बुन्देलखण्ड की पत्रकारिता की एक झलक
ठेठ बुन्देली मंे छपने वाले खबर लहरिया अखबार का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह खांटी ग्रामीण और जुझारू औरतों का सामूहिक प्रयास है बल्कि मूक रूप से चल रहे इस आंदोलन को यूनेस्कों ने पुरस्कृत कर दुनिया भर के सामने मिशाल पेश की है। सुदूर गांवों की साक्षर, कम पढ़ी-लिखी और सूचना क्रांति की धमक को अब तक न महसूस कर पाने वाले ग्रामीण महिलाओं की यह पहल का उदाहरण भी है-संसद से लेकर सड़क तक इन दिनों बुन्देलखण्ड के विकास को लेकर चर्चा है। बुन्देलखण्ड के बुलन्द हौसले की उड़ान की सच्ची कहानी है खबर लहरिया। दलित, कोल और मुस्लिम महिलाओं की टीम द्वारा निकाले जा रहे स्थानीय बुन्देली भाषा कें अखबार खबर लहरिया को यूनेस्कांे का किंग सेजांेग लिट्रेसी पुरूस्कार 2009 देने की घोषणा की गयी। इसके पहले चमेली देवी जैन अवार्ड इस अखबार की टीम को मिल चुका है। वास्तव में बुन्देलखण्ड की पत्रकारिता का समग्र मूल्यांकन दो प्रदेशों में बटे होने के कारण सही ढंग से नहीं हो सका है लेकिन 1840 के बुन्देला विद्रोह के समय से बुन्देलखण्ड में पत्रकारिता पाती (चिट्ठी) के माध्यम से शुरू हुई है। अंग्रेज विरोधी मराठो मालगुजारों ने आपस में रोटी (चपाती घुमाई) थी जिसका आशय यह था कि कम्पनी सरकार ने मालगुजारों पटवारियों के साथ-साथ बुन्देलखण्ड की आम जनता की रोटी छीन ली है। यह प्रतीक पत्रकारिता थी। जिसने बुन्देलखण्ड के लोगों को अंग्रेजों से लड़ने के लिये प्रेरित किया।
सन् 1871 ई. में विचार वहन मासिक सागर से प्रकाशित बुन्देलखण्ड का प्रथम समाचार पत्र मान सकते है । सन् 1894 ई. में साप्ताहिक पंच झांसी से प्रकाशित हुआ। इसी स्थान से सन् 1896 ई. में विचार विदान्त साप्ताहिक तथा सन् 1891 ई. में प्रभात मासिक छपा ।
सन् 1920 ई. में सागर से आठ किमी. पश्चिम में स्थित रतौना ग्राम में अंग्रेजों ने कसाईखाना खोलने का पट्टा कलकत्ता की डेबनपोर्ट कम्पनी को प्रदान किया। 1400 पशु काटने का उन्हंे लाइसेन्स मिला। इसी प्रकार का एक कसाईखाना दमोह में भी स्वीकृत हुआ था। इनको बन्द कराने का बीड़ा समाचार पत्रांे ने उठाया। पं. मदनमोहन मालवीय, केशवराम चन्द्र खण्डेकर-सागर स्वामी कृष्णानन्द आदि के संघर्षो से विवश होकर सरकार को कसाईखाना बन्द करना पड़ा। यह पत्रकारिता की महान विजय थी।
तिलक की प्रेरणा से सन् 1923 ई. में सागर से दैनिक प्रकाश का प्रकाशन शुरू हुआ इसके सम्पादक मास्टर बलदेव प्रसादजी थे। मुख्य शीर्ष में निम्न पंक्तियाॅ थी।
''देश दशा दर्शन देता, यह मनोभाव नित करे विकास।
राष्ट्रीय प्रेम, स्वतंत्र मानव हित, पढ़िये दैनिक पत्र प्रकाश।
सागर से देहाती दुनिया (1937) भाई अब्दुल गनी के संपादन में निकला। 1964 में निकला आगामी कल साप्ताहिक पत्र ने (1968) में बुन्देलखण्ड चेतना विशेषांक निकाल कर बुन्देलखण्ड के विविध पक्षों को उजागर करते हुये इस भूमि के साथ हो रहे अन्याय पर तीखी टिप्पणी की थी। इस अंक की चर्चा मध्यप्रदेश की विधानसभा से लेकर केन्द्रीय संसद तक गूंजी थी।
सागर से ही बच्चों की पत्रिका 'बच्चो की दुनिया' 1942 में प्रकशित हुई इसी जनपद से आगामी दुनिया, हिन्द सिपाही, बिंध्य केसरी, दैनिक राही, दैनिक आचरण, दैनिक भास्कर, दैनिक जन-जन की पुकार सहित अनेक समाचार पत्र आज भी प्रकाशित हो रहे है। हिन्दी पत्रकारिता पर बुन्देली शैली का प्रभाव बुन्देलखण्ड से निकलकर हिन्दी समाचार पत्रों में भी छाने लगा। हिन्दी प्रदीप में बुन्देली आल्हा शैली छपने लगी। भारतेन्दु युगीन हिन्दी पत्रकारिता का ज्वलन्त स्वरूप हिन्दी प्रदीप की (आल्हा रूपी) निम्नलिखित पक्तियाॅ उल्लेखनीय है
सबत उनइस सौ तिरपन मा, पड़ा हिन्द में महा अकाल।
घर-घर फाके होने लागे, दर-दर प्रानी फिरे बेहाल।
गेहूॅ चावल साॅवा मकरा, सबै अन्न एक भाव विकाय।
बिन पैसा सब छाती पीटैं, अब तो हाथ रहा नहिं जाय।
बुन्देलखण्ड की पत्रकारिता के विश्लेषण से पूर्व यहाॅ के लोकसाहित्य संस्कृति और काव्य को प्रकाश में लाने वाले प्रमुख समाचार पत्रों में 1930 में टीकमगढ़ से प्रकाशित
मधुकर एवं 1944 में यही से प्रकाशित लोकवार्ता तथा छतरपुर से प्रकाशित मामुलिया, सागर से प्रकाशित ईसुरी एवं चित्रकूट से प्रकाशित खबर लहरिया महत्वपूर्ण है।
बुन्देलखण्ड का प्रथम साहित्यिक पत्र मधुकर पत्रकार-प्रवर पं0 बनारसीदास चतुर्वेदी के सम्पादन और संयोजन ने 1930 में टीकमगढ़ से प्रकाशित हुआ। प्रारम्भिक दो अंकों तक मधुकर पाक्षिक रहा तदुपरान्त वह मासिक हो गया अैर निरन्तर आठ वर्षो तक प्रकाशित होता रहा।
सांस्कृतिक नवजागरण के उद्देश्य से ही मधुकर ने पृथक बुन्देलखण्ड का नारा बुलन्द किया। एक विशिष्ट इकाई की यह माॅग अनुचित नहीं थी। मधुकर के पृथक बुन्देलखण्ड अंक मंे पत्रिका ने बुन्देलखण्ड प्रान्त के निर्माण के औचित्य और उपादेयता का महत्व प्रतिपादित किया। हाथ से निर्मित कागज पर मुद्रित मधुकर साहित्यिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण था, किन्तु पृथक प्रान्त की आवश्यकता को व्यंजना देने के जो प्रयास आज से लगभग 6 दशक पूर्व किये गये, उनकी क्षिप्र झलक भी उक्त विशेषांक से मिलती है।
मधुकर पत्रकारिता में विलक्षण प्रयोग करता रहा। एक सांस्कृतिक इकाई की रचना का आन्दोलन संभवतः पूरे हिन्दी-भाषी प्रदेशों में अपने ढंग का अभिनव आयोजन था। यद्यपि पृथक बुन्देलखण्ड बन तो नही पाया किन्तु मधुकर के इस आवाहन को आज भी बल मिल रहा है।
जनता के रहन-सहन रीति-रिवाजों, उत्सवों, धार्मिक शिक्षा तथा संस्कार और लोककला और लोकसाहित्य के अध्ययन की यह त्रैमासिक पत्रिका मार्च 1944 से टीकमगढ़ की लोकवार्ता परिषद द्वारा प्रकाशित की गयी। सम्पादक कृष्णानन्द गुप्त थे। पत्र के ध्येय मंे लिखा गया था कि वह मूलतः बुन्देलखण्ड की लोकवार्ताओं के अध्ययन और संकलन तथा सर्वधारण में तत्सम्बन्धी ज्ञान को प्रचारित करेगी। पत्रिका का वार्षिक मूल्य पाॅच रूपया और एक प्रति का मूल्य सवा रूपया रखा गया था। पत्रिका की नियमावली में सम्पादक कृष्णानन्द गुप्त ने लिखा था- उसमें अधिकतर बुन्देलखण्ड की जनता में प्रचलित रीति-रिवाजों, उत्सवों और धार्मिक विश्वासों से सम्बद्ध लेख प्राकशित हुआ करेंगे। टीकमगढ़ से प्रकाशित अन्य समाचार पत्रों में बुंदेलखण्ड पोस्ट, फौलादी टाइम्स, हरितला दर्शन, कारगिल हिल्स, ओसगंध वासिकी, विश्व क्रांति प्रमुख है। सन् 1912 ई. कोंच से सत्यप्रकाश मासिक प्रकाशित हुआ। अगले वर्ष भाष्कर का प्रकाशन कृष्णगोपाल शर्मा ने प्रारम्भ किया। यह पत्र केवल दो वर्ष चला। इसी वर्ष सुप्रसिद्ध क्रन्तिकारी बृजबिहारी मेहरोत्रा ने देहाती का प्रकाशन साप्ताहिक के रूप में प्रकाशित किया। इसके सम्पादक को तीन वर्ष कारावास दण्ड मिला। इन्होंने क्रान्तिकारी आन्दोलन के विस्तार हेतु हस्तलिपि से साप्ताहिक उद्वोधन पत्र सन 1917 ई. में निकाला जो गोपनीय ढंग से वितरित होता था।
सन 1918 ई. पं. कृष्णगोपाल शर्मा ने कोंच एवं उरई से साप्ताहिक उत्साह का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसके सम्पादक पं. रामेश्वर प्रसाद शर्मा थे। सन 1921 ई. में यह पत्र बन्द हो गया। सन 1920 ई. में बाबू बृजबिहारी मेहरोत्रा ने साप्ताहिक लोकमत निकाला। यह पत्र भी दो वर्ष चला।
कांेच के बाबूराम गुप्त ने मासिक पत्र वैश्य शुभचिंतक निकाला। सन् 1924 ई. में कोंच जालौन से बाबूराम गुप्त ने साप्ताहिक निर्भय पत्र निकाला। इसके सहयोगी गयाप्रसाद गुप्ता रसाल थे। पं. मन्नीलाल पाण्डेय ने साप्ताहिक भारतीय लोकमत उरई से निकाला जो दस वर्ष तक लगातार छपता रहा।
सन् 1940 ई. मे उरई से मासिक पत्र आनन्द छपा इसके सम्पादक कैलाश नाथ प्रियदर्शी थे। सन् 1938 ई. में गयाप्रसद गुप्त रसाल ने साप्ताहिक वीरेन्द्र निकाला जो कालान्तर में लखनउ से छपने लगा। सन् 1937 ई. में गोविन्द नारायण तिवारी ने उरई से साप्ताहिक दर्शक का प्रकाशन किया। वीरभद्र तिवारी-सहयोगी चन्द्रशेखर आजाद ने साप्ताहिक पत्र प्रहरी निकाला। कोंच से ही सन् 1944 ईं. में हमीरपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पुकार का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसके सम्पादक परेमश्वरी दयाल निगम थे। आगे चलकर यह पत्र सन्त मेहरबाबा का मुख्य प्रचारक बन गया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पत्रकारिता शनैःशनै प्रगति पथ पर अग्रसर हुई। मन्नीलाल के सम्पादक में साप्ताहिक दिग्विजय का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। शंभूदयाल शशांक ने साप्ताहिक लोकमत को प्रकाशित किया जो 1958 तक प्रकाशित होता रहा। कालपी के मन्नीलाल अग्रवाल द्वारा सम्पादित जयहिन्द तथा चन्द्रभान विद्यार्थी द्वारा लोकसेवा का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन् 1949 ई. में पं. बेनीमाधव तिवारी ने साप्ताहिक हलचल छापा जो सन् 1952 तक चला। इसका पुर्नप्रकाशन पं. तुलसीराम त्रिपाठी ने प्रारम्भ किया जो सन् 1979 तक छपता रहा। सन् 1950 ई. में शिवानन्द बुन्देला तथा विष्णुदत्त शर्मा द्वारा साप्ताहिक बुन्देला का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ, जिसने 30 वर्ष की दीर्घायु प्राप्त की। इस पत्र ने जनपदीय साहित्य को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान किया। सन् 1958 ई. में कालपी से प्रकाश जैतली ने संगठन का प्रकाशन शुरू किया।
उरई में दैनिक पत्रों की परम्परा सन् 1960 मंे प्रारम्भ हुई पं. यज्ञदत्त त्रिपाठी ने दैनिक कृष्णा तथा जगतनारायण त्रिपाठी ने बहेलिया निकाला। ये सब अल्पजीवी रहे। नियमित दैनिक की परम्परा का श्रीगणेश सन् 1971 ई. मै दैनिक कर्मयुग प्रकाश द्वारा हुआ। शम्भूदयाल शशांक ने उरई से प्रकाशित दैनिक जन उत्साह का सम्पादन किया।
पत्रकारिता के इतिहास मंे कृष्ण बल्देव वर्मा कालपी पितामह के रूप मंे पूज्य है। सन् 1901 ई. में प्रसिद्ध मासिक पत्रिका सरस्वती में बुन्देलखण्ड पर्यटन विशेषांक का सम्पादन किया था। विशाल भारत में बुन्देलखण्ड विषयक लेख लिखे थे। बृजमोहन वर्मा जन्म सन् 1900 ई. कालपी ने हास्य व्यंग प्रधान औघड़ का सम्पादन तथा विशाल भारत कोलकता साहित्य सौरभ में प्रकाशित हुए है। वर्तमान में दैनिक अग्निचरण, दैनिक दीवान, अगस्त, महिला, भविष्य वक्ता, उरई टाइम्स, मनमौजी प्रमुख पत्र है।
झांसी में क्रान्ति का शंखनाद फूंकने के लिए रघुनाथ विनायक घुलेकर ने सन् 1920 ई. में उत्साह पत्र निकाला। उन्हें कई बार जमानते देनी पड़ी। पं. कृष्ण गोपाल शर्मा ने बुन्देलखण्ड केसरी, साप्ताहिक क्रान्किारी का सम्पादन किया श्रमजीवी और उत्साह साप्ताहिक पत्र निकाले। विवेक कटु आलोचक और स्पष्ट वक्ता थे। बेनी प्रसाद श्रीवास्तव ने दिग्दर्शन साप्ताहिक फ्री थिंकर तथा बुन्देलखण्ड साप्ताहिक निकाला। मुहम्मद शेर खाॅ ने हिन्दी केसरी साप्ताहिक निकाला। मि0 ऐबट ने झांसी न्यूज सरकार के समर्थन मंे छापा। मउरानीपुर-झांसी से जुझौतिया प्रभा तथा झंासी से सना हितकारी मासिक पत्र निकले। सन् 1921ई. में मोठ (झांसी) से नाई मित्र पत्रिका निकाली। सन् 1922 में झंासी से झांसी समाचार प्रकाशित हुआ सन् 1931 में गहोई मित्र झांसी से प्रकाशित हुआ। स्वाधीन प्रेस झांसी से जुलाई 1962 ई. में ग्राम सुधारक पत्रिका छपने लगी। लखपत राम शर्मा ने देशी राज्य साप्ताहिक निकाला जो सन् 1946 से 1954 तक छपता रहा। आपने शहीद व जनक्रान्ति भी छपाए। श्रवण प्रसाद मिश्र ने प्रजा मित्र पाक्षिक सन् 1940 मंे निकाला। जो कालान्तर में दैनिक हो गया था। सन् 1941 ई. में आचार्य प्रभाकर ने साप्ताहिक जीवन निकाला जो भारतीय संस्कृति का परम प्रचारक था। 1942 से जागरण तथा 1958 से दैनिक भास्कर का प्रकाशन हो रहा है। हिन्दी में देश के सबसे अधिक प्रसारित समाचार पत्रों भास्कर और जागरण का जन्म झांसी में ही हुआ है।
यहां से अन्य प्रकाशित हिन्दी दैनिकों में मौलिक अधिकार, राष्टबोध, स्वदेश, गढ़कुन्डार टाइम्स, जनहित दर्शन, पेन पावर, स्वतंत्र प्रवाह, दैनिक विश्वपरिवार, दैनिक लोकपथ, राष्ट्रनिर्माता, भारत वार्ता, भारती, जन समाचार, भव्य भास्कर, पवन प्रभाव, जनसेवी, महिला उत्थान, स्वाधीन, उत्साह आदि पत्र है।
ललितपुर जनपद से 1940 में सिद्धि मासिक के प्रकाशन के साथ पत्रकारिता शुरू हुई अन्य समाचार पत्रो में निर्भीक टाइम्स, ललित आवाज, जनप्रिय, राजदूत, बुन्देलीधारा, आवाम-ए-अजीज, शतरंग टाइम्स आदि समाचार पत्र है। उर्दू का आवाम-ए-अजीज समाचार पत्र महिला सम्पादक द्वारा प्रकाशित हुआ।
बांदा में भी क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रभाव व्यापक था। सन् 1929-30 ई. में साइक्लोस्टाइल मशीन से 'सत्याग्रही' गुप्त रूप से छपता था। इसके सम्पादक गोकुल भाई तथा रामगोपाल गुप्त थे। पं. गोदीन शर्मा ने इसी समय लोकमान्य तथा बुन्देलखण्ड केसरी सम्पादित कर केसरी प्रेस बांदा से छपाया। सन् 1932 ई. में मास्टर नारायण प्रसाद बांदा ने मिलकर बुन्देलखण्ड केसरी निकाला, जिसमें जोशीले गीत, राष्ट्रीय समाचार पत्रों की समीक्षा आदि निकलती थी। अधिकतर यह अखबार साइक्लोस्टइल से छपता था, किन्तु पता नहीं चलता था कि कब और कहां से छपता है। इसका वितरण कौन व किस प्रकार करता है। सन् 1940 में प्रकाशित साप्ताहिक मुखिया का प्रकाशन चार वर्ष तक हुआ। रामनाथ गुप्ता ने कान्यकुब्ज वैश्य हितकारी मासिक पत्रिका परमेश्वरी दयाल खरे में दुखिया किसान निकाल तथा अपने प्रेस में छापा। सन् 1952 ई. में कु0 आनन्द सिंह एडवोकेट ने सत्याग्रही एवं दिवाकर पाक्षिक पत्र निकाले। सन् 1953 ई. में मास्टर नारायण प्रसाद ने अपना पुराना अखबार साप्ताहिक केसरी प्रकाशित किया। तमन्ना बांदवी ने साप्ताहिक चित्रकूट समाचार छापा। राधाकृष्ण बुन्देली ने बांदा समाचार प्रकाशित किया। चैरी-चैरा हत्याकाण्ड से दुखी होकर अहसयोग आन्दोलन समाप्त हो गया। साइमन कमीशन की वापिसी नमक कानून का उल्लघंन इन सबका समाचार पत्रों ने सहयोग देकर प्रचार किया। केसरी प्रेस बांदा से साप्ताहिक मुखिया का प्रकाशन मास्टर नारायण प्रसाद ने प्रारम्भ किया। आजादी के उपरान्त बांदा से किसानों के लिये भारतीय कृषक तथा बांदा कृषक 1966 में शुरू हुये। अन्य समाचार पत्रो ंमें दैनिक मन्दाकिनी
धारा, श्री इण्डिया, त्रिशूल तेज, आर्दश बांदा, अजय दुर्ग, अलग टाइम्स, असली आवाज, बांदा दर्पण, बांदा जवान, बांदा का गौरव, बांदा की आवाज, बांदा क्रान्ति, बांदा पथ, बांदा समाचार, बांदा तहजीब, बांदा टाइम्स, विवेक इण्डिया, भगवती नरेश, भरतकूप समाचार आदि समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे है।
सन 1920 ई. में पन्ना से अनियतिकालिक पन्ना गजट छपा। 1923 ई. में देवेन्द्रनाथ मुखर्जी के सम्पादन में साप्ताहिक पत्र उदय प्रकाशित हुआ। सन 1930 ई. में पन्ना से वियोगी हरि ने पतित पावन साप्ताहिक पत्र निकाला। पन्ना की पत्रकारिता- डा0 हरिराम मिश्र के उल्लेख के बिना अधूरी है श्री मिश्रा बुन्देलखण्ड के सबसे पहले सर्वोच्च-शिक्षा-प्राप्त व्यक्ति रहे हैं। पन्ना दरबार ने उनको आर्थिक सहायता देकर काशी विश्वविद्यालय मेें शिक्षा प्राप्त करने के लिये भेजा था और वे वहाॅ से बी0टी0, एल-एल0 बी के साथ ही डी0लिट्0 की उपाधि लेकर लौटे। जब वे अपनी शिक्षा समाप्त कर पन्ना लौटे तो उन्होंने पन्ना महाराजा को एक साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित करने का सुझाव दिया जिसके फलस्वरूप 1945 से विन्ध्य भूमि मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
विन्ध्य भूमि का प्रकाशन यद्यपि राजकीय सहायता से हुआ था किन्तु मधुकर के समान पर पत्रिका भी राज्य-प्रशस्ति से सर्वथा मुक्त रही और केवल साहित्य से जुड़ी रही। इसमेें बुन्देली भाषा-साहित्य के साथ हिन्दी साहित्य के अन्य विषयों पर भी सामग्री प्रकाशित होती थी। डा0 मिश्र की साहित्यिक अभिरूचि ने पत्रिका की प्रतिष्ठा बढ़ायी और बुन्देलखण्ड में ही नहीं, पास-पड़ोस के क्षेत्रों में भी वह लोकप्रिय हो सकी थी। 1948 में राज्य का विलय होेने के साथ ही पत्रिका का प्रकाशन स्थगित हो गया। इसके अंक
मधुकर के समान ही आज भी सन्दर्भ की दृष्टि से उपयोगी बने हुए है।
गोविन्द प्रसाद शिलाकारी ने सन् 1923 ई. में विद्या नाथूराम शर्मा ने गृहस्थ जीवन तथा कुलपहाड़ हमीरपुर से वैद्य कल्पद्रुम पत्रिका निकाली। सन् 1944 ई0 में हमीरपुर से साप्ताहिक पुकार का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन्देश 1958 के अलावा हमीरपुर जनपद के अन्य समाचार पत्रों में दैनिक रेडीकल टाइम्स, रूद्राक्ष प्रमुख है।
सन् 1940 में दतिया से लोकेन्द्र का प्रकाशन किया गया। किशोरीलाल लिटोरिया उसके सम्पादक थे और वह दतिया दरबार का मुखपात्र था। उसे दतिया नरेश से वित्तीय अनुदान मिलता था और वह दतिया नरेश की प्रशस्ति तथा दरबार की गतिविधि छापा करता था। उसका कोई साहित्यिक महत्व नहीं था और न ही उसमें स्थानीय स्तर के कवियों को छोड़कर कोई श्रेष्ठ काव्य-रचना ही प्रकाशित हुई। राजकीय सहायता अधिक समय तक जारी न रहने के कारण सन् 1943 मंे लोकेन्द्र का प्रकाशन बन्द कर दिया गया।
कुसुम त्रिपाठी के संपादन में दैनिक दतिया की पुकार निकला है। शम्स वीकली, साप्ताहिक उदय, जन विजय, अंजाम (1966) आधुनिक कवि, 1944 में से बढ़ा (दतिया) से प्रतिभा (मासिक) हस्तलिखित पत्रिका थी।
पाक्षिक प्रवाह, अंजाम (1966) दतिया प्रकाश, दतिया अंगार, दतिया प्रकाश, दतिया की पुकार, दतिया रोशनी, दतिया क्रान्ति, दतिया रिर्पोटस, दतिया टाइम्स, देश के युवक, मध्य जनदर्शन, मध्यराज, समानता सन्देश, सत्तासुधार, सुबह की बात,
दतिया से श्री जर्नादन प्रसाद पाण्डेय ने किसान पंचायत प्रकाशित किया। छतरपुर जनपद की पत्रकारिता बुन्देली साहित्य को नया दृष्टिकोण प्रदान करने वाली मामुलिया का प्रकाशन हुआ। यहां से प्रकाशित अन्य समाचार पत्र में छत्र समाचार (1966) छतरपुर एक्सप्रेस, भृंगु वाणी, बुन्देलीसमर्थ, दैनिक गुप्तचर, दैनिक विध्य लहरी, दैनिक छतरपुर भ्रमण, दैनिक शुभ भारत, दैनिक प्रचण्ड शक्ति। बुन्देलखण्ड हलचल, शिक्षा संदर्भ उल्लेखनीय है।
दमोह जनपद का बुन्देलखण्ड की पत्रकारिता में महत्वपूर्ण भागेदारी रही है। यहां से प्रकाशित समाचार पत्रों में बुन्देली लोक संदेश, बुन्देलखण्ड की आवाज, दमोह दीपक, दमोह की पुकार, दमोह की ताकत, जंग चिंगारी, कर्तव्य, क्रान्ति बोल, आत्म लक्ष्य, युद्ध पथ, विकास की लहर आदि उल्लेखनीय है।
उत्तर प्रदेश के नव सृजित जनपद महोबा से बुन्देलखण्ड क्रान्ति, हिन्द समय, महोबा जन समाचार, पत्थरों की आवाज प्रमुख है।
चित्रकूट क्षेत्र का आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक जन चेतना जगाने में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां से प्रकाशित साप्ताहिक खबर लहरिया को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। अन्य प्रकाशित समाचार पत्रों में अजय दुर्ग प्रकाशन, चित्रकूट चक्रम, गरीब दूत, जय बुन्देलखण्ड भूमि प्रमुख है।