अतीत से हमे जोड़ने में कला एक सशक्त माध्यम के रूप में कार्य करती है -डाॅ0 आनंद कुमार सिंह


लखनऊः 03 फरवरी, 2020

        संग्रहालय ज्ञान का वातायन, अतीत का संरक्षक एवं भविष्य का शिक्षक है, जहां संग्रहालय एक तरफ पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है, वहीं दूसरी तरफ जिज्ञासुओं के लिए प्रेरणा स्थल। इन्ही उदेश्यों को ध्यान में रखते हुए राज्य संग्रहालय, लखनऊ द्वारा दिनांक 17 जनवरी से दिनांक 03.02.2020 तक 15 दिवसीय कला अभिरूचि पाठ्यक्रम का आयोजन किया गया। विगत पंद्रह दिनों में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत प्रतिभागियों की भारतीय संस्कृति एवं कला के विविध पक्षों यथा-भारतीय स्थापत्य कला, संग्रहालय एवं पर्यटन, कलाकृतियों का संरक्षण एवं उपचार, पाण्डुलिपियों का इतिहास, भारतीय मुद्राओं के विविध आयाम तथा संग्रहालय में कलाकृतियों के अभिलेखीकरण से सम्बंधित जिज्ञासा को विशिष्ट विद्वानों ने व्याख्यान एवं पावर प्वाइंट के माध्यम से शांत करने का प्रयास किया गया।
पंद्रह दिनों तक चले इस व्याख्यान की श्रृंखला के अंतिम कड़ी में सोमवार को इस कार्यक्रम के समापन एवं पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर सभागार में उपस्थित मुख्य अतिथि डाॅ0 योगेश प्रवीन, इतिहासकार एवं विशिष्ट अतिथि डाॅ0 राजीव द्विवेदी, पूर्व उप अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रतिभागियों को पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र वितरित किये। कला अभिरूचि पाठ्यक्रम में सम्मिलित कुल 140 प्रतिभागियों में से प्रथम स्थान पर 03 (तीन) डाॅ0 सुचि श्रीवास्तव, सुश्री लक्ष्मी शुक्ला, सुश्री शालू सोनगरा, द्वितीय स्थान पर 03 (तीन) श्री विवेक विश्वकर्मा, सुधा रंजन, डाॅ0 प्रीति सिंह, तृतीय स्थान पर 03 (तीन) सुश्री प्रतीक्षा मिश्रा, सुश्री सरिता, सुश्री कृष्ठा सिंह एवं सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त करने वाले 08 (आठ) प्रतिभागियों को  इतिहास एंव संस्कृति से सम्बनिधत पुस्तक पुरस्कार स्वरूप किया गया। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कारों के अतिरिक्त पाठ्यक्रम में सम्मिलित समस्त प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किये गये। इसके अतिरिक्त 07 प्रतिभागियों को प्रोत्साहन पुरस्कार के रूप में पुस्तक प्रदान की गयी।
कला अभिरूचि पाठ्यक्रम के समापन एवं पुरस्कार वितरण समारोह में विशिष्ट अतिथि डाॅ0 राजीव द्विवेदी, पूर्व उप अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारतीय कला को साहित्य के दायरे में नहीं बांधा जा सकता, भारतीय कला में मूर्ति की व्याख्या करने के बजाय प्राचीन एवं समसामयिक कला सम्बन्धों एवं उसके विभिन्न आयामों की बात पर जोर दिया। मूर्तिकला के अन्तर्गत प्रतिमाओं का अध्ययन किया जाता है, जो हमारे दर्शन एवं विज्ञान की जीवंत धरोहर है। इस क्रम में मुख्य अतिथि डाॅ0 योगेश प्रवीन, इतिहासकार ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए बताया कि राज्य संग्रहालय, लखनऊ द्वारा 1993 से प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला यह पाठ्यक्रम समाज के प्रत्येक आयु वर्ग के नागरिकों के लिए लाभप्रद है। कला अभिरूचि कार्यक्रम का मूल उद्देश्य प्रतिभागियों को ऐसा प्रशिक्षण प्रदान करना है, जिससे उसमें अपनी भारतीय संस्कृति  एवं ‘सौंदर्य बोध’ की भावना उत्पन्न हो सके अर्थात् कला के सच्चे स्वरूप और अर्थ को समझ सके और उसका दर्शन कर सके। उन्होंने बताया कि एक ओर जहां यह कार्यक्रम कला एवं संस्कृति के विविध पक्षों की जानकारी प्रदान करता है, वही दूसरी ओर इतिहास में होने वालेे आधुनिक शोधों की भी चर्चा करता है।
उ0प्र0 संग्रहालय निदेशालय के निदेशक डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह ने बताया कि संग्रहालय द्वारा समय समय पर इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिससे हमे अपनी संस्कृति एवं धरोहरों की जानकारी प्राप्त होती रहे और जनसमान्य को अपनी  धरोहर को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए जागरूक किया जा सके। उन्होंने बताया कि कला ही काल का निर्धारण और मार्गदर्शन करती है। कला के माध्यम से हम अपने गौरवशाली अतीत से परिचित होते हैं। अतीत से हमे जोड़ने में कला एक सशक्त माध्यम के रूप में कार्य करती है।
कार्यकम का संचालन श्रीमती रेनू द्विवेदी, सहायक निदेशक, पुरातत्व (शैक्षिक कार्यक्रम प्रभारी) ने किया। कार्यकम के अन्त में डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह, निदेशक, उ0प्र0 संग्रहालय निदेशालय ने मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट अतिथि का धन्यवाद ज्ञापन करने के साथ-साथ कार्यक्रम में सम्मलित प्रतिभागियों तथा अतिथियों एवं पत्रकार बन्धुओं को धन्यवाद दिया।  


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?