बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के हिंदी विभाग द्वारा विवि के 23वें स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
लखनऊ,बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के हिंदी विभाग द्वारा विवि के 23वें स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी का विषय "छायावाद के सौ वर्ष: साहित्य एवं मातृभूमि" रखा गया । कार्यक्रम विवि के पर्यावरण विज्ञान विद्यापीठ के सभागार में आयोजित हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में प्रो0 सदानंद प्रसाद गुप्त (कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान), विशिष्ट अतिथि डॉ राजनारायण शुक्ल ( कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान), मुख्य वक्ता प्रो0 योगेन्द्र प्रताप सिंह (आचार्य, हिंदी विभाग, लखनऊ विवि, लखनऊ), संकाय अध्यक्ष प्रो0 अरविंद कुमार झा, विभागाध्यक्ष डॉ0 सर्वेश सिंह मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 बलजीत कुमार श्रीवास्तव और आयोजन सचिव डॉ0 शिवशंकर यादव रहें। कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रीति राय द्वारा किया गया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ0 सर्वेश सिंह ने बताया कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहलू पर विचार करने के बाद और राष्ट्र के प्रति अपनी चिंता और इसके मूल स्वरूप के संरक्षण की सोच ने इस संगोष्ठी के विषय को स्वरूप दिया। आज इस संगोष्ठी में छायावाद युग के दौरान कवियों द्वारा वर्णित हमारे गौरवशाली इतिहास को हम इस चर्चा में समझने का प्रयास करेंगे।
योगेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि भारतेंदु युग और द्विवेदी युग के संघर्षमय सफर और उसमें कई सुधारों के बाद छायावाद युग आता है। छायावादी युग मे देश के अतीत और इसके गौरवशाली इतिहास का विस्तार से वर्णन है। उस दौर में प्रकृति, प्रेम और कल्पनाओं की जीवंत व्याख्या कवियों के लेख में देखने को मिलता है जिसकी वजह से कई आलोचकों ने छायावाद को काल्पनिक और वायुवीय कहा है। मगर हम उस दौर के लेखकों को पढ़े तो हमे उनकी रचनाओं ने यथार्थ के बिंब देखने को मिलते हैं। उनकी रचनाओं के पात्रों को वास्तविक जगत से जोड़कर समझने की आवश्यकता है, तभी हम उसके वास्तविक स्वरूप को समझ पाएंगे।
डॉ राजनारायण शुक्ल ने बताया कि भारतेंदु युग और द्विवेदी युग, जो छायावाद से पहले के युग हैं उसमें हमे राष्ट्र प्रेम और स्वतंत्रता से जुड़ी रचनाएँ मिलती हैं। उस दौर में क्रांतिकारी जोश से ओतप्रोत कविताएं लिखी जाती थी क्योंकि उस दौर में अंग्रेज़ी हुकूमत के हम शिकार थें। जब हम छायावाद के दौर की रचनाओं की बात करते हैं तो कई आलोचकों ने उस दौर को पाश्चात्य रोमांटिसिज्म (स्वछंदतावाद) के तौर पर भी परिभाषित किया है। मगर छायावाद दौर के कवि निराला, पंत, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा की रचनाओं को पढ़े तो उसमें प्रेम, विरह और निराशा के भाव भी देखने को मिलते हैं। छायावादी कवि कई स्तर पर एक साथ काम कर रहे थें जिसमें प्रेम, दर्शन, प्रकृति और समाज सभी का भाव देखने को मिलता है।
प्रो0 सदानंद गुप्त ने कहा कि छायावाद बहुत ही विस्तृत काव्यवाद है, जिसमें गहरी आशा है, सुख और दुख दोनों के भाव है, सामूहिक चेतना भी है। उन्होंने छायावाद को जागरण का काव्य बताया और कहा कि उस दौर की कविताओं ने हमारी सांस्कृतिक परंपरा को वर्णित किया है। उन्होंने भारतेंदु युग और द्विवेदी युग की भी चर्चा की जिसमे कवि अपनी कविताओं के माध्यम से देशवासियों को जगाने का कार्य करते थे। भारतेंदु युग के इस भाव का विस्तार ही द्विवेदी युग मे हुआ है। उन्होंने द्विवेदी युग के कवि अज्ञेय की पंक्तियों का ज़िक्र किया जिसमें कहा गया है कि देश बोध के बिना विश्व बोध नकली है। उन्होंने स्वतंत्र स्वरूप की चर्चा की जिसमें सुख सुविधाओं का भोग और संपत्ति संग्रह नहीं बल्कि देश, संस्कृति और प्रकृति की रक्षा की बात कही गई है। आगे उन्होने कहा कि हमे अपना सारा ध्यान देशहित में लगाना चाहिए, हम जबतक हम देश की सेवा में लगे रहते हैं तबतक हमें किसी भगवान को पूजने की ज़रूरत नहीं है। राष्ट्र की सेवा ही सर्वोपरि धर्म है।
प्रो0 अरविंद कुमार झा ने बताया कि निराला, पंथ, महादेवी वर्मा की कविताओं को किसी भी प्रकार से छायावाद की कविता या निराशा की कविता नहीं कहा जा सकता । उन्होंने कहा कि मनुष्य जो देखना चाहता है वह वही देखता है। छायावाद को सभी आलोचकों ने अपने अपने अनुसार व्यक्त किया मगर उस दौर की सभी कविताओ को एक ही पैमाने में रखकर परिभाषित करना उचित नहीं होगा। कामायनी में भारत दर्शन दिखता है। छायावाद की कविताओं में मानवीय भावनाओं का विलक्षण चित्रण है और मानवीय भावनाओं के बिना जीवन निरर्थक है। छायावाद मनुष्य और प्रकृति के भेद को खत्म करता है। इसमें वस्तु के निरूपण की जगह भावना निरूपित होती है।
कार्यक्रम के अंत मे डॉ0 बलजीत कुमार श्रीवास्तव ने सभी अतिथियों, विद्यार्थियों, कर्मचारियों और शिक्षकों का कार्यक्रम में उपस्थित रहने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर विभाग के समस्त शिक्षक, विद्यार्थी, कर्मचारी एवं शोध छात्र कार्यक्रम में उपस्थित रहें।