अर्द्ध-सत्य

 


मिटती है सब रार, मिटाने वाला चाहिए।
मिटता है अत्याचार, मिटाने वाला चाहिए।
जादू की जब छड़ी चलाये, जनता अपने दम पर।
दूध छठी का याद दिलाये, जनमत अपने दम पर।
पानी भरते बड़े-बड़े हैं, अनषन वाला चाहिए।
मिटती है सब रार, मिटाने वाला चाहिए।
लोकतंत्र की मर्यादा को, तार-तार फिर करते क्यों ?
शैतानों की बनी जेल में, जन-सेवक को भरते क्यों ?
क्यों ऐसी गुस्ताखी कर दी, बताने वाला चाहिए।
गधे पंजीरी ना खा पायें, कुछ ऐसा करना चाहिए।
मिटती है सब रार, मिटाने वाला चाहिए।
' पद्मश्री को ना जाने क्यों, कैसे भ्रष्ट बता डाला ?
'' पद्मविभूषित एक फकीर को, अपराधी सा जेल में डाला।
एक यती संयमी पुरूष ने, अब तो सस्ते में धो डाला।
अभी समय है अब भी चेतो, खुद अपनी ना कब्र खोदना।
बहुत दुखी जनता आक्रोषित, बंद करो ये नाटक करना।
सुबह को बंदी, शाम रिहाई, ऐसा क्या मिल गया बहाना ?
बदकिस्मत सा दर-दर भटके, रमदसुआ, पगला, दीवाना।
मान प्रतिष्ठा भारत जन की पुनः बचानी चाहिए।
बचेगा प्यारा देष हमारा, बचाने वाला चाहिए।
मिटता है अत्याचार, मिटाने वाला चाहिए।
मिटती है सब रार, मिटाने वाला चाहिए।


' पद्मश्री-1990
'' पद्मविभूषण-1992

जे-431, इन्द्रलोक कालोनी,
कृष्णानगर, लखनऊ-23
मो0नं0-9412530473


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