पहाड़ी नश्ल की गौमाता
बद्री नस्ल को लोग दुत्कार रहे थे ,कारण उसका दूध सिर्फ 1 लीटर या 2 लीटर होता था ।वो बद्री नश्ल की गौमाता बिल्कुल खत्म होने के कगार पर थी ,पर उस समय एक गोभगतउस गौमाता का गौपुत्र बनकर आये - स्वामी विशुद्धानंद जी ओर दिन रातलग गए कि कैसे बद्री नश्ल की इस छोटी नश्ल को बचाया जाए ,क्यों कि दूध कम था ,पर पहाड़ों पर फिरकर-घूमकर झरनों का औषधीय पानी पीने वालीइस गौमाता के गोमूत्र-और गोबरमें वो ताकत थी जो शायद ही दूसरी अधिक दूध देने वाली गौमाता में थी ।ओर सन्त विशुद्धानंद जी ने इस बद्री गौमाता के पंचगव्य को इतनाविस्तार दिया कि ,लोंगो के भयंकर रोग जैसे कैंसर ,टीवी ,दमा, अस्थमा आदि रोग चुटकियों में समाप्त होने लगे ,सन्त विशुद्धानंद जी वो पहले सन्त हैं ,जिन्होंने पहाड़ी लोंगोके घर घर जाकर उनसे विनती की ,कि आप इस गौमाता को आप घर पर रखो ,ये दूध भले ही कम दे ,पर हम आपसे इसका गोमूत्र 10₹ लीटर लेंगेओर वो एक ऐसे घर से ही नही,अपितु सैंकड़ो परिवारों से जो गोपालन कर रहे थे,उनसे गोमूत्र लेना शुरू किया ,किसानों को गोआधारित खेती हेत जागरूक किया ,ओर आज उन्ही महान गोभगत संत विशुद्धानंद जी की महेनत के कारण उत्तराखण्ड ,हिमाचल की बद्री गाय की नस्ल विलुप होने से बची।
स्वामी विशुद्धानन्द जी महाराज गौसेवा के लिए पिछले कई वर्षों से उत्तराखंड के क्षेत्रो में कठिन संघर्ष कर रहे थे। आप प्रशासनिक सेवा से
सेवानिवृति लेकर गौमाता को भारतमाता के पद पर सुशोभित करने में प्रयासरत रहे। गौसेवा के कई प्रेरणादायी प्रकल्प आपकी प्रेरणा से देश के कई भागों में प्रारम्भ हुये। जिनमें गांव गांव में गौ प्रतिष्ठा प्रकल्प के अद्भुत परिणाम उत्तराखंड के क्षेत्रो में देखने को मिल सकते है। उनकी कमी हमें जीवन भर खलती रहेगी। लेकिन स्वामी जी ने जो गौसेवा प्रकल्प शुरू किये है उन्हें देश के प्रत्येक भाग तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हम
गौभक्तों के कंधों पर है। यदि हम इस दिशा में क्षणिक मात्र भी कुछ कार्य कर पाए तो यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी स्वामी जी के श्री चरणों में।