घर के किसी बड़े -बूढ़े सा प्रहरी न्यायालय हैं

न्यायालय
अन्तर्द्वन्द-महाभारत में कभी  हार है जय है 

धर्म ,ज्ञान, दर्शन -तीनों धृतराष्ट्र ,न्याय संजय है ।

नीति- वधू पर पुरुष प्रशासन, राजनीति हरजाई, 

घर के किसी बड़े -बूढ़े सा प्रहरी न्यायालय हैं।।

 विधि- विधान के  व्यवहारों   के कूलों  में बहता है, 

 एक विजेता,  एक पराजित, भली बुरी सहता है।

 दु:शासन की बांह पकड़ कर वर्जित करने वाला,

 नीति- द्रोपती के अंचल की गरिमा को कहता है ।।

बचपन से ही अग्नि -परीक्षाओं का अभ्यासी है,

 प्रजातंत्र का है प्रयाग है, वृंदावन काशी है। 

सबका हो कर भी सबसे निर्लिप्त,निस्पृही निर्भय,

 न्यायालय जब से जन्मा है, तब से सन्यासी है।।

 सीता को घर से निकालने वाला राम यही है,

 जिस मुख से गीता निकली थी वह घनश्याम यही है।

 सम्राटों को सिंहासन से वंचित करने वाला,

 पंचों के द्वारा परमेश्वर का पैगाम  यही है।।

 कभी अर्थ ने, कभी काम ने, इसको आंख दिखाई,

 कभी-कभी सत्ता खुद पैदल पैदल चलकर इस तक आई ।

कभी मेनका ,कभी होलीका- दोनों रूप दिखाये ,

पर यह विचलित हुआ  न इसने ऊपर नजर उठाई ।।

परिवादों  ने भृकुटी तान कर कभी इसे धमकाया,

 घर के भेदी  स्वयं अभाव ने अक्सर समझाया ।

सब्ज बाग दिखलाये  स्कोर इसको पतनोन्मुख तर्को ने ,

लेकिन बुद्ध -प्रबुद्ध  न इसका स्वाभिमान भरमाया।।

 राजतंत्र से प्रजातंत्र तक पंथ बहुत पथरीला,

 लेकिन इसने हार ना मानी, नयन न कोई गीला ।

एकतंत्र ने कभी-कभी हथकड़ियां तक पहना दीं, 

हाथ बंधे, पर झुका ना इसका शीश  कभी गर्वीला ।।

वैसे इसका संसद से है सूत्र भाष्य  का नाता

 किंतु कभी कृतिकार स्वंय  अपनी कृति से टकराता।

 ऐसे भी अवसर आए हैं जब सिद्ध - हुआ है -

 संविधान के निर्माता से कड़ी  बड़ा व्याख्याता।।

 मनु का मानस -पुत्र अकेला, याज्ञवल्क्य ने पाला, 

कभी अशोकों, कभी  अकबरों ने साभार संभाला ।

इन्द्रप्रस्थ  से रोम,  रोम से लंदन तक जा पहुंचा, 

पश्चिम ने अपना कह कर फिर नये रंग में ढाला।।

 और हमारा हमें दिया यों,  जैसे नहीं हमारा, 

हमने भी उनका ही कह कर स्वागत से स्वीकारा।

 अब तो बडा  दीर्घवंशी यह दुनियाभर में पैठा,

 तरह- तरह से अपनेपन में सब ने इसे संवारा।

 किंतु ,मूलतः सब की आत्मा एक तत्व निर्मित है,

 भाषा अलग, भावना लेकिन सबकी  ही जन-हित है।

 पद्धति केवल पंच न्याय के मंदिर की मंजिल तक

 न्यायधीश कहीं भी हो न्यायमूर्ति बंदित है ।।

सरस्वती का हंस ज्ञान का साधन-संवाहन  है, 

युधिष्ठिरों की परंपरा का यह स्वरूप पावन है 

जहांगीर के मनोद्वन्द्वं  का समाधान यह अभिनव ,

यह अधर्म पर धर्म की विजय का मूर्तिमान ज्ञापन है।।

 अनाचार के अंधकार में  ज्योतिष पिंड सतन है ,

तूफानों से भरे सिंधु में यह माॅझी  का मन है।

 विधि-शासित इस धरती पर हम जन्में, भाग्य  हमारे, 

न्यायालय के इस आंगन को सौ-सौ बार नमन है।।

- तन्मय बुखारिया

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