अपनी बात
निठल्ले राम की दिल्ली यात्रा के जतन और पतन की बात हम नहीं करेगें |दिल्ली देश का दिल होते हुए भी किसी की दिलदार तो किसी को दर्ददार हमेशा से रही है। दिल्ली की यही नियति हैया दिल्ली जाने वालो की पर कहने और लिखने को बहुत सी बातें हमेशा बची रहती हैं। 'बरसत मेह नेह सरसत अंग अंग' का उदघोष करने वाले कवि पद्माकर की जन्म भूमि बुन्देलखंड़ की बादियों से अवध की सुरमई शाम के आगोश में जो बीत गया वह रीत गया जो जीत गया वह मीत हुआ की परिभाषा गढ़ने वाले समय में जब, दाल के चुरने की सुगंध खो गयी हो तब गंध और सौगंध लेखन में अचानक प्रश्नवाचक बनकर व्यंग्य करेतलाश जीवन की, मुठठी भर लोगों के उन्माद, अहंकार और उपभोक्तावाद रूपी परिवारवाद की पराकाष्ठा के चलते जनहित तिरोहित हो रहे हों, मजबूरी में सब जायज,नियति पर भारी राजनीति, बदलते वक्त में अपने बचाव का नया मुहावरा गढ़े और विचारधारा के पुरोधा चारण बन स्तुतिगान करे,तब कैसे बचेंगे हम! हमारे समकालीन मुहावरे में विकास शब्द की परिभाषा कभी कभी बहुत धोखादेह और विभ्रम में डाल देने वाली होती हैं। हमारे सूखते तालाबो में गूजते सन्नाटे की भयावहता कब शब्दों से खेलती हुई समय के सरोकारो को नये वितान में व्यक्त करने लगी पता ही नहीं चला चुपके से कभी जीवन के संत्रास और राजनीति की विद्रूपता पर पत्रकारिता के साथ साथ 90 के दशक में व्यग्य कालम लिखने से शुरू हुई थी उस कालखण्ड के अन्र्तविरोध पर लिखे शब्दों को सहेजा तक नहीं, जो हाथ रह गये उन्हें और बीते बर्षों में लिखे व्यंग्य को पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने की प्रेरणा बुन्देलखंड़ काग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणबीर सिंह यादव ने दिल्ली प्रवास के दौरान दी ही नहीं अपितु समय-समय पर प्रगति की समीक्षा भी करते रहे जिसके कारण व्यंग्य संग्रह मेरा गधा,गधो का लीडर आ सका है। संग्रह को आकार देने में बेटी हिमांशी,रीतिका तथा विदर्भ का योग्यदान महत्वपूर्ण है। जिसके कारण समय पर प्रकाशन हो सका है।