बिहार- अतीत का राजनैतिक परिदृष्यः आधे घंटे तक मारूति शमी नदबी और संजय गांधी को लिये दिल्ली की सड़को पर दौड़ती रही........!
1980 के आसन्न विधानसभा चुनाव। सभी राजनैतिक योद्धा अपने को स्थापित करने में शतरंजी चाले चल रहे थे। बिहार राजनीति के कांग्रेस धुरंधर डा0 जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में से एक थे। आखिर क्यों नहीं पूर्व मुख्यमंत्री रहने के साथ संजय गांधी के प्रिय पात्रों में से प्रमुख थे। परन्तु राज्य में उनके विरोधियों की भी संख्या कम नहीं थी। कई ऐसे भी नेता थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के प्रिय पात्र थे।
दरभंगा से कांग्रेसी विधायक एवं पूर्व मंत्री शमी नदवी भी अपनी दावेदारी पेश करने को इच्छुक थे। इन्दिरा गांधी के दरबार में उनकी काफी अहमियत थी। ऐसे में वो डा0 मिश्र की परेशानी का सबब बन सकते थे। मिश्र के विरोधियों ने शमी नदबी साहब को दिल्ली के लिए रवाना भी कर दिया। नदबी साहब पूर्व मंत्री होने के साथ एक लोकप्रिय नेता माने जाते थे, जिनका दामन पाक-साफ था। वो दिल्ली पहुंचकर इन्दिरा जी के दरबार में पहुंचे वहां उन्हंे संजय गांधी से मिलकर अपनी बात कहने को कहा गया। संजय भी नदबी साब को इन्दिरा गांधी से नजदीकी तालुकात से वाकिफ थे। अस्तु संजय ने भी नदबी साहब को मिलने का वादा किया और कहा यदि वो सुबह 6 बजे प्राधानमंत्री आवास पहुंच जाते तो एकान्त में बात-चीत हो सकती है। प्रसन्नचित्त नदबी साहब ने हामी भर दी और नियत समय पर वो प्रधानमंत्री आवास पहुंच भी गये। संजय उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे परन्तु कमरे में नहीं बल्कि अपने मारूती वैन में। उन दिनों संजय मारूती वैन में ही प्रायः चला करते थे। शमी नदबी और संजय- मारूती वैन दिल्ली की सड़कों पर दौड़ने लगी। कभी 100 कभी 120 किमी0 प्रति घंटा की रफ्तार से संजय ने नदबी को अपनी बात रखने को कहा। परन्तु नदबी के तो मानो होश ही उड़ गये थे। साठ वर्षीय नदबी संजय को इशारों में ही गाड़ी की रफ्तार कम करने को आग्रह करते रहे। परन्तु संजय गाड़ी की रफ्तार को अपने अधिकतम सीमा पर पहुंचा चुके थे। इस प्रकार आधे घंटे तक मारूति शमी नदबी और संजय को लिये दिल्ली की सड़को पर दौड़ती रही। दोनों के बीच एक सन्नाता छाया रहा। संजय के बार-बार आग्रह करने के बावजूद नदबी अपनी बात कर पाने मंे असमर्थ रहे। उन्हें गाड़ी के दुर्घटना का डर खाये जा रहा था। अंततः संजय ने कहा नदबी साहब क्यों मेरा वक्त जाया करते हो। आपको कुछ कहना नहीं है। यदि कहना होता तो कह चुके होते। अंततः संजय ने नदबी साहब को उनके गंतव्य पर छोड़ दिया और कहा कि फिर चुनाव के बाद आइएगा। नदबी छूटे तो कहा- जान बची तो लाखो पाये।
आखिर डा0 मिश्रा ने संजय को कहा था कि नदबी अपनी बात न रख पाये।
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आखिरकार नदवी साहेब बिहार भवन जा पहुँचे जहाँ कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक हुजूम उनका इन्तजार कर रहा था। कैसी रही संजय जी से आपकी बाते? आपने अपनी सारी बाते उनके सामने रखा तो? जगन्नाथ के बारे मंे ये सारी बाते उनके सामने कहा तो? इस प्रकार कार्यकर्ताओं ने नदवी के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
बेचारे नदवी निरूतर थे उन्हें कुछ कहने को था ही नहीं। वे कार्यकर्ताओं की जिज्ञासा का जवाब देने में असमर्थ थे। आखिरकार उन्होनें संजय गांधी के साथ 20-25 मिनट बिताये थे, कुछ तो बात हुई होगी? काग्रेंसी कार्यकर्ता जिसमें अधिकतर टिकट के प्रत्याशी थे, ने इस बात को समझने में असहझ थे (उन्होनें संजय और नदवी) के बीच कोई वार्तालाप नहीं हो सकी, बावजूद इसके की संजय उनसे बार-बार अपनी बात कहने को आग्रह करते रहे। आखिरकार संजय को भी इन्दिरा गांधी को रोज का ''फीड-बैक'' देना था खासकर नदवी ने क्या कहा जगन्नाथ के बारे में? इन्दिरा जी एक प्रमुख मुस्लिम नेता को जिनकी प्रतिबद्धता संदेहहीन थी, को नाराज नहीं करना चाहती थी।
इधर पटना मंे डाॅ0 जगन्नाथ के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी, कहीं नदवी की शिकायतें इन्दिरा गांधी के पास न पहुंच जाये।
कुछ ही घंटो में सन्नाटा खत्म हुआ और नदवी ने आपबीती अपने समर्थकों के सामने रखी। नदवी समर्थक तो मानों पहाड़ पर से जा गिरे। ''नदवी साहब यदि दुर्घटना का यदि इतना ही भय था तो गाड़ी से उतरने के बाद अपनी बात संक्षिप्त में रख सकते थे''। उनके समर्थकों में जिनमें कई प्रमुख हस्तियां थी ने कहा। जिसे अपने जान का इतना भय सताता हो वो भला राजनीति क्या करेगा, आदि आदि।
अन्त्तोगत्वा डाॅ0 जगन्नाथ को सारी बाते मालूम होने पर उन्होनें संजय को फोन कर आभार प्रकट किया। ''आपने मेरी लाज रख ली'' जगन्नाथ ने कहा इधर इन्दिरा जी ने जब संजय से पूछा कि नदवी ने क्या कहा जगन्नाथ के बारे में संजय ने कहा उन्होने कुछ नहीं कहा। इस प्रकार संजय ने जगन्नाथ के राह से एक तीव्र विरोधी को प्रभावहीन कर दिया, अपने कौशल से। चुनाव के बाद नदवी जीत को गये परन्तु समर्थकविहिन, उनकी सारी आभा समाप्त हो चुकी थी आखिकर राजनीति यही तो है लोगों ने कहा।
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