संगम की धारा में अखिलेश यादव का संकल्प







 

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      संगम नगरी प्रयागराज में आस्था के सबसे बड़े आयोजन कुम्भ की सदियों पुरानी परम्परा है जो आज भी यथावत जारी है। लोगों को इससे विशेष आध्यामिक ऊर्जा प्राप्त होती है। सबसे ज्यादा चर्चित चीनी यात्री ह्वेनसांग के संस्मरण हैं। ईसा के बाद की छठी शताब्दी में आए चीनी यात्री ने सम्राट हर्षवर्धन (590-647), कन्नौज जिनकी राजधानी थी, उनके दान के बारे में लिखा है। वह 75 दिनों तक तब तक दान करते रहते थे जब तक कि उनके पास सब कुछ गरीबों, साधुओं और ब्राह्मणों में बंट न जाए।

      कुम्भ के विभिन्न संस्करणों ने विविध परम्पराओं के सहअस्तित्व को प्रोत्साहन दिया है। स्कंदपुराण और पद्मपुराण में भी इसका उल्लेख है। सन् 1582 में बादशाह अकबर ने प्रयाग का नाम एलाहाबाद कर दिया और यहां एक किला भी बनवाया जो आज भी मौजूद है।

      वैसे तो कुम्भ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। कुछ इसकी शुरूआत 525 बीसी में मानते हैं। कहते हैं कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरूआत की थी किन्तु कुछ कथाओं के अनुसार कुम्भ की शुरूआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। मंथन में निकला अमृत हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरा था इसलिए इन स्थानों पर हर छह बरस के बाद अर्द्धकुम्भ मेला लगता आया है। 12 साल बाद कुम्भ मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है। प्रयागराज में 144 वर्ष बाद महाकुम्भ का आयोजन होता है।

      सदियां बीत गई। प्रयागराज में जमाने ने कई करवटें बदलीं। कन्नौज का एक और प्रतिनिधि श्री अखिलेश यादव अर्द्धकुम्भ की आस्था में डुबकी लगाने गत दिवस पहुंचे। पिछले कुम्भ की सुन्दर व्यवस्था भी तब श्री अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल में समाजवादी सरकार ने की थी। वह कुम्भ भी इतना भव्य था कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विद्वान अध्ययन करने आ गए थे। सन् 2013 में हार्वर्ड के शोधार्थियों ने अपने अध्ययन में सामाजिक मुद्दों, विविधताओं तथा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं जैसे विषय चुने। अपनी शोध पुस्तक ‘मैपिंग द कुम्भ मेला‘ में उन्होंने कुम्भ मेला को पृथ्वी का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन, विस्मयकारी तथा अद्भुत चमत्कारिक घटना करार दिया है। श्री अखिलेश यादव ने कहा कि ‘इसे सौभाग्य बोलें या भगवान की कृपा मानें। जो मेरा कार्य क्षेत्र है वह गंगा मइया के किनारे है और जहां जन्म लिया वह यमुना के किनारे है।‘

       समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव गत 27 जनवरी 2019 को जब आस्था-विश्वास और अध्यात्म के क्षेत्र में पहुंचे तो वे उसी भावभूमि में दिखाई दिए जिसमें हर रोज मानव समूह का रेला आता-जाता है और संगम में डुबकी लगाकर अपने तन-मन को स्वच्छ कर आत्मसंतुष्टि से होकर दान-पुण्य कर घर लौटता है। कुछ ऐसी ही प्रेरणा गांधी जी को तब आजादी के आंदोलन के लिए मिली थी जब वे प्रयागराज में ‘कुम्भ‘ के दौरान पहुंचे थे। वे आश्चर्य चकित थे कि इतना बड़ा समूह स्वतः स्फूर्त ढंग से कैसे एकत्र हो जाता है।

      वस्तुतः गांधी जी 4 जुलाई 1896 को कोलकाता से मुम्बई मेल से प्रयाग के रास्ते राजकोट के लिए गाड़ी पर बैठे थे। अगले दिन गाड़ी प्रयाग में रूकी तो वह दवा लेने स्टेशन से बाहर गए। लौटे तो देखा टेªन छूट चुकी थी। तब वे प्रयाग में पवित्र त्रिवेणी संगम के दर्शन और स्नान करने पहुंचे। इस दौरान उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के अमानवीय व्यवहार के विरूद्ध लड़ाई में जीत के लिए मां गंगा से आशीर्वाद मांगा। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद अंग्रेजो ने संगम स्नान और मेले पर प्रतिबंध लगा दिए थे तब महामना मदन मोहन मालवीय ने विरोध में अनशन किया और पं0 जवाहर लाल नेहरू तो बैरीकेटिंग तोड़कर संगम में कूद पड़े थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा इस मेला को नियंत्रित करने के प्रयास पर इतिहासकार कामा मैक्लीन का कहना है कि ‘‘औपनिवेशिक सरकार के हस्तक्षेप ने इस आयोजन को और ज्यादा लोकप्रिय बना दिया।

      भिन्न-भिन्न मान्यताओं के धर्मगुरू अपने विविध दृष्टिकोणों, उद्देश्यों एवं पूर्वाग्रहों के साथ कुम्भ के इस बहुसांस्कृतिक, बहुआस्था वाले आयोजन का हिस्सा बनते है। वे एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार भी करते हैं और अपने प्रवचनों के माध्यम से एकत्व के संदेश का प्रसार भी करते हैं। अहं अर्थात्-‘‘मैं‘‘ के भाव के कारण ही समस्त आक्रामकता असहिष्णुता, भय, ईर्ष्या, तनाव और विषाद आदि कई तरह की नकारात्मकता का जन्म होता है। कुम्भ मेला अहंकार से मुक्ति का मार्ग भी बतलाता है।

      श्री अखिलेश यादव के साथ लखनऊ से पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र चौधरी और श्री इन्द्रजीत सरोज भी संगम नगरी पहुंचे थे। संगमनगरी में पहुंचते ही श्री यादव का स्वागत और उनके सम्मान में नारों की गूंज होने लगी। श्री अखिलेश यादव श्री पंचायती निरंजन अखाड़ा एवं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महन्त श्री नरेन्द्र गिरि जी महाराज तथा अन्य साधु संतो के साथ श्री अखिलेश यादव सहजता से मिले। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उन्होंने संतो का आशीर्वाद लिया। उन्होंने लेटे हुए श्री बड़े हनुमान जी के दर्शन किए। संगम नगरी में आकर बिना स्नान का पुण्यलाभ किए श्री यादव कैसे जा सकते थे? अतः त्रिवेणी संगम के वीआईपी घाट पर उन्होंने दो बार गंगा यमुना में स्नान किया। सुरक्षा की दृष्टि से संगम पर श्री निरंजन निषाद एवं रंजीत निषाद गोताखोर मौजूद थे।

      श्री अखिलेश यादव ने समाज में शांति, सद्भाव के प्रसार की कामना की और गंगा जी से प्रार्थना की कि वे विकास का मार्ग प्रशस्त करें। जनजीवन को आक्रांत करने वाली व्यवस्थाएं बंद हो। उन्होंने संकल्प लिया कि वे प्रदेश को समाजवाद एवं धर्मनिरपेक्षता के पथ पर ले जाएंगे और सामाजिक सद्भाव तथा सौहार्द को बढ़ाने में कुछ उठा नहीं रखेंगे। पूरी निष्ठा से लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा का संकल्प लेते है। 

       श्री अखिलेश यादव ने यहां मीडिया के साथ वार्ता में अतीत और वर्तमान का अनोखा तालमेल बनाया। सम्राट हर्षवर्धन की दान महिमा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि इस मौके पर केन्द्र सरकार को अकबर के किले को उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग को दान कर देना चाहिए ताकि वहां स्थित अक्षयवट के सभी लोग दर्शन कर सके। जब दोनों सरकारें एक ही पार्टी भाजपा की है तो इसमें अड़चन कहां होगी? उन्होंने यह सलाह भी दी कि भाजपा को अर्द्धकुम्भ के मौके पर कम से कम अपने अहंकार का त्याग तो अवश्य कर देना चाहिए। 

       श्री यादव ने नदियों की स्वच्छता पर बल देते हुए कहा कि उनकी सरकार में वरूणा नदी, गोमती आदि नदियों की सफाई हुई, रिवरफ्रंट का सौंदर्यीकरण किया गया। भाजपा राज में शोर बहुत हुआ पर गंगा और यमुना निर्मल नहीं हुई। भारत की सभ्यता की नींव नदियों के तटीय क्षेत्रों में पड़ी है। तीर्थ स्थलों का विकास भी वहां हुआ है। समाजवादी सरकार में काशी, अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में घाटों का सौंदर्यीकरण हुआ। नई योजनाएं लागू हुई, जबकि भाजपा राज में घोषणाएं तो बहुत हुई पर जमींन पर एक भी साकार नहीं हो सकी। इसकी स्वीकारोक्ति स्वयं साधु-संतो ने प्रयागराज के अर्द्धकुम्भ के अवसर पर की है।

       साधु-संतो एवं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महन्त श्री नरेन्द्र गिरी जी महाराज ने माना है कि समाजवादी सरकार के कार्यकाल में कुम्भ आयोजन में सुरक्षा, सुविधा और सम्मानजनक तरीके से संगम स्नान की व्यवस्था सुचारू रूप से की गई थी।

       हार्वर्ड विश्वविद्यालय टीम के शोधार्थी तरूण खन्ना एवं जान मैकाम्बर ने 2013 को, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में कुम्भ मेला के आयोजन को दोनों ही स्तरों पर सफल माना है। उनके अनुसार इसकी सबसे बड़ी सफलता इस बात में थी कि लाखों तीर्थयात्री यहां आए और एक अच्छा अनुभव लेकर वापस गए। इलाहाबाद के इस कामयाब आयोजन ने दिखा दिया कि बेहतर रणनीति के साथ यदि सरकारें काम करें तो बेहतर विकल्प हाथ लग सकते हैं। हम यह मानते है कि ये सफलता इसलिए प्राप्त हुई क्योंकि यहां महत्वाकांक्षा को योग्यता का साथ मिला। स्वास्थ्य और मानव अधिकार के प्रोफेसर जेनिफर लीनिंग का कहना है ‘‘इतनी विशाल भीड़ को देखने का मुझे एक बिल्कुल नया नज़रिया मिला। जो हो रहा है, उसे होने दो, बहने दो नियंत्रित मत करो।‘‘ 

          (लेखकः  पूर्व कैबिनेट मंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं)









 

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