कैसे मिलता है मैन बुकर पुरस्कार
आयरलैंड की लेखिका एना बर्न्स को साल 2018 का मैन बुकर पुरस्कार मिला है।
एना बर्न्स, मैन बुकर प्राइज जीतने वाली पहली नॉर्दन आयरिश लेखिका हैं।
यह अवॉर्ड उन्हें उनके उपन्यास मिल्कमैन के लिए मिला है। एना बर्न्स की
यह तीसरी किताब थी। उनके बाकी उपन्यासों में ‘लिटिल कंस्ट्रक्शंस’ और
‘मोस्टली हीरोज’ हैं। बर्न्स की लिखी ‘मिल्कमैन’ एक महिला के शादीशुदा
शख्स के साथ अफेयर की कहानी है। यह महिला एक ऐसे शख्स का सामना कर रही
थी, जो यौन उत्पीड़न के लिए पारिवारिक रिश्तों, सामाजिक दबाव और राजनीतिक
निष्ठा का इस्तेमाल करता है।
बुकर पुरस्कार कॉमनवेल्थ या आयरलैंड के नागरिकों की ओर से लिखे गए मौलिक
अंग्रेजी उपन्यास के लिए हर साल दिया जाता है। 2017 का मैन बुकर पुरस्कार
जार्ज सॉन्डर्स को मिला था। साल 2008 का पुरस्कार भारतीय लेखक अरविंद
अडिगा को दिया गया था।
क्या है मैन बुकर
1969 से दिया जाने बाला यह पुरस्कार, साहित्य के क्षेत्र में नोबेल
पुरस्कारों के बाद सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। यह पुरस्कार बुकर
कंपनी एवं ब्रिटिश प्रकाशक संघ द्वारा संयुक्त रूप से हर साल दिया जाता
है। किसी एक कथाकृति के लिये राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) देशों के कथाकारों
को ही यह पुरस्कार मिलता है। यह केवल अंग्रेजी उपन्यास के लिये मिलने
वाला अवॉर्ड है।
इसके तहत 60 हजार पाउंड की राशि प्रदान की जाती है। पहला मैन बुकर
पुरस्कार अल्बानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था।
यह भी जानें
यह पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय मैन बुकर पुरस्कार से अलग है क्योंकि
अंतर्राष्ट्रीय मैन बुकर पुरस्कार हर 2 साल में विश्व के किसी भी
उपन्यासकार को दिया जाता है। जबकि मैन बुकर पुरस्कार हर साल केबल
राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) देशों के कथाकारों को ही दिया जाता है। अब तक 5
भारतीयों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है।
बी एस नायपाल (1971-इन ए फ्री स्टेट)
प्रसिद्ध उपन्यासकार नायपाल मुख्य रूप से भारत के नहीं हैं परंतु मूल रूप
से वे भारतीय ही हैं और यही उन्हें इस सूची में शामिल होने योग्य बनाता
है। ऐसा कहा जाता है कि वे पहले भारतीय हैं जो नामों की संक्षिप्त सूची
में शामिल हुए और 1971 में उन्होंने ‘इन अ फ्री स्टेट’ के लिए बुकर
पुरस्कार प्राप्त किया।
सलमान रश्दी (1981-मिडनाइट चिल्ड्रन)
विवादास्पद यथार्थवादी सलमान रश्दी चार बार बुकर के लिए चुने गए।
उन्होंने ‘बुकर ऑफ बुकर्स’ और ‘द बेस्ट ऑफ द बुकर’ भी जीता। वह उपन्यास
1981 में जिसके लिए उन्हें उनका पहला बुकर पुरस्कार मिला वह ‘मिड नाइट
चिल्ड्रन’ था।
अरुंधति राय (1997- द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स)
अरुंधति ने पहले उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए 1997 में बुकर्स
पुरस्कार जीता। यह एक गैर प्रवासी भारतीय लेखक की सबसे अधिक बिकने वाली
किताब थी। तब से उन्होंने कई किताबें लिखी हैं जिसमें उनके राजनीतिक रुख़
और आलोचना पर ध्यान केनि्द्रत किया गया है। उन्हें बुकर के अलावा साहित्य
अकादमी समेत अन्य कई पुरस्कार भी मिले हैं।
किरण देसाई (2006- द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस)
अनीता देसाई की बेटी किरण देसाई ने अपने दूसरे उपन्यास ‘द इन्हेरिटेंस ऑफ
लॉस’ के लिए 2006 में बुकर्स पुरस्कार जीता। वो यह पुरस्कार जीतनेवाली
सबसे युवा महिला बनी। किरण देसाई का उपन्यास कैम्बि्रज में पढ़े हुए एक
अवकाश प्राप्त न्यायाधीश के जीवन पर आधारित है और यह न्यूयॉर्क और
पूर्वोत्तर भारत की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। उनकी मां तीन बार बुकर
पुरस्कार के लिए नामांकित हुई लेकिन यह पुरस्कार नहीं जीत पायीं।
उन्होंने इसे अपनी मां को ही समर्पित किया था।
अरबिंद अडिगा (2008-द व्हाइट टाइगर)
चेन्नई के रहने वाले अरविंद अडिगा को उनके पहले उपन्यास ‘द व्हाइट टाइगर’
के लिए यह अवॉर्ड मिला था। इस उपन्यास में भूमंडलीकृत विश्व में भारत के
वर्ग संघर्ष को व्यक्त किया गया था। इस उपन्यास ने अडिगा को बुकर
पुरस्कार प्राप्त करने वाला दूसरा सबसे छोटा लेखक बनाया।
वे चौथे ऐसे लेखक थे जिन्हें अपने पहले उपन्यास के लिए ही बुकर पुरस्कार
मिला। कई अन्य भारतीय लेखक भी इस अवॉर्ड के लिये शॉर्टलिस्ट हुए हैं।