एक 'ग़ज़ल' बेटी को सोच कर कही :

एक 'ग़ज़ल' बेटी को सोच कर कही : 

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 "अपनी बेटी के लिये मैं ये ग़ज़ल कहता हूँ !

और ग़ज़ल कहते हुए सोच के चुप रहता हूँ !!

 

अश्क पी-पी के भी बेटी मेरी मुस्काती है ;

उसके जज़्बातों की गहरायी समझ सकता हूँ !!

 

अपनी माँ के लिए वो कुछ भी नहीं कहती है ;

उसके जुमलों में रवानी की तरह बहता हूँ !! 

 

दर्द कैसा भी हो चुपचाप वो सह जाती है ;

कैसे कह दूँ कि मैं उस ज़ब्त को भी सहता हूँ !!

 

अपनी बेटी के लिए कितनी परेशान है माँ ? 

'शान्त' बेटी के मैं इस दर्द को भी गहता हूँ !! "

 

- देवकी नन्दन 'शान्त' , लखनऊ !

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