एक पिता के पूरे परिवार के खोने के दर्द को दर्शाया ‘‘जलता हुआ रथ’’

स्वर्ण संगीत एवं नाट्य समिति के तीन दिवसीय नाट्य महोत्सव की अन्तिम संध्या में नगर की चर्चित सामाजिक एंव संास्कृतिक संस्था श्र(ा मानव सेवा कल्याण समिति ने आज सांयकाल राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह कैसरबाग, लखनऊ में सांयकाल 06ः30 बजें सुप्रसि( नाटककार स्वदेश दीपक की नाट्य रचना ''जलता हुआ रथ'' का नाट्य मंचन प्रतिष्ठित नाट्य निर्देशिका राजवन्त कौर ;रजनी सिंहद्ध के कुशल निर्देशन में मंचित किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित मा0 श्री राकेश जी वरिष्ठ रंग निर्देशक इप्टा लखनऊ तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित मा0 श्रीमती वेदा जी सुप्रसि( नाट्य निर्देशक एवं लेखिका ने संयुक्त रूप से द्वीप प्रज्जवलित कर नाटक को समस्त कलाकारों को आर्शीवाद प्रदान किया। कथानक के अनुसार आज के भारत की एक जीती-जागती तस्वीर को रेखांकित करता है। यह संयोग नही है कि कृति का प्रकाशन हमारी आजादी के 50वीं वर्षगाठ के मौके पर हो रहा है। आजादी की 50वीं वर्षगाठ के जश्न में सत्ता-प्रतिष्ठान बढ़ चढ़कर उपलब्धियों की घोषणा करते हुए कहीं न कहीं संशय से भरे हुये भी मानो उन्हें यह विश्वास न हो। वो जो कुछ भी कर रहे है, उसे जन-मानस स्वीकार भी कर रहा है। यह विडम्बना हमारी आजादी की चरित्र की विडम्बना भी है। जिसे इस नाटक में बाखूबी बडे ही प्रभावी ढंग से उभारा गया है। आजादी और लोकतंत्र एक दूसरे के पूर्वक अथवा पर्यायवाची होते है। किन्तु हमारे देश और काल में दोनों ही व्यवहारतः दूर होते जा रही है और उसका असर हमारे जीवन, समाज, संस्कृति, साहित्य और कला माध्यमों पर भी पड़ा है। इन हालात में जलता हुआ रथ अपनी कथ्य के साथ-साथ प्रतिकात्मक रूप में इस विडम्बना की ओर संकेत करता है। क्योंकि सुविधाजीविता, भौतिकता, मशीनीकरण और छद्म प्रगतिशीलता के वर्तमान समय में मानवीय संवेदना प्रभावित हुयी है और उसका पूरा असर हमारे कला जगत पर भी पड़ा है, क्योंकि कला अब विलासिता की वस्तु बन चुकी है। यहां कला से आशय संगीत, नाटक आदि सभी रूपों से है। प्रस्तुत कथानक में रचनाकार जिनका जन्म रावल पिन्डी में 6 अगस्त, 1942 में हुआ। इस नाट्यकृति के माध्यम से स्वदेश वर्ष 1984 में हुये सिख दंगो के कुछ मरमान्तक अंश को प्रस्तुत किया। एक पिता अपने मरे हुये बेटे की यादों को पुर्नजीवित रखने के लिये किस-किस तरह से लोगों का भला करता है। एक छोटी सी बच्ची को भिखारियों का एक समूह भीख मगवाने के लिये किस हद तक जा सकता है। एक अंधी लड़की इस समाज में रह कर भीख मांगते समय किन-किन नजरों का सामना करना पड़ता है और वो अपनी जिन्दगी किस तरह से जीना चाहती है और किस वातावरण में जीती है, इस नाटक में बाखूबी मंच पर साकार किया गया। नाट्य रचनाकार स्वदेश दीपक ने इस नाटक में यह भी बताने की कोशिश की कि चुनाव के समय सरकारी गुर्गे गरीब और बेसहारा लोगों पर अपने बल का किस तरह प्रयोग करते है और समाज के लोगो को किन-किन मुश्किलातों का समाना करना पड़ता है। इस स्पष्ट चित्रण नाटृयकृति ''जलता हुआ रथ'' में चित्ररित किया गया है। कुल मिलाकर इस नाट्यकृति के माध्यम से सुधी दर्शको तक एक स्पष्ट सामाजिक वातावरण को प्रस्तुत करता है। मंच पर प्रधान भूमिका में लखनऊ के जाने-माने वरिष्ठ कलाकार एवं चरित्र सिने अभिनेता नरेन्द्र पंजवानी, टुण्डा/झण्डा की भूमिका में शेखर पाण्डेय बूड़ी औरत में राजवन्त कौर जो कि इस नाटक की नाट्य निर्देशिका भी है, छोटी लड़की दुर्गा की भूमिका में शीना सिंह अन्धी/मुन्ना की भूमिका में श्र(ा बोस तथा किशन सिंह की भूमिका में तारिक इकबाल डाॅ0 अमृता की भूमिका में दीपिका बोस तथा इकबाल एवं नेता की दोहरी की दोहरी भूमिका में अभिषेक सिंह के अतिरिक्त असलम आजमी की भूमिका में )षभ तिवारी एवं चम्मा-1 तथा सिपाही की दोहरी भूमिका में सुजीत कुमार रावत एवं चम्चा-2 में अभिषेक गुप्ता ने अपने-अपने सजीव और मार्मिक संवादो से दर्शको पर अच्छा खासा प्रभाव डाला। अन्य कलाकारों में केवल पेन्टर की भूमिका में गगनदीप सिंह एवं अभिनेता-1 तथा भिखारी की दोहरी भूमिका में सौरभ शुक्ला एवं विकलांग बच्चा की भूमिका में शाजे़ब खान ने अपने अभिनय से दर्शको अत्यधिक प्रभावित किया। सेट परिकल्पना अशोक लाल जी का था जो कि नाटक के अनुरूप मंच सज्जा में सचिन सिंह चैहान, कर्मेन्द्र सिंह गौर तथा अभिषेक गुप्ता ने नाटक के अनुरूप  किया। संगीत निर्देशन निखिल कुमार श्रीवास्तव का था जो कि अत्यन्त प्रभावी था। शिव कुमार श्रीवास्तव ''शिब्बू'' का रूप सज्जा नाटक के अनुरूप सजीव था। वस्त्र विन्याश में स्निग्धा मुखर्जी, दीपिका, श्र(ा, राजवन्त कौर तथा शीना सिंह ने नाटक के अनुरूप वस्त्र विन्याश का चयन कर नाटक को गतिशील बनाये रखने में कोई कसर नही छोड़ी। वही पर प्रकाश परिकल्पना की कमान संभाली थी। गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ''गिरीश अभीष्ट'' का प्रकाश प्रभाव अत्यधिक सुन्दर व प्रभावी था। कार्यशाला निर्देशन एवं मंच प्रस्तुतिकरण परिकल्पना नगर के वरिष्ठतम रंग निर्देशक प्रभात कुमार बोस का था। सम्पूर्ण परिकल्पना एवं निर्देशन राजवन्त कौर ;रजनी सिंहद्ध का निर्देशन बहुत ही सधा हुआ एवं सशक्त निर्देशन के डोर में बंाधा गया। कुल मिलाकर यह प्रस्तुति अत्यधिक सफल कही जा सकती है।
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