ प्रसन्नमुद्रा मे फांसी की सजा बिना किसी याचना के स्वीकार, इस अपेक्षा से की होगी कि मेरे बलिदानो से यदि देष अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त होकर स्वंतन्त्र हो जायेगा । 
    अन्ततः स्वंतन्त्रता सग्राम सेनानियों की त्याग, तपस्या और बलिदान से देष को वर्श 1947 में स्वंतन्त्रता मिली । तथा भारत स्वंतन्त्र सम्प्रभु देष हुआ । षनैःषनैः भारत में अनेको राजनीतिक पार्टियो का उदय होता चला जा रहा है । उनके प्रेरणा श्रोत अलग-अगल होते है । जिनको आधार बनाकर समय-समय पर सत्ता सुख भोगा जाता है परन्तु देष को गुलामी से आजादी दिलाने वाले उन महान देष भक्त त्यागी, तपस्वी और बलिदानी स्वंतन्त्रता संग्राम सेनानियों का इतिहास न तो पढ़ाया जाता है और न ही किसी राजनीतिक पार्टी ने कभी इस ओर ध्यान दिया हो, ऐसा प्रतीत होता है जिससे दाता (स्वंतन्त्रता संग्राम सेनानी) के बलिदानों को भावी पीढ़ियां भी जान सके । अपितु स्वंतन्त्रता के पश्चात् उन महान सपूतों के समकक्ष ऐसे लोगो को लाकर खड़ा किया जाने का प्रयास हुआ 
जो भारत के संविधान मे दी गयी व्यवस्था के अन्तर्गत कभी किसी की अतिवादिता से जेल गये उन्हे सेनानी का नाम देकर स्वंतन्त्रता संग्राम सेनानियों का घोर अपमान किया गया । सभी राजनीतिक पार्टियों को यह नही भूलना चाहिए कि भारत का स्वंतन्त्र स्वरूप उन महान देष भक्त स्वंतन्त्रता संग्राम सेनानियों की देन है । जिसका कि आज वे सुख भोग रहे है । भारत की सभी पार्टियों को उनका ऋण उतारने के बदले उनका ऐतिहासिक सम्मान प्रत्येक वर्श उत्सव के रूप मंे मनाया जाना सुनिष्चित करना चाहिए । 
                                  
                            


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