रोजगार -कहानी
रामधन अब बूढ़ा हो गया। कमर झुक गई। लकड़ी ही उसके चलने का सहारा बन गई। सेवा निवृत्ति के 25 साल बाद भी उसका परिवार वहीं का वहीं ठहरा हुआ सा है। बड़ी लडकी आभा भी विधवा हो जाने के बाद रामधन के पास ही रहती है। छोटी सुरभि तो पिया के संग विदेश चली गई। जाने के बाद सुध भी नहीं ली अपने बाप की उसने। बेटा राहुल एम. ए प्रथम श्रेणी से पास कर चुका और अपने काॅलेज में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने पर सम्मानित भी हुआ। रामधन अचानक ही पक्षाघात से पीडित हो गया। खूब ईलाज भी करवाया किन्तु सुधार नहीं हो पाया। वह दिन भर बिस्तर पर पड़े-पड़े भावी दुश्चिंताओं से ग्रसित रहने लगा। स्थिति बिगड़ती जा रही थी। माँ की बूढ़ी आँखे भी कब तक पड़ौसी बच्चों को ट्युशन पर पढ़ाती रहेगी? ऐसी हालत में पेंशन के पैसे से कोई कैसे काम चलाए? अकेला पड़ गया बेचारा रामधन। दिन प्रतिदिन चिन्ता गहराती गई। जो रामधन रोज सुबह चार बजे उठकर दण्ड बैठक लगाकर घूमने निकलता था। आज चार महिने से खाट पर लेटा रहने को मजबूर हो गया। सुबह चार बजे साथ घूमने वाले भी चार माह बीत जाने के बाद भी रामधन की सुध लेने नहीं आये। यह कैसा दस्तूर हैं दुनियाँ का ?
बेटा राहुल नित्य प्रति सुबह रोजगार की तलाश में निकलता और शाम होते तक घर आकर निराश हताश होकर पड़ जाता। प्रथम श्रेणी में एम.ए तक की पढ़ाई कर लेने के बाद भी रोजी रोटी का जुगाड़ नहीं कर पाया तो ऐसी पढ़ाई किस काम की? इससे तो जीतू लुहार का छोकरा दसवीं पास करते ही अपने पुश्तैनी धन्धे में लग गया जो आज लाखों का हिसाब किताब रखता है। शिक्षा तो ऐसी होनी चाहिए न कि पढ़ाई पूरी करते ही रोजगारोन्मुख होकर सुखी जीवन यापन कर सके। राहुल उस दिन भोजन करके घर की सीढ़ियों की चैखट पर अनमना सा बैठा हुआ सोच रहा था कि अब करे तो करे क्या ? इसी समय रामधन के बचपन का दोस्त, जो विदेश में रहता हैं, उसकी कुशलक्षेम पूछनें के लिए आ धमका। दीन दयाल हैं नाम उसका। बड़ा खुश मिजाज हैं। लाख परेशानियाँ हो तब भी वह समभाव बनाये रखता है। संतुलन नहीं खोता। रामधन की दशा देखकर कहने लगा, दादा! ‘‘हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरि नाम’’ निराश होने की जरुरत नहीं है। कहते है, जब व्यक्ति पर चारों और से विपत्ति का पहाड़ टूट पडे तो ऐसी अवस्था में सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ देना चाहिए। जिस प्रकार दुख आता हैं उसी प्रकार जीवन में सुख के दिन भी आते है। राहुल की चिन्ता मत कर सब समय आने पर ठीक होगा। भैया! चिता तो हमारे शव को ही जलाती हैं किन्तु चिन्ता जीते जागते इंसान को ही जला ड़ालती है। बुढ़ापे को भुनभुनाते हुए जीने की बजाए गुनगुनगुनाते हुए जी। आशावादी बनकर जीना सीख। निराशावादी हर अवसर में कठिनाई देखता है जबकि आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है। इसीलिए आशावादी बनकर जीवन को जी। समय पर सबकुछ ठीक होगा।
दीनदयाल को आज ही विदेश लौटना था । रामधन से विदा लेकर बाहर की बैठक में राहुल को साथ बिठाकर गले में बाँहे डाल उसे यह हौसला दिलाया कि बेटा राहुल! ध्यान रख, जब सफलता का एक दरवाजा बन्द होता हैं तो दूसरा दरवाजा खुल जाता है लेकिन हम सदैव बन्द दरवाजे को ही देखते है। खुले दरवाजे की ओर नहीं देखते। जहाँ हिम्मत समाप्त होती हैं वहीं तो हार की शुरुआत होती है। धीरज मत खो। कदम आगे बढ़ा, ध्यान रख, हर सफलता का इंजीनियर व्यक्ति स्वयं ही होता है। अगर वह अपनी आत्मा की ईंट और जीवन की सीमेंट उस जगह लगाये जहाँ चाहते हैं तो सफलता की बडी मजबूत इमारत खड़ी कर सकता है। मोती तो सदैव समुद्र में गोता लगाने पर ही मिल सकते है, किनारे पर बैठ कर नहीं पा सकते। सफलता के लिए नए रास्ते चुनों। मैं तुम्हे सफलता का एक ही गुरु मन्त्र देकर जा रहा हूंँ, वह यह है। सर्वप्रथम अपना लक्ष्य निर्धारित कर, फिर कार्य की योजना बना, जो उस लक्ष्य तक पहुंचा सके और फिर उस काम में तब तक जुटे रहना जब तक निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाये। हमेशा ध्यान रखना जीवन युद्ध में बलशाली और तेज दौड़ने वाले ही नहीं जीतते बल्कि हर युद्ध में वे ही जीतते हैं जो यह सोचते हैं कि वे जीत सकते है। भरोसा होना चाहिए अपनी काबलियत पर। हिम्मत के साथ ही अपनी काबलियत अवश्य साथ देती है।‘‘ कागज अपनी किस्मत से उड़ता हैं किन्तु पंतग अपनी काबलियतसे’’ आगे बढ़ो, चल पड़ो, कंटकाकीर्ण मार्ग की चिन्ता मत करो। तुम्हारी मेहनत और दृढ़ इच्छा शक्ति तुम्हारी राह के काँटो को भी अवश्य फूल बना देगी।
दीनदयाल की सीख का जबरदस्त प्रभाव पड़ा राहुल पर। वह हिल सा गया। नई ऊर्जा का संचार हुआ। नई उमंग और नये जोश के साथ चल पड़ा अपनी मंजिल की ओर। निश्चय में मजबूती आ गई। वह जान गया कि इंतजार करने वालों को तो केवल इतना ही मिलता हैं जितना कोशिश करने वाले छोड़ जाते है। अब राहुल हौसलों की उड़ान पर है। आज राहुल बड़े तड़के ही उठा नहा धोकर तैयार हुआ। माँ बापू के चरण स्पर्श कर काम की तलाश में जयपुर जाने की आज्ञा प्राप्त कर निकल पड़ा। भावी संभावनाओं की सूची निर्मित करता हुआ जयपुर पहुँच ही गया दोपहर वाली ट्रेन से। स्टेशन के बाहर ही ठेले वाले, रिक्शे वाले को देखकर मन में आया कि क्यांे नहीं येही काम कर लूं? उससे मुसाफिरों से जाते आते बातचीत होगी, किसी से परिचय भी बढ़ेगा तो किसी के सामने काम काज की बात भी कर सकता हूं। कभी न कभी किसी न किसी से तो काम का जुगाड़ बैठ सकता है। इसी उधेड़बुन में चैराहा पार कर ही रहा था कि एक हरा भरा बगीचा दिखाई दिया। वह उस बगीचे में पहुँचा और जल मंदिर के पास वाली सूनी बेंच पर बैठ गया । समीप ही खड़े खोमचे वाले से भूख बुझाने के लिए एक के बाद एक समोसा खरीदा, पुराने अखबारी कागज के टुकड़े पर मसालेदार समोसो का रसास्वादन कर अखबार के टुकड़ो को वहाँ रखे कूड़ेदान को समर्पित करने ही वाला था कि उसकी नजर अखबारी कागज पर लिखे विज्ञापन पर पड़ी उसमें लिखा था ‘‘ मिलिए, वर चाहिए तो वर से और वधु से’’। उसकी आँखे उसी विज्ञापन पर टिक गई पूरा विवरण एक ही साँस में पढ़ गया, सोचा, क्यांे नहीं इसी विज्ञापन को आधार बनाकर आपना रोजगार प्रारम्भ किया जाए। अब क्या था, आशा अमर हुई। नई उंमग से भर गया।
समीप के जल मंदिर पर जाकर अपनी प्यास बुझाई और आज के अखबार की तलाश में आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाने के बाद शिव मंदिर की सीढ़ियों पर एक छोकरा जोर जोर से बोल रहा था। वर चाहिए तो लीजिए आज का यह अखबार, पढिये, आपको वधू भी मिलेगी। पढ़े लिखे, नौकरी पेशे वाले किसी भी जाति समुदाय के हो, मिलेंगे हमउम्र के स्वस्थ व जोड़ीदार रिश्ते। राहुल का रास्ता साफ होता जा रहा था। उसने वह अखबार खरीदा और वर वधू वाले विज्ञापन को काट कर अपनी जेब में रखा।
दूसरे दिन नौ बजे का समय था। नाश्ता किया और भविष्य का हिसाब किताब लगाने लगा। तभी अखबार बेचने वाला छोकरा आया और उससे आज का अखबार खरीदा। वर वधू का पन्ना पलटा। विज्ञापन में जोड़ीदार की तलाश की। जोडी वाले वर वधू को पत्र लिखना प्रारम्भ किया। तीन चार दिनों के बाद ही उसके फोन की घंटी बजती सुनाई दी। भैयाजी! आपका पत्र मिला काम करवा दे। आपका प्रस्ताव अच्छा लगा, हम तैयार हैं। काम शीघ्र करवावें। आपका मेहनताना हाथों हाथ मिल जाएगा। इस प्रकार वैवाहिक विज्ञापनों से रोजगार बढ़ता गया। दिन दूरी रात चैगुनी प्रगति हुई। अच्छा भला बिन पैसे का रोजगार मिला तो वह फूला नहीं समाया। उसने इसी रोजगार में कई विधवाओं को सधवा बना दिया और कई तलाकशुदा को शादीशुदा बनाकर पुण्य कमाया। वह उसके लिए वरदान सिद्ध हुआ। पिता रामधन का जयपुर में ही रह कर बड़े ख्याति प्राप्त डाक्टर से उपचार करवाया। पिता तन से और बेटा मन से स्वस्थ होकर परिवार सहित आनन्द का जीवन जीने लगे।
बगीचे के उस जल मंदिर पर एक अपंग चैबीस पच्चीसवर्ष की विकलांग विधवा लड़की रोज पानी पिलाने का ही काम कर अपनी रोजी कमाती हैं। बेचारी कापति उत्तराखण्ड की त्रासदी में भगवान को प्यारा हो गया था। वह लड़की सुबह तो पैसे वालो के घर जाकर झाडू बुहारी कर पैसा कमाती तो आधा अधूरा पेट भरने को मिल जाता। जब प्याऊ के काम सेछुटकारा मिलता तो दिन भर में प्राप्त हुए पैसों से भरपेट भोजन का इंतजाम कर लेती थी। कोई प्यासा दया भाव से तो कोई उदारता दिखाकर और कोई मनचले अपनी मौज से पानी का पैसा ड़ालकर जाते थे। साँयकाल मस्त मजदूर की दशा लिए वह घर जाती और दूसरे दिन की प्रतीक्षा करती। उसका नाम सुधा है।
एक दिन राहुल अकेले में उसकी राम कहानी सुनकर द्रवित हो गया और उसने उसे जीवन संगिनी बनाने का प्रस्ताव रखा तो वह राजी हो गई और माता पिता की साक्षी में धूम धाम से शादी हो गई। रोजगार के इस कारोबार में दोनों ही जी जान से लग गये। सुधा ने कम्प्यूटर और इंटरनेट का ज्ञान प्राप्त कर इस व्यवसाय को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया। दीनदयाल विदेश में रहते हुए भी राहुल व रामधन की खैरखबर लेता रहा। राहुल के कारोबार की उन्नति से वह बड़ा खुश हुआ। रामधन भी स्वस्थ होकर इस व्यवसाय में जुड़ गया और राहुल का सहारा बन गया। राहुल का कारोबार बढ़ता गया। इस व्यवसाय को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा कर विशेष कीर्तिमान स्थापित करने के लिए बैंक से आसान किश्तों में ऋण प्राप्त किया और रोजगार के इस कारोबार को विस्तार देकर अपार धन अर्जित करने में सफलता प्राप्त की।
कई लोगों की गृहस्थी चल पड़ी, पहचान बढ़ी तो धन्धा भी बढ़ गया। आज ही के दिन तो साल भर पहले काम शुरु किया था राहुल ने। अब वहीं अपना घर भी बसा लिया। माँ बाप भी एक साथ रहने लगे। आज राहुल को समझ में आया कि दो अक्षर का ‘‘लक’’ ढ़ाई अक्षर का ‘‘भाग्य’’ तीन अक्षर का ‘‘नसीब’’ और साढ़े तीन अक्षर की ‘‘किस्मत’’ ये सभी चार अक्षर की ‘‘मेहनत’’ से छोटे होते है।