हमेशा याद आयेगें स्वं श्री अवधकिशोर पटैरिया
आदि से अनंत की यात्रा के राही मालथौन निवासी पूर्व गृहमंत्री स्वं श्री बृजकिशोर पटैरिया जी के अनुज एवं सामाजिक सरोकारो के प्रति सजग शिक्षा शास्त्री,कवि साहित्यकार बी.के.पी. ग्रुप के संस्थापक स्वं श्री अवधकिशोर पटैरिया जी जीवन के प्रत्येक क्षण को उम्र के उस पडाव पर जहां लोग विश्रााम ले कर बैठ जाते हैै एक प्रेरक के रूप में माउस को कलम बनाकर सोशल मीडिया पर मुक्तक-मंच के माध्यम से कविता की अविरल गंगा बहाते रहे। श्री पटैरिया की प्ररेणा से मालथौन में उनके सुयोग्य पुत्रों ने शैक्षणिक संस्थाएँ पं.ब्रजकिशोर पटैरिया आई.टी.आई.कालेज मालथोन,अवधप्रभा विद्यापीठ स्कूल मालथोन, पं.ब्रजकिशोर पटैरिया महाविद्यालय की स्थापना की है। स्वं श्री अवधकिशोर पटैरिया जी के साथ बहुत सी स्मृतियां जुड़ी है। दिल की गहनतम गहराइयों और अनुभव के अनंत सागर में डुबकी लगाकर जो कुछ आपने सजृन किया वह सदैव प्रकाश पुन्ज बन राह दिखाता रहेगा। विनम्र भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
1
पद-कुर्सी पर बैठ-बातकर ,जो बने मास्टर बेंत दिखाते !
निरीह जनता को आँख दिखाकर ,तब सच -गलत के पाठ पढ़ाते !
मानवता ही डाल काँख में ,उपदेशक ही बन बढ़-चड़कर ,
करते शासन हम-तुम पर कुछ ,दे सबक निज राह चलाते !
2
बच्चों सा हो मित्र भाव ,परस्पर हो प्रेम तभी !
भटकें नहीं राग द्वेष पलें भी ना बैर कभी !
पुजे मानव जगह-जगह ,तब रहे बिषमता दूर ,
स्थापित हो श्रेष्ठता ,प्रथ्वी हो स्वर्ग जभी !
3
माँ -बाप कहें, मान लो, पंडित-गुरु,चाहें,जान लो !
तुम्हारे हाथ ,कुछ नहिं ,बड़े-बूढे कहें गाँठ बांध लो !!
अौरों के पैर ही,चला हूँ ,जहाँ कहें वहीं पर,पढ़ा हूँ !
आँख मॊञ्च ,बढ़ा हूँ ,पुराण-पोथी ,रोज सूना हूँ !!
4
पद-कुर्सी कि मस्ती में सब राग अलापें मर्जी में !
उपदेश बाँटते पुजते फिरे बिन खर्चे खुद-गरजी में !
घर बैठे हम देखें सुनें चल रहा प्रजा-तंत्र आज ,
देश की रक्षा सैनिकों ऊपर दिन-रात इस शर्दी में !
5
देव नहीं पाषाणों में ,मंदिर या गुरु द्वारों में!
देव बसे हैं सबके, सुलझे दिल द्वारों में !
अलग नहीं कहीं पर, मुस्लिम ईसाई घर,
व्यर्थ भटकते यहाँ वहाँ,बैठा वह अपनें अंदर !
6
हाथ-जोड़ उबरन चहैं ,घर बैठे कुछ लोग !
हाथ-पैर भी हिले नहीं ,मिलें सुजस के योग !
मिलें सुजस के योग ,धन्ना-सेठ कहलाएँ !
घर बैठ ही माला फेर ,ईश को घरे बुलाएँ !
7
राजनीति धीरज खोती है, बेशर्मों !
मानवता तुम पर रोती है, बेशर्मों !
गाली सजने लगी सियासी होंठों पर,
बेशर्मी की हद होती है, बेशर्मों !
8
झूठ-फरेब से,बचलो ,सुनते जाओ सबकी !
सत्य को परखो हरदम,राखो अपने मनकी !!
स्वार्थी जो, आमराह ,दिन में,चाँद दिखाते !
सबको समझें मूरख ,पाटी सभी, पढ़ाते !!
9
ताल-मेल कर निभा चलों जो उमर रेख है थोड़ी !
किस क्षण गुजरे यह जीवन जब अंत साँस है छोडी !
माँ-बाप भाई-बहिन सब संग-साथ भी ज्यों भूलें ,
बना रहे पर नाम अमर नियत राह ना हो --> तोडी !
10
चल-अचल है रास्ता तो हमारे उस भगवान का !
ढूढ़ता जब मन हमारा वह राह जो आराम का !
भटकते उसको खोजने बेकार में ही आजतक ,
कर्म कर ही जिसे हम तब पायगे रख मन भाव का !
11
ढो रहे जीवन हम-सब ,चलकर ही इतवार में !
धुन्ध पसरी सभी ओर ,आँख-मूच हरवार में !
विवेक को रख काँख में ,पशु तुल्य ही मुड़ी हिला ,
मानव-जन्म ब्यर्थ गमा ,विश्वास न करतार में !
12
असंख्य जीवों ऊपर ,डाल विवेक मनुष्य में !
व्यवस्थित रखने सबको,अलग दी राह सभी में !
जड़-चेतन फूलें फलें परिपूरक बनें परस्पर ,
उपज प्रभु की सफल हो,सभी चलें तब नियम में !
13
हम देख रहे हैं ' सपने "रुके खड़े आज सड़क पर !
जिसके ही दौन किनारे ,बैठी वे-लाज सड़क पर !
लाज बचाओ तब उनकी इज्जत रह फिर हम सबकी ,
सपने भी तभी रुचेगें दिखे न परि-द्रश्य सडक पर !
अवध किशोर पटेरिया