क्या खाकी वर्दी को मिला अपराध का ‘लाइसेंस’ ?
राज्य की पुलिस बेअन्दाज है। उसका चाल, चरित्र और चेहरा बदला नही है। जनता से हमदर्दी के साथ पेश आने की बाते बेमानी साबित हुई है। सत्ताधीशों के आदेश पर विपक्षी दलों पर लाठी भांजने के बाद अब राजधानी लखनऊ में आईवीएन-7 के पत्रकारों के साथ किया गया कृत्य ने पुलिस के एक और खौफनाक चेहरे से रूबरू कराया है। कलम के सिपाहियों से पुलिस इस लिए नाराज थी कि पुलिस के अपराध से पर्दा हटाने का प्रर्यास पत्रकारों द्वारा किया जा रहा था। लखीमपुर खीरी में बेगुनाह बालिका की थाने में मौत पर मीडिया की सक्रियता से पर्दा उठा था तभी से प्रदेश की पुलिस नम्बर वन दुश्मन मीडिया बन गयी है। क्योंकि कानपुर के दिव्या कांड, बांदा के शीलू प्रकरण में बेगुनाहो को जेल भेजने से लेकर अपराधियों के संरक्षण की परत-दर-परत खोलने के कारण पुलिस मीडिया को सबक सिखाने के लिये छुटपुट प्रयास करती रही है। पुलिस कर्मियों के शराब पकर हंगामा करने, महिलाओं से छेड़छाड़ करने और अपराधों में खुद लिप्त रहने की विभिन्न घटनाओं ने पुलिस के चेहरे को दागदार बनाने का काम किया है। मानवाधिकार पर अमल के तमाम दावों के बावजूद थानों पर पिटाई की घटनाएं तो जब तक प्रकाश मंे आती ही रही हैं, पुलिस हिरासत में मौतों का सिलसिला भी कम नहीं हुआ है। पुलिसकर्मियेां के इस आचरण और व्यवहार की सच्चाई एक अध्ययन मंे सामने आयी है। वास्तव मंे पुलिसकर्मियों का यह ढर्रा तब है जब मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक अपनी हर बैठक में पुंलिस को सुधरने की हिदायत देते रहे है। समय-समय पर तमाम निर्देश जारी किये जाते रहे है।कभी अपने इकबाल के लिए मशहर यूपी पुलिस का यह बदरग चेहरा ही अब इसकी असल पहचान है। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जो किसी और के मुंह से नही बल्कि राज्य पुलिस के मुखिया करमवीर सिंह के मुंह से निकला था, सच्ची बात यह है कि पुलिस अभिरक्षा में जो लोग मरते हैं, वह सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर लोग होते है। कभी इनामी अपराधी की पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु नही होती। शायद यह सच्चाई डीजीपी के दिल में चुभ रही है, पुलिस अभिरक्षा में हुई मौत के बाद एक बार फिर पुरी पुलिस सवालों के घेरे में है। पुलिस नेतृत्व को सफाई देते नही बन रही है। मानवाधिकार ने यूपी पुलिस के सच पर कड़ा रूख अपनाया है। राज्य मानवाधिकार आयोग ने तह में जाकर जांच कराई तो यूपी पुलिस का सच फिर उजागर हो गया। मामला गाजियाबाद का है। थाना सिम्भवली की पुंलिस ने एक फरवरी 10 की रात राजपाल को बगैर किसी आरोप के घर से उठा लिया और पांच दिन तक लाकअप मंे रखा। उसे शारीरिक यातनाएं दी गई। बाद में उसके भाई से लिखित सुपुर्दगीनामा लिखाते हुए उसे छोड़ दिया गया।
राजपाल की पत्नी की शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस प्रकरण का संज्ञान लिया। आयोग ने कहा कि बिना किसी कारण थाने मं किसी व्यक्ति को बंद कर प्रताड़ित कराना कानूनी रूप से गलत है। आयोग ने राज्य मानवाधिकार आयोग को इस प्रकरण की जांच करने का आदेश दिया। राज्य मानवाधिकार आयोग पुलिस उप महानिरीक्षक मेरठ से जांच कर अपनी रिपोर्ट देने को कहा। जांच में इस बात की पुष्टि हुई कि सिम्भवली थाने की पुलिस ने राजपाल को बगैर किसी कारण के पांच दिनों तक लाकअप मंे रखा उसे शारीरिक यातनाएं दी। पुलिस उप महानिरीक्षक ने तत्कालीन थानाध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह, सिपाही जगमाल ंिसंह, जीप चालक जीत सिंह को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की। आयोग ने प्रकरण को मानवाधिकार का उल्लंघन पाते हुए पुलिस कर्मियांे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने के निर्देश प्रमुख सचिव गृह और पुलिस महानिदेशक को दिये। साथ ही 25 हजार का जुर्माना एक माह के अंदर अदा करने को भी कहा है। डीजीपी रह चुके यशपाल सिंह कहते हैं, यूपी पुलिस के लिए किसी की जान लेने का अधिकार को पुलिस को कोई कानून नही देता। मेरठ में पुलिस प्रताड़ना में पुलिस हिरासत में सतेन्द्र वीर सिंहकी मौत आगरा की छलेंसर चोरी के सामने पुलिस ने युवक संतोष को बस के आगे फेक कर मार डाला, 29 जून को लखनऊ चालक बृजेश वाजपेई (22) सआदतगंज पुलिस पिटाई में मौत, जी.आर.पी. सिपाही अंसार अहमद की सैनी थाना कौशाम्बी में पुलिस हिरासत में मौत, प्रतापगढ़ में पुलिस हिरासत में मथुरा प्रसाद लोध की मौत, फैजाबाद के थाना रूदौली में दलित युवक संजय रावत की पिटाई से मौत, तिलहर (शाहजहाॅपुर) में राजू यादव को चोरी का आरोपी युवक को पीट-पीट कर मार डाला, हरदोई में वृद्ध राम खिलावन को पुलिस ने पीट कर मार डाला, लखनऊ के नीलमथा निवासी संजय की पुलिस पिटाई से मौत 3 मार्च 2010 को, आजमगढ़ मंे तमौली निवासी बृजेश को पुलिस पीट कर हत्या की 10 मई 2010, औरैया में चोरी के आरोपी की पिटाई से मौत बहराइच जनपद के हरदी थाने में पुलिस पिटाई से बड़कऊ उर्फ उमर की मौत, कानपुर मंे मुकेश सिंह हत्या रेल बजार थाने मंे हत्या की गई, इलाहाबाद के धूरपुर थाने में जय निषाद और अशोक निषाद की पुलिस पिटाई से मौत, गाजियाबाद में थाना बहादुरगढ़ में विजय की मौत, सीतापुर में हरिहर की पुलिस पिटाई से मौत, एटा में पुलिस अभिरक्ष में निजय सिंह की मौत, 2011 में जौनपुर जनपद की पुलिस हिरासत में सेवा निवृत्त जवान मनीराम सिंह की मौत की घटना में झकझोर दिया है तो बदाॅयू में पुलिस दरोगा संजय राय के घर से लाईट मशीन गन सहित अनेक असलहे बरामद होने से सनसनी फैल गयी। एक दर्जन अपराधों के मुकदमें चल रहे इस दरोगा की नौकरी फिर भी ठप्पे से चल रही थी। कभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अनन्द नारायण मुल्ला ने टिप्पणी की थी पुलिस संगठित अपराधियों का गिरोह है। यूपी पुलिस पर हूबहू सटीक साबित हो रही है। दरअसल, यूपी पुलिस व अपराध का नाता पुराना है। दागी पुलिसकर्मियों को फोर्स से बाहर करने के दावे कमजोर इच्छाशक्ति के आगे हवा हो गए और अपराध की बेल पुलिस महकमे की जकड़ती गई। राजधानी के कई पुलिसकर्मियों के दामन पर भी अपराध की छीटें है। सनसनीखेज लूट हो या सुपानी लेकर हत्या, खाकी वर्दी वालों से कुछ नहीं बचा। और तो और 2006 में लखनऊ के गोमतीनगर से प्रापर्टी डीलर लोकनाथ के अपहरण मंे सीओ स्तर के अधिकारी तक की भूमिका सामने आयी। निचले स्तर के पुलिसकर्मियों में पनप रही आपराधिक प्रवृत्ति के लिए बड़े अफसर भी काफी हद तक जिम्मेदार है।लखनऊ में ढाई साल में ढाई सौ से ज्यादा दागी पुलिसकर्मी निलम्बित। वसूली, अपहरण, लूट या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध भी इनसे अछूते नही है। कायदे-कानून इनके लिए मायने नही रखते कयेांकि ये खाकी वर्दी पहनते है। शाहजहांपुर एटीएम कांड में फसे कई पुलिस कर्मियों से फिर साबित हो गया कि मुख्यमंत्री हो या डीजीपी पुलिसकर्मियों को किसी का खौफ नही है। शाहजहांपुर में तीन सिपाहियो ने एटीएम लूट कर फिर वर्दी को दागदार किया।आगरा की राजामंडी थाने में वेगुनाह किशोर अर्जुन की बेरहमी से पिटाई बिजनौर मंे होमगार्ड ने मजिस्ट्रेट पर तानी रायफल, पुलिस के फर्जी वर्क आउट से बनारस में अपराधियों को शह मिली, मुगलसराय पुलिस ने धन उगाही में सिपाही के पुत्र अमर बहादुर को गिरफ्तार किया तो खाकी वर्दी ने रेलयात्रियों को लूटा, इटावा में महिला का कान पकड़ कर खीच ले जाने पर सी.एम. ने थाना अध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह को निलम्बित किया था।, राजधानी में कैप्टन की बहन से सिपाही ने की छेड़छाड़ में तीन सिपाही निलम्बित, बुलन्दशहर में फौजी कुलदीप को पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार डाला शाहजहाॅपुर में ए.टी.एम. लूटने मंे सिपाही शैलेन्द्र सिंह ओर संदीप पवार गिरफ्तार हुऐ। आदिवासी गुड़िया ने मिर्जापुर के तीन सिपाहियों पर दुराचार का आरोप लगाया।, महोबा मंे पाँच पुलिस वालों पर महिला के 11400 रूपये लूटने पर डकैती का मुकदमा दर्ज हुआ। राजधानी में बीते वर्ष मोहनलाल गंज पुलिस पीड़ित राकेश को ही जेल भेज दिया, प्रतापगढ़ की युवती से दुराचार का आरोपी सिपाही अरूण यादव गिरफ्तार, पांच जून 2008 माल थाने के सीआईओ नियाज और अरविन्द शहरी क्षेत्र में वसूली करते पकड़े गये, 6 मार्च 2008- वसूली के आरोप में सिपाही गोपाल गुप्ता व हेमराज धरे गये 18 फरवरी 2008- काकोरी थाने के दरोगा अश्विनी लकड़ी की कटान में निलंबित हुए, 16 फरवरी 2008- माल थाने के सिपाही ओम प्रकाश व अश्विनी वसूली में निलंबित, अलीगंज में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी में सिपाही बंदी, अलीगंज मंे व्यवसायी से वसूली में तीन सिपाही बर्खास्त, गोसाईगंज थाने की पुलिस पर टैक्सी चालक की ठेके पर हत्या कराने का आरोप, राजमार्गो पर वसूली करने वाले 14 पुलिसकर्मी निलंबित, छह बर्खास्त, चिनहट मंे अपराधी पर कार्रवाई न करने में 12 पुलिसकर्मी लाइन हाजिर, वगीरगंज में लूट के मामले में दो सिपाही निलंबित, आशियाना में क्राइम ब्रांच ने व्यवसायी से सोना लूटा, पांच पुलिसकर्मी बर्खास्त किये जा चुके है। लेकिन पुलिस का खतरनाक चेहरा और अधिक खौफनाक हो रहा है। लोग कहने लगे है कि जिस गाँव में कभी अपराध नही होते हो वहाँ पुलिस थाना खुलते ही अपराधों की फेहरिस्त शुरू हो जाती है। इसके पीछे मित्र पुलिस के कुछ विचित्र कारनामे है जो पुलिस को ही नही हमें भी शर्मशार करते है।
करनी किसी की, सजा किसी को
बहराइच में करै अपराध कोई और फल भोगे कोई और की उक्ति जिला जेल में बंद जनजाति के राजू पर सटीक बैठ रही है। फरार अभियुक्त के स्थान पर मादक पदार्थ निरोधक अधिनियम कें उसे जेल भेज दिया। वह एक साल पांच माह से सलाखांे के पीछेहै। राजू की मां की फरियाद पर प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश/प्रभारी मानवाधिकार आयोग ने इस संबंध मंे रूपईडीहा थाने से आख्या मांगी है। अपने बचाव के लिए पुलिस के इस कारनामें की चैतरफा निन्दा हो रही है। अदालत की नोटिस के बाद अब पुलिस अपने हाथ-पैर बचाने में लगी है। उल्लेखनीय है कि रूपईडीहा पुलिस ने चकिया रोड ईदगाह से 31 जनवरी 2009 कोे 6 बजकर 45 मिनट पर विनोद पुत्र भानू निवासी कस्बा नानपारा को एक किलोे 500 ग्राम नाजायज चरस के साथ गिरफ्तार किया था। फर्द दाखिला व तफ्तीश के आधार पर अभियुक्त के विरूद्ध मादक पदार्थ अधिनियम का अभियोग पंजीकृत किया गया। यह गिरफ्तारी मुखबिर की सूचना पर की गयी थी। बताया जाता है कि गिरफ्तारी के बाद विनोद पुलिस के हिरासत से फरार हो गया था। पुलिस ने अपनी गलतियों पर पर्दा डालने की नीयत से एक षडयंत्र के तहत जनजाति के राजु पुत्र पूसू निवासी पुरानी बाजार बाबागंज जमुनहा को उसके घर से पकड़ लायी और फरार अभियुक्त के स्थान पर उसे जेल भेज दिया। 18 अप्रैल 2009 को आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया। इस संबंध मंे जिला कारागार मंे निरूद्ध राजू की मां माया देवी पत्नी पूसू ने एक प्रार्थना पत्र दिया है जिसमें उसका आरोप है कि रूपईडीहा की पुलिस उसके बेटे को घर से पकड़ ले गयी थी। पुलिस ने विनोद के स्थान पर उसे फर्जी मुकदमें में उसे जेल भेजा है।
वाह री पुलिस! अधेड़ महिला को दुष्कर्मी बताया
बलरामपुर में क्या कोई महिला किसी युवती के साथ दुराचार कर सकती है। आपका जवाब होगा नहीं, लेकिन गैंसड़ी पुलिस ने अधेड़ महिला द्वारा किशोरी के साथ दुराचार की पुष्टि करते हुए न्यायालय में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया है। अदालत ने प्रकरण पर विवेचक को तलब किया है। प्रकरण कोतवाली गैंसड़ी क्षेत्र के ग्राम रमवापुर का है। यही के रामनाथ यादव की 16 वर्षीय पुत्री को बीते 12 मार्च को गांव के ही अवधे का साला भगवानदीन बहला फुसलाकर भगा ले गया था। घटना के दो दिन बाद पुलिस ने आरोपी अवधे, भगवानदीन और मालती देवी पत्नी अवधे (45) के विरूद्ध बहलाने फुसलाने के अपराध में मुकदमा दर्ज किया। मामले की विवेचना उपनिरीक्षक राम औतार सिंह को दो गई। जब आरोपी पकड़ मंे नही आये तो विवेचक ने अदालत से फरार घोषित कर कुर्की की पैरवी की। बीती 21 अप्रैल को किशोरी थाने से मात्र ढाई किलोमीटर दूर रजडेरवा चैराहे पर नाटकीय ढंग से मिल गयी। किशोरी के बयान के बाद सभी आरोपियों पर दुराचार का मुकदमा बढ़ा दिया गया। हालांकि किशोरी ने महिला पर केवल बहलाने फुसलाने का आरोप लगाया था। महिला द्वारा बलात्कार की कहानी पर न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम ज्ञानप्रकाश शुक्ल ने विवेचक से स्पष्टीकरण तलब कर लिया है। स्पष्टीकरण देने की बजाय विवेचक ने 22 मई 2010 को महिला व दो अन्य आरोपियों के विरूद्ध दुष्कर्म साबित मानते हुए अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया।
खता किसी की सजा किसी को
बाराबंकी में न तहरीर, न मुकदमा, न कोई खिलाफ फैसला फिर भी काट रहे जेल। एक बार की कौन कहे रामू पर यह जुल्म बार-बार हुआ। बिना कोई अपराध किये जिला कारागार मंे एक गरीब बाप का नौजवान बेटा फिर बंद है। मामला शुरू होता है उच्च न्यायालय के एक गिरफ्तारी वारंट से। न्यायालय से एक गिरफ्तारी वारंट कमलेश उर्फ राजेश लोध उर्फ रामू पुत्र हरिनाम लोध उर्फ लालजी उर्फ गंगू निवासी ग्राम चिलौकी थाना सफदरगंज हाल पता मरौचा मिश्री सिंह रामनगर के नाम जारी हुआ था। को पुलिस ने राजेश उर्फ राम लोध पुत्र लालजी उर्फ गंगू को जेल भेज दिया। न्यायालय के समझ गिरफ्तार राजेश उर्फ रामू लोध ने कहा कि उसने कोई अपराध नहीं किया है। उसकी गिरफ्तारी अवैध है। न्यायालय ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया। गत नौ दिसम्बर को उपरोक्त मुकदमें में पुनः गैर जमानती वारंट जारी हुआ और पुलिस ने एक बार फिर रामू को जेल भेज दिया।
बिना सुनवाई आठ साल से जेल में
लखनऊ में राकेश जायसवाल नौ बरस से अधिक समय से जेल में है। उन पर पत्नी की हत्या के प्रयास का आरोप है। जनपद न्यायधीश के सामने उनकी पत्रावली सुनवाई के लिए आती है। लेकिन कार्यवाही आगे नही बढ़ती, क्योंकि आठ वर्ष पूर्व उच्च न्यायालय भेजी गई एक पत्रावली सुनवाई अदालत वापस नहीं लौटी है।
बबिता को दहेज के लिए प्रताड़ित करने तथा मिट्टी का तेल डालकर जलाने के प्रयास के आरोप में उसके पिता राज बहादुर जायसवाल ने 31 अक्टूबर 2000 को हजसनगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिपोर्ट मंे पति राकेश जायसवाल, सौतेली सास शशी, जेठ राज किशोर, जेठानी रचना,देवर अवधेश एवं ननद पूनम का ेनामजद किया था। पुलिस ने पहले 5 जनवरी 2001 को राकेश जायसवाल, राज किशोर एवं रचना के विरूद्ध आरोप पत्र दाखिल किया। बाद में शिकायत पर दोबारा जांच हुई। इस बार केवल राकेश जायसवाल के खिलाफ आरोप पत्र 28 मार्च 2001 को अदालत में दाखिल किया गया। इसी बीच 25 सितम्बर 2001 को पत्रावली विचारण के लिए सत्र न्यायालय भेज दी गई। जहां पर 18 अक्टूबर 2001 को अपर जिला जज एसवाई राम ने अभियुक्त के खिलाफ आरोप तय किया। सबसे पहल बबिता ने 29 जनवरी 2002 को गवाही दी तथा नामजद सभी लोगों पर आरोप लगाया। बबिता की गवाही होते ही अदालत मंे अर्जी दी गई कि अन्य आरोपियों को तलब कर मुकदमा चलाया जाए। सुनवाई के बाद अदालत ने 12 फरवरी 2002 को शशी जायसवाल, राज किशोर, श्रीमती रचना, अवधेश जायसवाल एवं पूनम को तलब कर लिया। इस तलबी आदेश को निगरानी याचिका के जरिए राज किशोर जायसवाल एवं रचना जायसवाल ने उच्च न्यायालय के समक्ष 26 फरवरी 2002 को चुनौती दी। जिस पर न्यायमूर्ति नसीमुद्दीन ने सुनवाई अदालत की पत्रावली तलब करते हए तलबी आदेश पर रोक लगा दी। उच्च न्यायालय में 14 मार्च 2002 को पत्रावली प्राप्त होने के बाद निगरानी में पैरवी सुस्त कर दी गई तथा आज की तारीख में कोई स्टे आर्डर नही है। लेकिन इस पत्रावली के वापस सुनवाई अदालत न जाने से राकेश जायसवाल के भाग्य का फैसला नही हो पा रहा है। उच्च न्यायालय से पत्रावली मंगाने के लिए निबंधक के माध्यम से करीब तीन दर्जन अनुरोध पत्र भेजे जा चुके है। यहां तक कि अभियुक्त ने स्वयं इस बाबत उच्च न्यायालय एवं जिला जज को पत्र लिखा है। जिला जज ने 21 अक्टूबर 2009 को सुनवाई की जाए। अपर जिला जज शेष मणि ने पुनः उच्च न्यायालय के निबंधक को पत्र लिखा है कि निगरानी संख्या 77/2002 में संपूर्ण पत्रावली उच्च न्यायालय गई है, जिसके वापस न आने से सुनवाई नही हो पा रही है। जबकि अभियुक्त 9 वर्षो से जेल मे है।
-ःखाक करने को तुली खाकीः-
ज्ब जुल्म हद से पार हो जाता है तो लोग सबक सिखाने को कदम बढ़ा लेते है। सूबे के 70 जिलों में 01 जनवरी 2006 से 30 अगस्त 2010 तक राज्य मानवाधिकार आयोग के पास पहुंची 9084 शिकायतें भी यही बयां करती है। ये सभी शिकायतें पुलिसिया उत्पीड़न और पुलिस अभिरक्षा मंे उत्पीड़न से जुड़ी है। सूचना के अधिकार के तहत इटावा जनपद के सैफई निवासी अवधेश कुमार को राज्य मानवाधिकार आयोग ने यह जानकारी दी तो सूबे की पुलिस का सच सामने आते देर न लगी। खास बात यह है कि सूबे में सबसे ज्यादा (835) शिकायतें लखनऊ से पहुंची है। छत्रपति शाहूजी महाराजनगर से सबसे कम यानी 4 शिकायतंे दर्ज कराई गई। आगरा मंडल में आगरा जिला 143 शिकायतों के साथ टाॅप पर रहा। सहारनपुर की 59, मुजफ्फरनगर की 130, बुलंदशहर की 90, गाजियाबाद की 177, मेरठ की 98, गौतम बुद्ध नगर की 62, बागपत की 29, बिजनौर की 72, मुरादाबाद की 117, रामपुर की 35, ज्योतिबाफुले नगर की 38, बरेली की 146, पीलीभीत की 46, शाहजहांपुर की 90, हरदोई की 182, लखीमपुर खीरी की 136, लखनऊ की 835, रायबरेली की 219, सीतापुर की 735, उन्नाव की 209, श्रावस्ती की 26, बहराइच की 121, बाराबंकी की 232, फैजाबाद की 127, गोण्डा की 94, सुल्तानपुर की 204, अम्बेडकरनगर की 131, बलरामपुर की 51, आजमगढ़ की 228, बस्ती की 112, देवरिया की 107, गोरखपुर की 194, मऊ की 109, सिद्धार्थ नगर की 52, महाराजगंज की 58, कुशीनगर की 134, संत कबीर नगर की 44, बलिया की 122, गाजीपुर की 151, जौनपुर की 280, सोनभद्र की 88, वाराणसी की 344, संत रविदासनगर की 102, चंदौली की 109, इलाहाबाद की 392, फतेहपुर की 132, प्रतापगढ़ की 313, कौशाम्बी की 144, इटावा की 62, फर्रुखाबाद की 67, कानपुर नगर की 268, औरैया की 59, आगरा की 143, अलीगढ़ की 119, एटा की 42, फीरोजाबाद की 79, मैनपुरी की 61, मथुरा की 86, हाथरस की 33, कांशीरामनगर की 24, चित्रकूट की 95, बांदा की 90, हमीरपुर की 82, जालौन की 131, झांसी की 100 और ललितपुर की 26 शिकायतें दर्ज की गई। यूपी पुलिस प्रदेश के बाहर भी पुलिसिया उत्पीड़न से बाज नही आई। दूसरे राज्यों के लोगांे की ओर से 17 शिकायतें आयोग के पास पहंुची है।
यह आलेख बिना अनुमति प्रकाशन प्रतिबंधित है।
........................................................................................................................................................
यह स्टोरी 2011 में कई पत्र और पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2011 के तहत तत्कालीन समय के राजनैतिक माहौल को समझाने के उद्देश्य से पुनः प्रकाशित कर रहे है।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
यह आलेख कापीराइट के कारण किसी भी अंश का पुर्न प्रकाशन लेखक की अनुमति आवाश्यक है।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
लेखक का पता
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
बिधान सभा मार्ग,लखनऊ
मो0ः 9415508695,8787093085