क्रान्तिरथ के करिश्माई कमांडर अखिलेश
आवेग नहीं..... अनुभव ने एक नई राह चुनी है। उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने अनबूझे रहस्य ..... यात्रा की गतिवान रातें नये भोर का खामोशी से आगाज, क्रान्तिरथ पर करिश्माई कमांडर वे छप छप पद्चाप के बीच गांव की ओर जाने वाली पंगडंडी पर बार-बार, घास के बीच बने रास्ते पर, शहर की बड़ी-बड़ी कालोनियों के आंगन में, मजदूरों के गीतों में, साॅझ के अंधेरे में चुनी है। चुनावी गोधूलि-बेला से सभी रथी अपने को महारथी बताने में किसी से कमतर नही, चुनावी चश्में में सब कुछ तो था लेकिन बहुत कुछ नही था इसलिऐ समाजवाद का ककहरा पढ़ा गया, सुना गया आखिर क्यो ?
उत्तर प्रदेश की 16वीं विधानसभा चुनाव के परिणामों ने जता दिया है कि प्रदेश की जनता ने एक बार फिर परम्परागत रूप से चल रही परम्परा का अनुशरण करते हुये सत्ता के सिंहासन पर समाजवादी पार्टी को बिठाने के लिये अपना समर्थन व्यक्त किया है। इस समर्थन में बहुमत का आंकड़ा थोड़ा कम रखने के पीछे के निहतार्थ को देखा जाये तो इसकें पीछे 2007 की बसपा सरकार एक कारण लगती है। 20 वर्षो के बाद जन ने पूरे मन के साथ स्पष्ट बहुमत देते हुये बसपा को सत्ता के सिंहासन पर आरूण किया तो बसपा मे विनम्रता की जगह उग्रता के साथ पूरे 5 वर्षो तक सत्ता का संचालन चाबुक दम पर किया जिसमें सत्ता को नौकरशाही ने अपने मनमाने ढंग से चलाया । बसपा सुप्रीमों सूबे जिलों का जायजा लेने पहुंची तो उनके सामने लोगों ने पुलसिया घेरा तोड़कर अपनी बात बताने की कोशिश की तो उसके बदले में मिली लाठियाॅ ने बसपा के पतन का की नीव रख दी । इस गिरती हुई नीव में समाजवादी पार्टी ने अपनी इमारत खड़ी करने कें लिये बड़े ही विश्वास के साथ कदम दर कदम कोशिश की, इस कोशिश में उम्र की थकान के बावजूद, लम्बी दौड़ में शामिल रहने का यह संकल्प मुलायम सिंह की विश्वसनीयता ने तथा अखिलेश सिंह यादव स्पष्टवादिता और शालीनता के साथ शिवपाल यादव की संगठन की क्षमता ने समाजवादी पार्टी को दिया है। पिछले 5 वर्षो के मायाराज को देखे तो इस राज्य की हर जनविरोधी नीतियों पर तथा लगातार बसपा सरकार के विरूद्ध उपजे आक्रोश को अपने साथ बनाये रखने की कोशिश में संड़क से विधानसभा तक लगातार आन्दोलन और विरोध प्रदर्शन किया तो इस कोशिश में बदलाव के लिये बेचैन जनता लगातार जुड़ती गयी। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भी उत्तर प्रदेश में 22 वर्षो से सत्ता से दूर रहने का रोदन विलाप तो किया लेकिन पैकेज और घोषणाओं के बल पर जनता को अपने साथ जोड़ने में नाकाम रहे। बुन्देलखण्ड पैकिज लुटता रहा और कांग्रेस ब्यानबाजी के आगे कुछ न कर सकने की कारण जनता का विश्वास उठ गया। जनता का कांग्रेस के प्रति विधानसभा चुनाव में भरोसा न जताने के निहतार्थ सामने आये है। मुस्लिम मतो का धुर्वीकरण करने का दाॅव कांग्रेस के लिये उल्टा पड़ा है। वहीं उधार के 120 से अधिक खेवहनहार बने प्रत्याशी कांग्रेस के परम्परागत संगठन से तालमेल बनाने में नाकाम होने के कारण अपने ही घर में बेगाने हो गये। कांग्रेस के बड़बोले नेताओं के विवादग्रस्त ब्यान ने आग में घी का काम किया। और हालात इतने बदत्तर हो गये कि अपने ही गढ़ रायबेरली, सुल्तानपुर में प्रिंयका गांधी के जबरदस्त चुनाव प्रचार के बाद भी परिणाम अच्छे नही मिले। लगभग यही हाल भारतीय जनता पार्टी का रहा है। भाजपा के प्रदेशिक नेताआंे ने उमाभारती को कभी अपना नेता न मानकर लगातार उनके अभियान को नुकसान पहुॅचाने की कवायद की,पार्टी संगठन कभी एकमत नही रहा जिसके कारण भ्रम का वातावरण बना रहा। मन का नही मजबूर विकल्प के रूप में भाजपा नौवजवानों के सामने आने के पीछे बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी में लेना एक कारण बना। इस कवायद के बीच में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने अपने टूटते तिलस्म को बचाने के लिये 110 से अधिक निवर्तमान विधायकों और 20 अधिक मंत्रियों को सत्ता से हटाने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के पुनगर्ठन को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाकर जनाक्रोश को कम करने की कोशिश तो कि लेकिन चुनाव के अन्तिम समय मे ंचला विभाजन का दाॅव रंग नही दिखा पाया। यदि निवर्तमान विधायकांे की टिकट नही कटती तो बहुजन समाज पार्टी 2002 के आंकड़े के आस-पास खड़ी नजर आती। 2012 के चुनाव परिणामों में दो चीजे साफ तौर पर नजर आयी है। एक समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत 32 प्रतिशत कें आसपास पहुॅचा तो वही बसपा का 28 प्रतिशत के आसपास पहुंॅच गया है। वर्ष 2007 में जहाॅ बसपा 30 प्रतिशत वोट हासिल करके सत्ता की चाभी प्राप्त करने में कामयाब हुई थी 2 प्रतिशत वोट खिसकने के साथ सत्ता से दूर चली गयी। समाजवादी पार्टी का 2007 में वोट 25 प्रतिशत था जिसमें 97 सीटें मिली थी। 7 प्रतिशत वोट बढ़ने के साथ स्पष्ट बहुमत के आसपास है। समाजवादी पार्टी को सत्ता सिंहासन पर बैठने के लिये अनेक दुस्वारियों से रूबरू होने के लिये तैयार रहना होगा। लेकिन उत्तर प्रदेश में अपना सियासी जादू चलाने में समाजवादी पार्टी रीति और रणनीति के पीछे छुपे कारणों पर एक नजर डाली जाये तो सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने बड़ी ही चतुराई के साथ उत्तर प्रदेश में तमिलनाडु पैटर्न का आगाज 2007 में ही कर दिया था। लेकिन एक जुट विपक्ष के चलते यह दाॅव भले ही 2007 में न चल पाया हो लेकिन मुलायम सिंह विश्वसनीयता के कारण ही 2012 में उसी दाॅव के सहारे उत्तर प्रदेश के सिंहासन का रास्ता तय करने में समाजवादी पार्टी कामयाब हुई इस कामयाबी के पीछे कुशल यौद्धा की तरह मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाने का बयान देकर छिटके हुये मतदाता को लामबंद करने के साथ-साथ वादों की नई फेरिस्त पेश की इस फेरिस्त में सपा ने ढेर सारे वादों के साथ ही छात्रों की बहुप्रतीक्षित मांग शिक्षण संस्थाओं में छात्रसंघों के गठन पर भी मुहर लगा ने के साथ छात्रों में लैपटाप, टेबलेट, ड्रेस वितरण का वादा किया है। मदरसों को अनुदानित करने, पुलिस का आधुनिकीकरण, हर पुलिसकर्मी को सेवाकाल में सरकारी सेवाओं में भर्ती की उम्र 35 वर्ष करने, लड़कियों को कन्या धन देने, अच्छा अकं पाने वाली लड़कियों को साइकिल देने, जिला मुख्यालयों पर स्टेडियम बनेगे,े मजहबी आरक्षण के मामले में रंगनाथ मिश्र आयोग और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के आलोक में जो कार्य राज्य सरकार के अधीन है उसे उत्तर प्रदेश में लागू करने। आवश्यक हुआ तो आरक्षण भी देने। जेल में बंद बेकसूर मुस्लिम युवाओं की रिहाई, मुआवजा। ग्रामीण क्षेत्र के लिए बीस और शहर में 22 घंटे आपूर्ति। नये बिजलीघर बनाने। पुराने का सुधार होगा। लाइन लास रोका जाने। किसान की उपज की लागत तय करने कें लिए आयोग का गठन । कृषि भूमि को बंधक रखकर कर्ज लेने वाले किसानों को कर्ज न दे पाने की स्थिति में जमीन नीलाम करने की व्यवस्था समाप्त करने। कर्ज माफ हो। छोटी जोत के 65 वर्ष से ऊपर के किसान को पेंशन । विशेष परिस्थिति में जमीन अधिग्रहित करने। किसान की स्वीकृति अनिवार्य होगी। उद्योग का निर्माण होना है तो किसान परिवार के एक युवक को नौकरी और परिवार के बुजुर्ग दम्पत्ति को आजीवन पेंशन का इंतजाम । उद्योग बंधु का विस्तार। मोटर व सोलरचालित रिक्शा का वितरण। भूख मुक्ति और जीवनरक्षा की गारंटी। 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में करने। अधिवक्ता कल्याण के लिए दो सौ करोड़। युवा अधिवक्ता को आर्थिाक सहायता। वृद्ध अधिवक्ता को पेंशन। नदियों की सफाई की योजना । सपा कार्यकाल के अधूरे पुलों का निर्माण पूरा करने। जिला मुख्यालयों को राजधानी से फोरलेन से जोड़ा जाने की घोषणा की है। अपने बूते पर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने जा रही समाजवादी पार्टी की इस सफलता में अखिलेश के हाथ में कमान आने के बाद पार्टी का चेहरा और छवि बदलने की कोशिश एक बहुत बड़़ कारण रहा है। समाजवादी पार्टी को अब किसी मुगालते में नही रहना होगा। बुन्देलखण्ड, पूर्वाचल, अवध, रूहेलखण्ड तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर जगह के वोटरों ने समाजवादी का भरपूर साथ दिया है। अब समाजवादी पार्टी की जुम्मेदारी होगी कि वह बदले हुये रंग और ढंग के साथ जन के मन पर कैसे खरी उतरती है। जनता की अदालत में अपना फैसला सुना दिया है। इस फैसले ने समाजवादी पार्टी पर एक ओर विश्वास जताया है तो दूसरी ओर उस विश्वास को कायम रखने की जिम्मेदारी अब समाजवादी पार्टी की है। कैसे वह अपने द्वारा जनता को दिखाये गये सपनों को पूरा करती है। कवि गोरख पांडेय ने यह कविता लिखी थी जो आज भी उतनी ही जरूरी है -
जब तक वह जमीन पर था
कुर्सी बुरी थी ।
जा बैठा जब कुर्सी पर वह
जमीन बुरी हो गई
कुर्सी की महिमा
बखानने का
यह एक थोथा प्रयास है
चिपकने वालों से पूछिये
कुर्सी भूगोल है
कुर्सी इतिहास है
समाजवादी पार्टी की पिछले पांच विधानसभा चुनाव परिणाम
वर्ष सीटें लड़ी सीटें जीती वोट प्रतिशत
1993 256 109 17.94
1996 281 110 21.94
2002 390 143 25.37
2007 393 97 25.43
2012 401
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यह स्टोरी 2012 में कई पत्र और पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2012 के तहत तत्कालीन समय के राजनैतिक माहौल को समझाने के उद्देश्य से पुनः प्रकाशित कर रहे है।
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लेखक का पता
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
बिधान सभा मार्ग,लखनऊ
मो0ः 9415508695,8787093085