मिले-जुले प्रयास,पूरी जल की आस
स्वाधीनता के दशकों बाद भी बुंदेलखण्ड कितना पिछड़ा है, कितना साधनहीन है यह देख कर आश्चर्य होता है। बुन्देलखण्ड वह अभागा क्षेत्र है जहां अनेक वर्षो से प्राकृतिक कोप के कारण सूखे के हालात बने रहते हैं। कम वर्षा के कारण जल संचय और जल के सद्उपयोग हेतु सुध लेने की पहल इस वाक्य के साथ ही गयी जहां चाह वहां राह। इस मूल मंत्र को समझकर ललितपुर के सहरिया आदिवासियों वनवासियों की जीवन रेखा बंडई नदी के सूख जाने पर मातम मनाते चेहरों के आंसू पौंछ कर उनके जीवन में खुशियां लौटाने की सौगात दी गई।जल है तो कल है के लिए जरूरी था जल का संचय। समाज के लिए वर्षा के जल को नदी में बह जाने से रोकने की कहानी सरकार, समाज, पत्रकार और स्वयं सेवी संगठन के मिले-जुले प्रयास का प्रतिफल है।
प्रदेश की विलुप्त नदियों को निर्मल एवं अविरल बनाने की सोच धरातल पर आकार लेने लगी है। माननीय सिचाई मंत्री श्री धर्मपाल सिंह ने पुरातन नदियों को सदानीरा बनाने के लिए चरणबद्ध कार्य योजना तैयार की है। पवित्र नदियों के संरक्षण, संवर्धन एवं अनुरक्षण कार्यक्रम को जन सहभागिता के आधार पर प्रारम्भ करने के लिए आदिगंगा के नाम से विख्यात पावन गोमती नदी के उद्गम स्थल पीलीभीत में 10 मार्च, 2018 शनिवार को एक विशाल जन जागरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रथम चरण में पीलीभीत लखनऊ की गोमती, अयोध्या की पौराणिक तमसा नदी, प्रतापगढ की सई, वाराणसी की वरूणा, बरेली की अरिल तथा बदायूं की सोत नदियों को अविरल और निर्मल बनाने के लिए संरक्षण, संवर्धन एवं अनुरक्षण कार्यक्रम को सरकार द्वारा जन सहभागिता से पुनर्जीवित किया जायेगा। पुरातन नदियों को सदानीरा बनाने के लिए चरणबद्ध कार्य योजना तैयार की गई हैजन जागरण अभियान में पूज्यनीय साधू संतों के अलावा सांसद, विधायकगण सहित सभी अन्य जन प्रतिनिधियों (अध्यक्ष जिलापंचायत, ब्लाक प्रमुख, उपाध्यक्ष सिंचाई बंधु, सदस्य बी.डी.सी., ग्राम प्रधान आदि) स्वैच्छिक संस्थाओं, सामाजिक संगठनों, सुप्रसिद्ध उद्यमियों, साहित्यकारों, प्रबुद्ध पत्रकारों की सहभागिता है। राजनेताओं की अनुकरणीय पहल के फलस्वरूप मोरवा नदी को जीवित करने के लिए जनमानस उन्हें याद करता है। गौरतलब है कि भाजपा सांसद विरन्द्र सिंह मस्त ने अपने संसदीय क्षेत्र से गुजरने वाली नदी जिसमें आठ माह तक धूल उड़ती थी, उसके उद्गम कारीगांव के ताल से चालीस गांवों से गुजर कर चौरी के आगे उत्तर दिशा में वरूणा से मिलने की पड़ताल की और तत्कालीन जिलाअधिकारी प्रकाश बिन्दु से मिलकर मनरेगा के माध्यम से छोटे-छोटे डैम बनाकर पानी एकत्र करने की कोशिश की, जिसके फलस्वरूप मोरवा अब भीषण गर्मी में भी पानी से लबालब है। मोरवा की सहायक नदी झोरवा जो सुन्दर वन के पास मोरवा नदी से मिलती है, उसका गहरीकरण के साथ अतिक्रमण हटाने की कोशिश की जा रही है ताकि भदोही क्षेत्र में नदी किनारे वनीकरण किया जा सके।
आल्हा, ऊदल, छत्रसाल, हरदौल और महारानी लक्ष्मीबाई की भूमि है बुंदेलखण्ड। हरियाली से आच्छादित, मौन, गंभीर शिलाखंडों को अपने वक्ष पर धारण किए यह भू-प्रदेश एक नैसर्गिक रहस्यबोध को जन्म देने वाला है। छोटी-छोटी पहाड़ी नदियों और प्रपातों में बहता स्वच्छ जल और उसमें दिखाई पड़ने वाली चपल, धवल मछलियां अंतरआत्मा को पुलकित करने वाली हैं। लेकिन क्या जीवन सिर्फ यही है? यह तो प्रकृति के जीवन तत्व का बोध है। लेकिन जो बोध कर रहा है यानी मनुष्य, वह कहां खड़ा है, इस सबके बीच । इस क्षेत्र में यह ध्यान आते ही उन वस्तुगत यथार्थो से आपका सामना होता है जो झकझोर देने वाले हैं। इस सुंदर प्रकृति की गोद में पलने वाला मानवीय जीवन कितना असुंदर है, इसका अंदाजा इस क्षेत्र में छानबीन करके ही लगाया जा सकता है।स्वाधीनता के दशकों बाद भी बुंदेलखण्ड कितना पिछड़ा है, कितना साधनहीन है यह देख कर आश्चर्य होता है। बुन्देलखण्ड वह अभागा क्षेत्र है जहां अनेक वर्षों से प्राकृतिक कोप के कारण सूखे के हालात बने रहते हैं। कम वर्षा के कारण जल संचय और जल के सद्उपयोग हेतु सुध लेने की पहल इस वाक्य के साथ ही गयी जहां चाह वहां राह। इस मूल मंत्र को समझकर ललितपुर के सहरिया आदिवासियों वनवासियों की जीवन रेखा बंडई नदी के सूख जाने पर मातम मनाते चेहरों के आंसू पौंछ कर उनके जीवन में खुशियां लौटाने की सौगात दी गई। जल है तो कल है के लिए जरूरी था जल का संचय। समाज के लिए वर्षा के जल को नदी में बह जाने से रोकने की कहानी सरकार, समाज, पत्रकार और स्वयं सेवी संगठन के मिले-जुले प्रयास का प्रतिफल है। उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर स्थित ललितपुर जनपद के मडावरा ब्लॉक जो अब तहसील हो गयी है, के ग्राम धौरीसागर क्षेत्र में धसान एवं बंडई नदी के किनारे के गांवों की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य की स्थिति बहुत खराब है। बुनियादी सुविधाओं का सर्वथा अभाव है, हजारों परिवार यहाँ अमानवीय जीवन जीने को विवश है। पानी, बिजली, रास्ते सड़क, स्कूल, अस्पताल की कमी हैलोग पैदल, बैलगाड़ी युग में जी रहे हैंवर्ष 2003 में किए गए मडावरा ब्लॉक के 2000 परिवारों के सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष निकला कि इस जंगली इलाके में भूख, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा व्याप्त है। सकरा गांव में भूख से मौत तक की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन चुकी थी। वर्ष 2003 में ही बंडई नदी, जो बरसात में सूख जाती थी, के पानी को रोकने की मांग गांव के प्रधान रामसिंह तथा उनके बूढ़े बुजुर्ग बंधुओं सहित सैकड़ों ग्रामीणों ने की थी। तत्कालीन समस्याएं जिला प्रशासन के साथ जनसुनवाई, समस्या समाधान शिविरों का आयोजन करके निपटाई जा रही थी, बंडई नदी जो इस क्षेत्र की जीवनरेखा थी बुन्देलखंड सेवा संस्थान इसके पानी को कैसे रोके यह सवाल उठ रहा था, क्योंकि यह बिल्कुल स्पष्ट था कि अगर बंडई का पानी इकट्ठा होगा तो भूख प्यास दोनों का समाधान मिल जायेगा। वर्ष भर पानी रहेगा तो बंडई नदी भी जिन्दा हो जाएगी। बंडई नदी का पानी धसान नदी के पानी में जाकर मिल जाता था। बंडई बरसात के बाद सूख जाती थी अर्थात मृतवत हो जाती थी। बंडई नदी को जिन्दा करने के बड़े सवाल पर राजधानी लखनऊ में रहने वाले ललितपुर जनपद निवासी श्री सुरेन्द्र अग्निहोत्री के सम्पर्क से बुंदेलखण्ड सेवा संस्थान के मंत्री श्री वासुदेव ने मंडल आयुक्त श्री शंकर अग्रवाल को झाँसी मण्डल की समस्या से अवगत कराया। मंडलायुक्त से क्षेत्र में आने की मांग की गई। संवेदनशील आयुक्त ने 17 जून 2006 को जनसुनवाई में ग्राम कुर्रट और धौरीसागर आकर ऐतिहासिक कार्य किया। आजादी के बाद पहली बार झाँसी मंडल के आयुक्त यहां आये थे। जनसुनवाई में बुन्देलखंड सेवा संस्थान ने, क्षेत्र की जनता की आवाज बनकर बंडई नदी को जिन्दा करने की मांग की तथा एक बाँध बनाकर बरसात के पानी को रोकने की बात कही। इस पर आयुक्त ने बंडई नदी को जिन्दा करने का आश्वासन दिया। भविष्य में बंडई नदी पर काम करने की परियोजना बनाने का आश्वासन दिया। जुलाई-अगस्त 2006 में धौरीसागर क्षेत्र से गिरार तक 20 किमी. की जल यात्रा निकाली गई। उत्तर प्रदेश आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्राविधानों के अंतर्गत सूखे की आपदा से निपटने के लिए प्रदेश के लिए कार्ययोजना तैयार कर उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु श्री शंकर अग्रवाल आयुक्त झाँसी मंडल की अध्यक्षता में त्रिसदस्यीय आलेख समिति गठित की गई। इस समिति का कार्य सूखा से संबंधित आपदा राहत के लिए कार्ययोजना का प्रारूप तैयार कर अंतिम रिपोर्ट तैयार करके वर्किंग ग्रुप के समक्ष दिनांक 31 अगस्त 2006 से पूर्व अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
निरंतर पैरवी से वर्ष 2009-10 में तत्कालीन जिलाधिकारी श्री रणवीर प्रसाद ने सूखा की स्थिति को ध्यान में रखकर बरसात का पानी रोकने के लिए लघु सिंचाई विभाग की ओर से 4-5 चेकडेम बनवाये। वर्ष 2011 में बंडई नदी लबालब भर गई, चेकडेमों के निर्माण से 20 कि.मी. की लम्बी नदी में पानी इकट्ठा होने लगा। कुछ लाभ किसानों को मिला किन्तु सूखा पड़ने पर फिर संकट पैदा हो गया। वर्ष 2012 में किसानों के साथ सम्मलेन में ज्ञापन देकर पुनः बंडई बांध बनाने की मांग की गई। मीडिया की सहभागिता से वर्ष 2013 में नाबार्ड की सहायता से सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा बंडई बांध परियोजना की स्वीकृत हुई। वर्ष 2016 में बांध का लगभग 90 प्रतिशत काम पूरा होने पर बरसात का पानी भर गयाबंडई नदी ने दूर जंगल तक अपने पेट में पानी भरकर जिन्दा होने का प्रमाण दिया है। अब क्षेत्रवासी बहुत खुश हैंक्योंकि पानी से नया जीवन मिलेगा। यह ऐतिहासिक अवसर था कि नदी संरक्षण सम्मलेन में श्री राजेन्द्रसिंह 'जल पुरूष' ने बंडई नदी के बांध में जाकर पानी को देखा । गांव के सैकड़ों लोगों से बातचीत की और बंडई नदी जिन्दा होने की 11 वर्ष पुरानी यात्रा की कहानी भी सुनी। जलपुरूष राजेन्द्रसिंह ने कहा कि राज और समाज समुदाय के साथ कुशल रणनीति द्वारा बुन्देलखंड सेवा संस्थान के प्रयास से बंडई नदी को जिन्दा करने का सफल प्रयास किया गया है। सरकार के संसाधनों का सही उपयोग करने से ही देश का समुचित विकास हो सकता है। बंडई नदी की यात्रा से समाज के विभिन्न घटक अच्छी सीख लेकर और भी कई गुमनाम क्षेत्रीय नदियों को जिन्दा कर सकते हैं।
धौरीसागर नदी संरक्षण सम्मेलन में मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि यह सच है कि मैं 11 वर्ष बाद बंडई नदी को देखने आया हूं, किन्तु गांव धौरीसागर के लोगों ने बताया कि वास्तव में बंडई नदी जिन्दा हो गई है। टौरी के मोतीलाल धौरी की सरजूबाई, प्रधान सुरेन्द्र सिंह व प्रधान धौरीसागर रामस्वरूप रैकवार ने बताया कि अब वर्ष भर पानी भरा रहता है। जलस्तर में वृद्धि हुई है सूखे कुओं में पानी ऊपर आ गया है। बंजर जमीन पर खेती होने लगी है। गरीबी से ऊपर आने के लिए शिक्षा स्वास्थ्य में सुधार हुआ है पशुपालन दूध उत्पादन आदि के प्रयास हो रहे हैं। बंडई नदी जिन्दा हो चुकी है।
दुनिया भर में नदी एवं जल संरक्षण के लिए सुविख्यात राजेन्द्र सिंह जल पुरूष' का धसान नदी एवं बंडई नदी जंगली क्षेत्र के सैकड़ों वनवासियों ने स्वागत किया। नदी संरक्षण सम्मेलन धौरीसागर क्षेत्र के जंगली गांवों से आये एक दर्जन गांवों के सैकड़ों आदिवासी पिछड़े, गरीब किसानों ने प्राकृतिक जल संसाधनों व जल के संरक्षण का संकल्प लिया। विशेष बात यह रही कि 11 वर्ष बाद धौरीसागर क्षेत्र में आने पर बूढ़े बुजुर्ग महिला पुरूषों ने राजेन्द्र सिंह 'जल पुरूष' को पहचान लिया तथा कहा कि अगर आपने 2006 में तत्कालीन मंडलायुक्त शंकर अग्रवाल के साथ जलयात्रा निकालकर बंडई नदी को जिन्दा करने का अभियान न चलाया होता तो बंडई कभी जिन्दा न होती। आज अथाह जल भंडार बांध में है इसके जल से जन, जानवर, जंगल अब कभी नहीं मरेगा। बंडई का जल अब क्षेत्र के 50 गांवों का जीवन बन चुका है।
क्षेत्र के किसानों ने सूखे के कारण उड़द की फसल बरबाद होने की समस्या भी बतायी। उपजिलाधिकारी मडावरा श्री पदम सिंह ने भूमि एवं सूखे से संबंधित समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया। इस कार्यक्रम में श्री गुलाब सिंह तहसीलदार मडावरा उपस्थित रहे। बंडई बांध परियोजना में 11 गांवों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलेगाग्राम पिसनारी, टोरी, देवरा, हंसरा, सेमरखेडा, बम्हौरी खुर्द, मानपुरा, गरोलीमाफ, गिरार, भीकमपुर, सिरोंन खुदं, के हजारों किसानों को सिंचाई का लाभ मिलेगा। बांध में 12.90 मिलियन क्यूबिक मीटर जल भंडारण की क्षमता हैं। सिंचाई के लिए 11.10 मिलियन क्यबिक मीटर उपयोग किया जायेगा। 1975 हेक्टेयर में रबी की फसल तथा 1050 हेक्टेयर में खरीफ की फसल में सिंचाई की जाएगी। नहर द्वारा पानी पहुंचाया जायेगा।
बंडई बांध परियोजना से सबसे बड़ा लाभ यह है कि जंगल के अन्दर से निकलकर 20 कि.मी. यह नदी अब वर्ष भर पानी से भरी रहती है। क्षेत्र में जल स्तर ऊपर आया है। कंओं में तथा हैण्ड पम्प में भीषण गर्मी में पानी बना रहता है, पेयजल संकट कम हआ है। जहां कभी जल आकाश कसम बनके रह गया वहां यह सुर गूजं रहे हैं।
चावल सी बयें दूद की नदियां,
बाजै दुहिनिया कछार।
दूधन पूतन गोरी धन फलवै,
हार पहारन कारौ सिंगार,
कारस तेरी होवे जय-जयकार।
हम सब नदियों में साफ पानी के लिएपूजा सामग्री विसर्जित करने के लिए अलग कुंड बनाना होगा। गंगा के तटवर्ती क्षेत्र के लोगों को खुले में शौच नहीं करने की नसीहत देकर शौचालय के प्रयोग करने पर जोर दिया। गंगा की निर्मलता और अविरलता को लेकर गम्भीर मुख्यमंत्री ने गंगा की स्वच्छता और निर्मलता का मंत्र देकर कहा कि गंगा हम सबकी मां है। भारत की सनातन संस्कृति की प्रतीक भी है।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने नमामि गंगे योजना में 20 हजार करोड़ की धनराशि आवंटित कर गंगा के स्वच्छता के लिए लगातार प्रयास किए हैं। हमें भी मानव सभ्यता और सांस्कतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए अपनी जिम्मदारी को निभाना होगा। बिना जनसहयोग के यह अभियान सफल नहीं हो पायेगा। गंगा की अविरलता के लिए महामना पं. मदन मोहन मालवीय के भगीरथ प्रयास का जिक्र कर । जिक्र कर पिछली सरकारों के गंगा के निर्मलीकरण के प्रयास को बताया। योगी जी ने कहा कि गंगा के कारण ही उत्तर प्रदेश देश और दुनिया में महत्व पाता है। वाराणसी में योगी आदित्यनाथ ने देश में सूख रही नदी संस्कृति पर चिन्ता जतायी है। सरस्वती की तरह यदि गंगा और यमुना भी सूख गयी तो पूरा उत्तर प्रदेश और नदी किनारे का विशाल भू-भाग रेगिस्तान हो जाएगा।
नदियों के साथ-साथ औद्योगिक विकास
नदियों के साथ-साथ औद्योगिक विकास भी फलता-फूलता है क्योंकि अनेक औद्योगिक प्रक्रियाओं में जल की अत्यंत आवश्यकता होती है जैसे शीतलक और जलविद्युत उत्पादन में नदियाँ परिवहन के साधन और अन्तर्देर्शीय जलमार्ग उपलब्ध करवाती है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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जल चेतना खण्ड 8, अंक 1, जनवरी 2019 से साभार